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संगठित और व्यवस्थित विचार संसार की सबसे बड़ी शक्ति है

  • विचार की रचना परमाणुमयी है। ये आकाश में व्याप्त ईथर तत्व के सूक्ष्म कण समूह हैं। जिनकी रचना मन के अदृश्य स्तर में होती है। ईथर पदार्थ समग्र विश्व में प्रचुरता से व्याप्त है। इसी माध्यम के अनुसार विचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजे जा सकते हैं।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, उपाध्याय गुप्तसागर मुनिTue, 14 Jan 2025 10:06 AM
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विचार की रचना परमाणुमयी है। ये आकाश में व्याप्त ईथर तत्व के सूक्ष्म कण समूह हैं। जिनकी रचना मन के अदृश्य स्तर में होती है। ईथर पदार्थ समग्र विश्व में प्रचुरता से व्याप्त है। इसी माध्यम के अनुसार विचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजे जा सकते हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति एवं मनोबल द्वारा अपने विचार दूसरे मस्तिष्कों में भेज सकते हैं। विचार भी यात्रा करते हैं। वे विचारक के मन से अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं और एक-दूसरे के मन को आंदोलित करते हुए अपनी यात्रा संपन्न करते हैं। ईथर का अदृश्य माध्यम विचार संचालन क्रिया में सबसे बड़ा सहायक सिद्ध हुआ है।

विचारों का स्वभाव है कि उनका अतिथि सत्कार करो तो वे पुष्ट होते हैं, बढ़ते हैं, विकसित होकर नव-जीवन निर्माण करते हैं। यदि उनकी परवाह न करो तो वे चले जाते हैं, मृत्यु को प्राप्त होते हैं। ऐसे विचारों को अपना मित्र समझो, जिनसे अच्छी आदतें बनती हों, उत्तम स्वभाव का निर्माण होता हो, उन्हीं का बार-बार चिंतन करो। अतिथि सत्कार करो। इन भव्य विचारों का जीवन की प्रत्येक घटना पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। मनुष्य का जीवन घटनाओं का समूह है और ये घटनाएं हमारे विचारों के परिणाम हैं।

जैसे सूर्य की किरणें आतिशी शीशे द्वारा एक ही केंद्र पर डाली जाती हैं तो अग्नि उत्पन्न हो उठती है। उसी प्रकार विचार एक केंद्र पर एकाग्र होने से बलवान बनते हैं। हमारी विचार शक्ति की ताकत हमारे मन की एकाग्रता पर निर्भर है। बिना एकाग्रता के मन में बल नहीं आ सकता। जिस व्यक्ति ने भी इस संसार में महत्ता प्राप्त की है, उनका मंत्र विचारों की एकाग्रता ही रहा है। संसार के प्रत्येक कार्यों में एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है।

मनोवेत्ताओं का अनुभव है कि हमारा प्रत्येक विचार मस्तिष्क में एक मार्ग बनाता है तथा उस निर्दिष्ट मार्ग पर वैसे ही अन्य विचार आकर उठते रहते हैं। पहले एक छोटी-सी पगडंडी बनती है, फिर वही धीरे-धीरे राजमार्ग बन जाती है। पहले जब कुविचार मन में प्रवेश करता है तो एक मामूली-सी लकीर बनाता है, फिर वैसे ही मिथ्या विचार, आलस्य आदि तमोगुणी भाव प्रकट कर मानसिक मार्ग को और भी बड़ा बनाते हैं। बार-बार वैसे ही विचार आने से वे स्वभाव बन जाते हैं।

विचार संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। किंतु असंगठित, अव्यवस्थित और काल्पनिक किताबी विचार केवल दिल बहलाव, मनोरंजन की सामग्री है। जिस प्रकार हम कुछ देर के लिए कोई पुस्तक लेकर अपना मनोरंजन कर लेते हैं, उसी प्रकार इन शुभ विचारों में रमण कर कुछ देर के लिए हम उनकी शक्तियों पर चमत्कृत हो लेते हैं।

विचार के दो रूप हैं— एक काल्पनिक तथा दूसरा क्रियात्मक। काल्पनिक तथा क्रियात्मक स्वरूपों के उत्तम सामंजस्य से ही समूचा विचार बनता है।

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