इस दिन है गंगा सप्तमी, जानिए क्या है मान्यता और विधि-विधान
श्री गंगा सप्तमी अथवा रथ सप्तमी वैशाख शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है। यह पर्व इस वर्ष 19 मई 2021 को आ रहा है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब कपिल ऋषि के श्राप द्वारा राजा सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए...
श्री गंगा सप्तमी अथवा रथ सप्तमी वैशाख शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है। यह पर्व इस वर्ष 19 मई 2021 को आ रहा है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब कपिल ऋषि के श्राप द्वारा राजा सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए थे तो उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए सगर के वंशज राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की थी। ब्रह्मा जी के वरदान से गंगा जी को पृथ्वी पर आना पड़ा। उन्हें आदेश मिला कि यदि स्वर्ग से गिरती हुई गंगा सीधी पृथ्वी लोक पर पड़ेगी तो पाताल में चली जाएगी इसलिए इसको संभालने वाला कोई दिव्य पुरुष होना चाहिए। राजा भगीरथ ने भगवान शिव को तपस्या से प्रसन्न किया। कहा जाता है कि वैशाख शुक्ल सप्तमी को ही जैसे ही गंगा स्वर्ग से पृथ्वी की ओर आने लगी तो भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उसको संभाल लिया। इस कारण यह पर्व श्री गंगा सप्तमी के नाम से मनाया जाता है।
वैशाख शुक्ल सप्तमी को ही श्री गंगा जी ने शिव की जटा में प्रवेश किया था। 32 दिन तक गंगा शिव की जटा में विचरण करती रही। देवताओं और भागीरथ की प्रार्थना करने पर उन्होंने गंगोत्री में जाकर अपनी जटाओं में से एक लट को खोल दिया और वहां से गंगा पृथ्वी पर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को पृथ्वी पर अवतरित हुई। यह गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। गंगा सप्तमी का पर्व पूरे मानव समाज को पवित्रता और शुचिता का संदेश देता है। गंगा में स्नान करना और मन को पवित्र रखना दोनों का ही परस्पर संबंध है। गंगा में स्नान करने से पापों से मुक्ति होती हैं यह सही नहीं है। गंगा उन्हीं व्यक्तियों के पापों से मुक्त करती है जो अनजाने में होते हैं। जानबूझकर किए गए पापकर्म गंगा स्नान करने पर भी समाप्त नहीं होते। गंगा ने स्वयं पुराणों में स्वयं कहा है कि मैं केवल उस व्यक्ति के पाप हरती हूं जो निश्चल और शुचिता का प्रतिरूप होता है। उसके अनजाने में किए हुए पापों को मैं नष्ट कर देती हूं किन्तु यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर पाप करके गंगा स्नान से पवित्र होना चाहता है तो मैं उसे स्वीकार नहीं करती हूं।
गंगा सप्तमी के दिन अनजाने में हुए पापों का प्रायश्चित करने का भी दिन होता है। इस दिन प्रात:काल उठकर के गंगा स्नान करें। गंगा जाने का अवसर प्राप्त ना हो तो घर में ही अपने स्नान के जल में थोड़ा गंगा का जल मिलाकर स्नान करें। स्नान के पश्चात गंगा माता का ध्यान करते हुए उनका प्रतिमा के सामने अथवा प्रतीकात्मक रूप से घी का दिया जलाएं और अपने पितरों की मुक्ति की प्रार्थना करते हुए करते हुए मां गंगा को नमन करें। इससे घर में हमेशा सुख-समृद्धि बढ़ती है। कहा जाता है कि गंगा सप्तमी का व्रत करने से पुत्र की प्राप्त होती है। इस व्रत का आरंभ गंगा सप्तमी से ही करना चाहिए। गंगा सप्तमी का विधि-विधान से पूजन रखने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है और गंगा मां की कृपा से मनों में पवित्रता और स्वच्छता का आगमन होता है।
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
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