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31 अगस्त को शनि प्रदोष व्रत, यहां पढ़ें व्रत कथा

shani pradosh katha हीने की दोनों त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस तरह साल में 24 प्रदोष व्रत आते हैं। भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी को इस माह का पहला प्रदोष व्रत रखा जाता है।

Anuradha Pandey हिन्दुस्तान टीमTue, 27 Aug 2024 04:44 PM
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महीने की दोनों त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस तरह साल में 24 प्रदोष व्रत आते हैं।  भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी को इस माह का पहला प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत महादेव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव अपने भक्तों के सारे दुख-कष्ट दूर करते हैं। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 31 अगस्त की देर रात 2 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 1 सितंबर को देर रात 3 बजकर 40 मिनट पर होगा। चूंकि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करने का महत्व है इसलिए भाद्रपद प्रदोष व्रत 31 अगस्त को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। य

 शनि प्रदोष व्रत कथा 

शनि प्रदोष व्रत कथा-प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्‍नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना। एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्‍चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्‍नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्‍नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे।अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्‍नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई।तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्‍नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।

(डिस्क्लेमर- ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)

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