मासिक कृष्ण जन्माष्टमी इस दिन, जानें मुहूर्त व पूजा-विधि
- Masik Krishna Janmashtami 2025: हर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रख भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विधि-विधान से श्री कृष्ण की उपासना की जाती है।
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Masik Krishna Janmashtami 2025: सनातन धर्म में मासिक कृष्ण जन्माष्टमी महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रख भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विधि-विधान से श्री कृष्ण की उपासना की जाती है। भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। आइए जानते हैं फरवरी की मासिक कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त-
मासिक कृष्ण जन्माष्टमी इस दिन: पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि फरवरी 20 को सुबह 09:58 बजे से प्रारम्भ होगी, जिसका समापन सुबह 11:57, फरवरी 21 के दिन होगा। ऐसे में दृक पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने की मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 20 फरवरी को है।
श्री कृष्ण पूजा-विधि
1- स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें
2- श्री कृष्ण का जलाभिषेक करें
3- श्री कृष्ण का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें
4- अब प्रभु को पीला चंदन, फल, वस्त्र और पुष्प अर्पित करें
5- मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें
6- पूरी श्रद्धा के साथ श्री कृष्ण की आरती करें
7- प्रभु को तुलसी दल सहित भोग लगाएं
8- अंत में क्षमा प्रार्थना करें
पढ़ें श्री कृष्ण जी की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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