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कर्क, वृश्चिक, कुंभ, मकर और मीन राशि वाले शिवरात्रि पर कर लें शिवजी का ये उपाय, दूर होगा शनि का अशुभ प्रभाव

  • इस समय कुंभ, मकर, मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

Yogesh Joshi नई दिल्ली, लाइव हिन्दु्स्तान टीमFri, 2 Aug 2024 01:43 AM
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इस समय कुंभ, मकर, मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। भगवान शंकर की कृपा से सभी तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। 2 अगस्त को सावन मास की शिवरात्रि है। इस दिन विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना की जाती है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभावों से मुक्ति के लिए इस पावन दिन भगवान शंकर का गंगा जल से अभिषेक करें और श्री रुद्राष्टकम का पाठ करें। श्री रुद्राष्टकम का पाठ करने से भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आप रोजाना भी श्री रुद्राष्टकम का पाठ कर सकते हैं। आगे पढे़ं श्री रुद्राष्टकम...

श्री रुद्राष्टकम

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

 

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

 

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

 

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌ ।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

 

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।

त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌ ॥

 

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌ ।

न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

 

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

 

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये

ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 

 

  ॥  इति श्रीगोस्वामीतुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥ 

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