Hindi Newsधर्म न्यूज़shani pradosh vrat katha read here shaniwar pradosh ki kahani hindi mein

shani pradosh katha: शनि प्रदोष कल, निर्धन ब्रह्मणी की कथा सुनते हैं इस व्रत में

shani pradosh vrat katha: 17 अगस्त को शनि प्रदोष व्रत रखा जाता है। शाम के समय इस व्रत में पूजा की जाती है और निर्धन ब्रह्मणी से जुड़ी कथा सुनते हैं। यहां पढ़ें संपूर्ण व्रत कथा

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानSat, 17 Aug 2024 08:04 AM
share Share

17 अगस्त को शनि प्रदोष व्रत रखा जाता है। शाम के समय इस व्रत में पूजा की जाती है और निर्धन ब्रह्मणी से जुड़ी कथा सुनते हैं। यहां पढ़ें संपूर्ण व्रत कथा प्रदोष व्र जिस दिन होता है उसी दिन की कथा पढ़ी जाती है। इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को है, तो शनि प्रदोष की कथा पढ़ी जाएगी। इस कथा में कैसे एक निर्धन ब्राह्मणी पर भगवान शिव की कृपा हुईउसके बारे में बताया गया है। 

शनि प्रदोष व्रत कथा

सूत जी ने शनि प्रदोष व्रत का महत्व बताते हुएकहा है कि प्राचीन समय में निर्धन ब्राम्हणी रहती थी। वो ऋषि शांडिल्य के पास गई और बोली-मैं बहुत दुखी, मेरे दुख का निवारण बताएं। उसने बताया कि वह अपने पति की मृत्यु के बाद अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। उसने ऋषि शांडिल्य से कहा कि मेरे पुत्र औरमैं अब आपकी शरण में हैं। मेरे बड़े बेटे का नाम राजपुत्र और छोटे बेटे का नाम शुचिव्रत है। तब ऋषि शांडिल्य ने कहा कि आप तीनों भगवान शिव का प्रदोष व्र करें।

तीनों ने विधान से शनि प्रदोष व्रत किया। इस व्रत का आरंभ करने के कुछ दिनों बाद एक दिन छोटे पुत्र को एक सोने के सिक्कों से भरा कलश मिला। मां ने उसे भगवान शिव की महिमा समझकर रख लिया । इसके बाद दोनों नगर को गए। रास्ते में उन्हें गंधर्व कन्याएं मिलीं। जबकि कुछ दिनों के बाद बड़े पुत्र राजपुत्र की  मुलाकात के गंधर्व कन्या से हुई। वे दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए। कन्या ने बताया कि वह विद्रविक नाम के गंधर्व की पुत्री है और उसका नाम अंशुमति है। दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे। दोनों ने एक दूसरे को मन की बात बताई। इसके बाद राजपुत्र, शुचिवर्त को वहां कन्या के पिता के पास पहुंचा। तब राजा ने कहा, मैं कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के दर्शन करके आया हूं,,उन्होने मुझे बताया कि दो गंधर्व राजकुमार आएंगे, वे मेरे परम भक्त हैं और गंधर्व राज्य से विहीन कर दिएगए थे। इसके बाद अंशुमती के पिता ने दोनों राजकुमारों को  सिंहासन वापस दिला दिया।गरीब ब्राम्हणी को भी एक खास स्थान दिया गया, जिससे उनके सारे दुख खत्म हो गए। राज-पाठ वापस मिलने का कारण प्रदोष व्रत था, जिससे उन्हें संपत्ति मिली और जीवन में खुशहाली आई।

 

 

 

अगला लेखऐप पर पढ़ें