कालरात्रि में आज की जाएगी महाकाली की महानिषि पूजा पूजा, राहु-केतु की शांति के लिए पूजा
Kalratri Mahakali puja कार्तिक अमावस्या की निशा में की जाने वाली काली पूजा बंगाल में श्यामा पूजा या महानिषि पूजा के नाम से भी जानी जाती है। इसका विधान 31 अक्तूबर को कालरात्रि में किया जाएगा।
कार्तिक अमावस्या की निशा में की जाने वाली काली पूजा बंगाल में श्यामा पूजा या महानिषि पूजा के नाम से भी जानी जाती है। इसका विधान 31 अक्तूबर को कालरात्रि में किया जाएगा। कोलकाता में दक्षिणेश्वरी काली मंदिर मुख्य केंद्र होता है तो काशी के देवनाथपुरा स्थित शवशिवा काली मंदिर काशीवासियों की आस्था का केंद्र बनता है।
इस मंदिर की स्थापना 1789 में पश्चिम बंगाल के राजा चंद्रराय के पुरोहित चंद्रशेखर शर्मा ने कराई थी। आगे से देखने पर इस विग्रह में शव के ऊपर शिव और शिव के ऊपर काली के दर्शन होते हैं। पीछे से शिवलिंग के दर्शन होते हैं। मंदिर समिति के सचिव देवाशीष दास की देखरेख में मुख्य पूजा 31 अक्तूबर की शाम को होगी। मंदिर में अन्नकूट की झांकी भी 2 नवंबर को सजाई जाएगी। प्रसाद वितरण 3 नंवबर को होगा।
राहु-केतु की शांति के लिए
ज्योतिषाचार्य पं. रामेश्वर ओझा बताते हैं कि राहु और केतु की शांति के लिए मां काली की उपासना अचूक है किंतु विशेषज्ञों के मार्गदर्शन के बगैर इस तरह का पूजा नहीं करनी चाहिए। थोड़ी-सी भी चूक बड़ी विपत्ति के रूप में सामने आ सकती है। मां काली की पूजा में लाल और काली वस्तुओं का विशेष महत्व है। इन्हें पूजन में मिठाई, चावल एवं फूलों के अतिरिक्त मछली भी अर्पित की जाती है।
नवसंघ की काली प्रतिमा स्थापित: शहर के पांडेयहवेली, सोनारपुरा, भेलूपुरा क्षेत्र के बंगीय दुर्गापूजा पंडालों में भी मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। बंगीय परंपरा के अनुसार जिस स्थान पर दुर्गा प्रतिमा स्थापित की जाती वहां या तो लक्ष्मी पूजा अथवा काली पूजा की जाती है। सोनारपुरा स्थित वाणी संघ, भेलूपुर स्थित जिम स्पोर्टिंग क्लब, शारदोत्सव संघ आदि के अतिरिक्त शहर में कई अन्य स्थानों पर भी मां काली का पूजन किया जाएगा। देवनाथपुरा स्थित नवसंघ में मां काली की विशाल प्रतिमा स्थापित कर पूजन अर्चन बुधवार को ही आरंभ हो गया। इस अवसर पर दो दिन चित्रकला, गायन, नृत्य और शंखध्वनि की प्रतियोगिता होगी।
काली ही करती हैं नाश: मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर मां काली की पूजा करने से डर खत्म होता है। रोगों से मुक्ति मिती है। शत्रु का नाश होता है। अमावस्या की रात तांत्रिक और बुरी शक्तियों को जागृत करने वाली भी है। इस रात्रि में उत्पन्न बुरी शक्तियों का नाश सिर्फ काली ही कर सकती हैं।
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