Kamika Ekadashi Katha कामिका एकादशी की कथा सुनें, जानें कैसे ब्राह्मण हत्या से क्षत्रिय को मिली थी मुक्ति?
Kamika Ekadashi Katha Hindi इस साल कामिका एकादशी का व्रत 31 जुलाई को रखा जा रहा है। कामिका एकादशी के व्रत के दिन पहले संकल्प लेते हैं और फिर इस दिन व्रत की कथा पढ़ी जाती है। कहते हैं कथा सुनने मात्र से पुण्य फल मिलता है।
Kamika Ekadashi Katha Hindi इस साल कामिका एकादशी का व्रत 31 जुलाई को रखा जा रहा है। कामिका एकादशी के व्रत के दिन पहले संकल्प लेते हैं और फिर इस दिन व्रत की कथा पढ़ी जाती है। कहते हैं कथा सुनने मात्र से पुण्य फल मिलता है।ऐसा कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण में केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने जो पुण्य मिलता है, पुण्य कामिका एकादशी पर भगवान शिव की पूजा करने और कथा सुनने से मिल जाता है।
यहां पढ़ें कामिका एकादशी व्रत कथा-
एक समय की बात है, एक गांव में एक क्षत्रिय रहता था। वह अपने आप पर बहुत गर्व करता है, खासकर अपनी शक्ति और बल पर उसे अभिमान था। क्षत्रिय भगवान को बहुत मानता था, लेकिन उसके मन में घमंड था, वह हर दिन भगवान विष्णु की पूजा करता और उनकी उपासना में लीन रहता था। एक दिन, वह किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए घर से बाहर यात्रा पर निकला। रास्ते में उसकी मुलाकात एक ब्राह्मण से हो गई। दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि बात हाथापाई तक आ पहुंची। क्षत्रिय बहुत बलवान था, इसलिए ब्राह्मण अपनी दुर्बलता के कारण क्षत्रिय के वार को सहन न कर पाया और वह वहीं गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।
ब्राह्मण की मृत्यु से क्षत्रिय हक्का बक्का रह गया। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बहुत पछताया। ये पूरी बात गांव में आग तरह फैल गई। क्षत्रिय युवक ने गांव वालों से क्षमा याचना की और ब्राह्मण का अंतिम संस्कार खुद करने का वचन दिया। लेकिन पंडितों ने अंतिम क्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया। तब उसने ज्ञानी पंडितों से अपने पाप को जानना चाहा, तो पंडितों ने उसे बताया कि उसे ‘ब्रह्म हत्या दोष’ लग चुका है, इसलिए हम अंतिम क्रिया के ब्राह्मण भोज में आपके घर भोजन नहीं कर सकते हैं। यह सुनकर क्षत्रिय ने ‘ब्रह्म हत्या दोष’ के प्रायश्चित का उपाय पूछा?
तब पंडितों ने कहा कि, जब तक वह सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा नहीं करता, और ब्राह्मणों को भोजन नहीं कराता और दान दक्षिणा नहीं देता तब तक वह ब्रह्म हत्या दोष से मुक्त नहीं हो सकता है। क्षत्रिय ने ब्राह्मण के अंतिम संस्कार के बाद, पंडितों की सलाह मानते हुए, कामिका एकादशी के दिन पूरी श्रद्धा और विधि के अनुसार भगवान विष्णु की पूजा की, फिर उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान दक्षिणा भी दी। इस तरह, भगवान विष्णु की कृपा से वह क्षत्रिय ‘ब्रह्म हत्या दोष’ से मुक्त हुआ।
कामिका एकादशी का महत्व- भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी कामिका है। एक समय देवर्षि नारद ने पितामह भीष्म से इसका महात्म्य पूछा। उन्होंने इस पवित्र व्रत में भगवान विष्णु की पूजा कही थी। पृथ्वी दान, स्वर्ण दान व कन्या दान इत्यादि महादान के फल से विष्णु पूजा का फल अधिक है। जो फल मनुष्य को अध्यात्म विद्या से मिलता है उससे अधिक फल कामिका एकादशी देने वाली है। भगवान विष्णु को एक दल तुलसी का चढ़ाओं तो एक भार स्वर्ण चार भार चांदी दान करने का फल मिलेगा। तुलसी के दर्शनमात्र से पाप भस्म हो जाते हैं। वृन्दा के स्वर्शमात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है और भगवत चरणों में जो तुलसी अर्पित करता है उसे मुक्ति मिलती है। इस महात्म्य को सुनने से व्यक्ति यशस्वी होता है।
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