विपरीत परिस्थितियों से भागे नहीं, उनका सामना करें
- जिस प्रकार हाथी युद्ध में चारों तरफ से आनेवाले तीरों के प्रहार को सहते हुए आगे बढ़ता जाता है। ठीक उसी प्रकार उत्तम व्यक्ति भी दूसरों के अपशब्दों और दुर्व्यवहार पर ध्यान न देते हुए, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है।
बहुत पुरानी बात है। भगवान बुद्ध एक नगर में कुछ दिनों के प्रवास पर थे। उनके साथ कुछ शिष्य भी थे। जिस स्थान पर बुद्ध ठहरे हुए थे, वहां वे रोज प्रवचन देते थे। एक दिन उनके शिष्य प्रवचन सुनने के बाद भ्रमण के लिए नगर में गए। वहां लोगों ने उन्हें बहुत बुरा-भला कहा। उनकी बातें सुनकर शिष्यों को बुरा लगा और वे नगर भ्रमण को बीच में ही छोड़ कर आश्रम में लौट आए।
महात्मा बुद्ध ने उन्हें यों गुस्से में देखा तो पूछा कि वे सब तो नगर भ्रमण के लिए गए थे। इतनी जल्दी कैसे वापिस आ गए और इतने क्रोध और तनाव में क्यों दिख रहे हैं?
इस पर एक शिष्य ने बुद्ध से कहा, ‘हमें इस स्थान से तुरंत चले जाना चाहिए। यहां के लोग बहुत बुरे हैं। हम अभी नगर भ्रमण के लिए गए थे। यहां के लोगों ने बिना किसी वजह के हमें बहुत बुरा-भला कहा। जहां हमारा सम्मान नहीं हो, वहां हमें एक पल के लिए भी नहीं ठहरना चाहिए। यहां के लोग शालीन नहीं हैं। वे सिर्फ दुर्व्यवहार करने के अलावा और कुछ नहीं जानते।’
बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘हम यहां से दूसरी जगह चले जाएंगे लेकिन क्या तुम यह विश्वास के साथ कह सकते हो कि वहां हमारे साथ अच्छा व्यवहार होगा।’ इस पर शिष्य ने कहा कि यहां से तो अच्छा ही व्यवहार होगा।
शिष्य के जवाब को सुनकर बुद्ध ने कहा, ‘किसी जगह को सिर्फ इसलिए छोड़ देना कि वहां के लोग बुरे हैं, वे हमारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं, एक संत के लिए उचित नहीं है। जबकि संतों का तो काम ही यही है कि वे बुराई को दूर करें, न कि उससे डर कर भागें। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम इस स्थान पर इतनी अच्छाई फैलाएं कि यहां के लोग सुधर जाएं और यहां से बुराई हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाए।’
बुद्ध की बातें सुनकर उनके प्रिय शिष्य आनंद ने उनसे प्रश्न किया, ‘भगवन, उत्तम व्यक्ति किसे कहते हैं?’
तथागत ने आनंद से कहा, ‘जिस प्रकार हाथी युद्ध में चारों तरफ से आनेवाले तीरों के प्रहार को सहते हुए आगे बढ़ता जाता है। ठीक उसी प्रकार उत्तम व्यक्ति भी दूसरों के अपशब्दों और दुर्व्यवहार पर ध्यान न देते हुए, अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है। उत्तम व्यक्ति का लक्षण है कि वह बुराई का बदला भलाई से दे।’
बुद्ध की बातें सुनकर उनके शिष्यों ने नगर छोड़कर जाने का विचार त्याग दिया।
सोर्स- अश्वनी कुमार
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