जितिया व्रत पर खरजीतिया का संयोग, जानें ओठगन से लेकर व्रत पारण की डिटेल्स
Kab hai Jitiya Vrat 2024 : जितिया व्रत को जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जितिया व्रत काफी कठिन व्रत माना जाता है, जो निर्जल रखा जाता है।
Jitiya Vrat 2024 Date: हर साल महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत करती हैं। जितिया व्रत को जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जितिया व्रत कठिन व्रत माना जाता है। यह निर्जला व्रत लगभग 3 दिनों तक चलता है। आइए पंडित जी से जानते हैं जितिया का व्रत कब रखा जाएगा, पारण का दिन, व पूजा की विधि-
खरजीतिया का दुर्लभ संयोग
पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र के अनुसार, जितिया का व्रत 24 और 25 सितंबर दिन मंगल और बुध को होगा। अमृत योग में जितिया व्रत का शुभारंभ होगा। ओठगन स्त्रियों का विशेष भोजन 23 सितंबर को रात्रि के अंत में अर्थात सूर्योदय से पहले होगा। जितिया व्रत का पारण 25 सितंबर दिन बुधवार को दिन के अंतिम भाग अर्थात संध्या काल 5 बजकर 5 मिनट के उपरांत होगा। दो दिन के व्रत हो जाने से प्रथम वार जितिया व्रत करने वाली महिलाओं के लिए थोड़ा कठिन होने की संभावना बनती है। इस बार खरजीतिया का भी दुर्लभ संयोग है। खरजितिया लगने पर ही स्त्रियां पहली बार व्रत करती हैं। जिसके लिए बहुत दिनों तक इंतजार में महिलाएं रहती है कि कब खरजीतिया लगेंगे।
कब लगती है खरजीतिया: पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि, मंगलवार या शनिवार को यदि अष्टमी व्रत लगता है तो उस वार वह खरजीतिया लग जाता है, जिसमे पहली वार महिलाए जितिया व्रत उठाती है। खरजीतिया लगने पर व्रत उठाने वाली महिलाओं के संतान की अकाल मृत्यु नहीं होती है। अतः हर दृष्टिकोण से यह व्रत स्त्रियों के लिए किसी बड़े तपस्या साधना से कम नहीं है क्योंकि इस व्रत में जल तक लेने का विधान नहीं है।
आचार्य धर्मेंद्रनाथ ने बताया कि गंगा पुलकित पंचांग और विद्यापति पंचांग अनुसार, व्रत के दौरान संकट आने पर या विशेष परिस्थिति होने पर जल, शर्बत, शुद्ध देसी गाय के दूध एवं जूस आदि ग्रहण कर व्रत पूर्ण किया जा सकता है। यह व्रत स्त्रियां अपने सभी संतानों को समस्त बाधाओं संकटों से मुक्त रक्षा के लिए करती हैं। इस व्रत के माहात्म्य के संबंध में अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित है। आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में प्रदोष काल में जीमूतवाहन भगवान की पूजा करने का विधान है। भविष्यपुराण में कहा गया है कि यह व्रत अष्टमी तिथि प्रदोष काल व्यापिनी ग्रहण करनी चाहिए। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी जीवित पुत्रिका नाम से प्रसिद्ध है, जो सभी स्त्रियों के संतानों और अखंड सौभाग्य को प्रदान करने वाली है।
पूजा-विधि
आंगन में पोखर बना पाकड़ वृक्ष रोपें। उसमे गोबर माटी से चिल्ली डाली पर तथा पुनः गोबर माटी से सियारिनी वृक्ष के नीचे धोधर में रखें। मध्य में जल से भरा हुआ कलश रखे। उस कलश पर कुश से निर्मित जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा मूर्ति स्थापित कर अनेक रंगों की पताखा लगानी चाहिए तत्पश्चात कुश तिल जल लेकर संकल्प आदि कर अनेक पदार्थों से पूजन करें एवं जीमूतवाहन भगवान की कथा श्रवण करनी चाहिए। जीमूतवाहन व्रत उपवास में वंश वृद्धि के लिए बांस के पतों से पूजन करने की परंपरा है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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