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Saphala Ekadashi vrat katha: इस दिन व्रत कथा का बहुत महत्व, यहां पढ़ें सफला एकादशी व्रत कथा

  • Saphala ekadashi vrat katha:सफला एकादशी इस बार यह 26 दिसंबर को पड़ेगी।पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि सफला एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार यह 25 दिसंबर को रात 10 बजकर 30 मिनट पर लगेगी, यहां पढ़ें सफला एकादशी व्रत कथा

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानThu, 26 Dec 2024 11:47 AM
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सफला एकादशी इस बार यह 26 दिसंबर को मनाई जाएगी।पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि सफला एकादशी के नाम से जानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जिस काम की मनोकामना कर लो, वो काम पूरा होता है। इस दिन व्रत रखने का सुबह के समय संकल्प लें और फिर अपने काम के पूरा होने की मनोकामना करें। आपको बता दें कि इस बार यह 25 दिसंबर को रात 10 बजकर 30 मिनट पर लगेगी, जो 26 दिसंबर की रात 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। स्वाति नक्षत्र 25 दिसंबर को दिन में 3 बजकर 22 मिनट से 26 की शाम 6 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। उदयातिथि में एकादशी तिथि 26 दिसंबर को मिलने से यह व्रत उसी दिन रखा जाएगा। एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करना ही लाभकारी होता है। यहां पढ़ें सफला एकादशी व्रत कथा-

सफला एकादशी व्रत कथा-व्रत की कथा अनुसार चम्पावती नगरी में महिष्मत नाम के राजा के पांच पुत्र थे। बड़ा पुत्र चरित्रहीन था और देवताओं की निन्दा करता था। मांस भी खाता था और उसमें कई बुराईयां भी थीं, जिससे राजा और उसके भाइयों ने उसका नाम लुम्भक रखा था, इसके बाद उसके भाईयों ने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। इसके बाद भी वह नहीं माना और उसने अपने ही नगर को लूट लिया। एक दिन उसे चोरी करते सिपाहियों ने पकड़ा, पर राजा का पुत्र जानकर छोड़ दिया। फिर वह वन में एक पीपल के नीचे रहने लगा। पौष की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह सर्दी के कारण बहुत कमजोर हो गया, उसमें खाना लाने की भी शक्ति नहीं थी, ऐसे में उसे कुछ फल तोड़े, लेकिन रात होने के कारण खा ना सका, और यह बोल दिया कि भगवान अब आप ही इसे खा लो। इस तरह रातभर जागकर उसने रात बिताई। इस प्रकार रात्रि जागरण और दिनभर भूखे रहने के कारण उससे सफला एकादशी का व्रत हो गया।

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तब उसे सफला एकादशी के प्रभाव से राज्य और पुत्र का वरदान मिला। इससे लुम्भक का मन अच्छे की ओर प्रवृत्त हुआ और तब उसके पिता ने उसे राज्य प्रदान किया। उसे मनोज्ञ नामक पुत्र हुआ, जिसे बाद में राज्यसत्ता सौंप कर लुम्भक खुद विष्णु भजन में लग कर मोक्ष प्राप्त करने में सफल रहा।

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