Jitiya Vrat: दाउदनगर का जिउतिया उत्सव होता है खास, महाभारत युद्ध से जुड़ी है परंपरा
दाउदनगर में आश्विन माह के कृष्णपक्ष में मनाया जानेवाला जिउतिया पर्व अपने आप में अनूठा होता है। कुछ वर्ष पहले तक यह नौ दिनों तक आयोजित होता था। अब तीन-चार दिनों तक मनाया जाता है।
दाउदनगर में आश्विन माह के कृष्णपक्ष में मनाया जानेवाला जिउतिया पर्व अपने आप में अनूठा होता है। कुछ वर्ष पहले तक यह नौ दिनों तक आयोजित होता था। अब तीन-चार दिनों तक मनाया जाता है। मंगलवार को नहाय खाय के साथ इस पर्व की शुरुआत हो चुकी है। यह दाउदनगर की ऐतिहासिक, धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत की पहचान भी है। सड़कों पर तरह-तरह के वेशभूषा धारण किए लोगों में कोई सुल्ताना डाकू बनता है, तो कोई लाल-काली परी का रूप धारण करता है। इन्हें जिउतिया का नक्कल या नकल कहते हैं। पोशाक और प्रस्तुति ऐसी कि असल-नकल में भेद करना मुश्किल होता है। जनश्रुतियों के अनुसार यह पर्व दाउदनगर में विक्रम संवत 1917 से मनाया जा रहा है। कसेरा टोली में हरिचरण एवं तुलसी द्वारा सबसे पहले विक्रम संवत 1917 में ओखली रखकर यह पर्व को मनाया गया। लेकिन बुजुर्गों के अनुसार तिरहुत, झारखंड से आये पटवा जाति के लोगों ने पटवा टोली इमलीतल में 1917 से भी 20 से 30 वर्ष पहले वहां शुरुआत की। यानी दाउदनगर में जिउतिया लगभग दो सौ वर्षों मनाया जा रहा है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत युद्ध जब समाप्त हुआ तो राक्षसों के आतंक से पुत्रों की रक्षा के लिए माताओं ने भगवान जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना की। जीवित-पुत्रिका व्रत आश्विन मास सितम्बर कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
ओखली की पूजा महत्वपूर्ण
दाउनगर में कई चौराहों पर जिउतबंधन की ओखली रखी जाती है, जहां महिलाएं पूजा करती हैं। पौराणिक काल से लकड़ी की ओखली रखकर पूजा अर्चना करने की परंपरा है, लेकिन अब पीतल की ओखली भी रखी जा रही है। माताएं उपवास के बाद इसी ओखली के पास पूजा कर पुत्रों की दीर्घायु कामना करती है। वर्तमान में जीमूतवाहन मंदिर का निर्माण किया गया है। दाउदनगर में चार जीमूतवाहन मंदिर पटवाटोली इमली तर, कसेरा टोली, मुख्य चौक एंव पुराना शहर चौक है। यहां श्रद्धालु पूरे रात सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेते हैं।
हैरतअंगेज प्रदर्शन
दाउदनगर में जिउतिया के दौरान युवाओं द्वारा प्रतिदिन हैरतअंगेज कारनामे किए जाते हैं। स्थानीय कलाकारों द्वारा दिखाए गए कला से लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। चाहे शरीर में चाकू चढ़ाना हो, गर्म लोहे का छड़ हाथों से पकड़ना है, सिर पर आग लगाना हो, मुड़ी कटवा जैसे प्रस्तुति देख लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इन कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नकल अभिनय प्रतियोगिता भी कराई जाती है जिसके लिए तैयारी पूरी हो चुकी है। इमली तर विद्यार्थी चेनता परिषद, कसेरा टोली में कांस्यकार पंचायत समिति, पुरानाशहर जोड़ा मंदिर ज्ञान दीप समिति, गुलाम सेठ स्थित एकता संघ समेत कई जगह प्रतियोगिता कर इन्हें सम्मानित किया जाता है। धन भाग रे जिउतिया, तोरा अइले जियरा नेहाल जिउतिया... जे अइले मन हुलसउले नौ दिन कइले बेहाल जिउतिया... झुंड में गाती महिलाओं का ये झूमर गीत इन दिनों दाउदनगर के मौलाबाग से लेकर पुराने शहर तक हर प्रमुख चौक-चौराहों पर गूंज रहा है।
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