कार्तिक मास के ये 5 दिन बहुत मंगलकारी, भीष्म पितामह को हैं समर्पित, इस बार केवल 4 दिन
ये पांच दिन देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा के साथ संपूर्ण होते हैं। इस बार चतुर्दशी तिथि का क्षय हो रहा है, इसलिए भीष्म पंचक चार दिन के हैं। भीष्म पंचक के इन पांच दिनों को पहले विष्णु पंचक के नाम से जाना जाता था।
भीष्म पंचक व्रत कार्तिक माह के अंतिम पांच दिनों में मनाया जाता है। ये पांच दिन देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा के साथ संपूर्ण होते हैं। इस बार चतुर्दशी तिथि का क्षय हो रहा है, इसलिए भीष्म पंचक चार दिन के हैं। भीष्म पंचक के इन पांच दिनों को पहले विष्णु पंचक के नाम से जाना जाता था।
भीष्म पंचक से जुड़ी एक कथा है। द्वापर युग में कौरवों-पांडवों के मध्य महाभारत का युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजयी पांडवों को कृष्ण भीष्म पितामह के पास लेकर गए। कृष्ण चाहते थे कि पितामह पांडवों को कुछ ज्ञान दें। भीष्म पितामह ने पांडवों को वर्ण धर्म, मोक्ष धर्म और राज धर्म का ज्ञान प्रदान किया। भीष्म ने यह ज्ञान लगातार पांच दिनों तक दिया था। ये पांच दिन कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा के थे। पांडवों को ज्ञान देने के पश्चात कृष्ण ने पितामह से कहा कि ये पांच दिन लोगों के लिए अत्यंत मंगलकारी होंगे और अब से भीष्म पंचक रूप में जाने जाएंगे। कृष्ण ने भीष्म से कहा, ‘हे पितामह! जो मनुष्य कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक आपके नाम से जल अर्पित करेगा और आपका पूजन करेगा। मैं उसके सब कष्ट दूर करूंगा।’ मान्यता है कि भीष्म पंचक (विष्णु पंचक) व्रत कथा का पाठ सबसे पहले सतयुग में ऋषि वसिष्ठ, ऋषि भृगु और ऋषि गर्ग ने किया था। इसके बाद त्रेता युग में महाराजा अंबरीश ने इस व्रत को किया था। मान्यता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए भीष्म पंचक व्रत का पालन किया जाता है। गरुड़ पुराण की भीष्म पंचक कथा के अनुसार भीष्म पंचक व्रत के दिनों में भगवान कृष्ण के समक्ष पहले दिन उनके चरणों में कमल के फूल अर्पित करने चाहिए। दूसरे दिन जांघ पर बिल्ब-पत्र, तीसरे दिन नाभि में सुगंध, चौथे दिन कंधों पर जावा का फूल और पांचवें दिन सिर पर मालती का फूल अर्पित करना चाहिए। इन पांच दिनों के व्रत करने से पूरे चातुर्मास का पुण्य फल मिल जाता है।
अश्वनी कुमार
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