जितिया व्रत के दिन इस विधि से करें पूजा, पंडित जी से जानें पूजा के मुहूर्त
- Jitiya Vrat 2024 Time : अपने संतान की रक्षा व लंबी आयु के लिए मताएं 25 सितंबर के दिन जितिया का व्रत रखेंगी। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। आइए पंडित जी से जानते हैं जितिया व्रत के दिन पूजा करने की सही विधि व शुभ मुहूर्त-
हर साल अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए महिलाएं जितिया का व्रत रखती है। यह व्रत बेहद कठिन माना जाता है, जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जितिया व्रत को कई जगहों पर जिउतिया व जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आया संकट टल जाता है और आयु में वृद्धि होती है। आइए पंडित जी से जानते हैं जितिया व्रत के दिन पूजा करने की विधि व शुभ मुहूर्त-
कल है जितिया का व्रत: ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेन्द्र झा ने बताया कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस बार 24 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 38 मिनट पर लग जाएगी। 25 सितंबर को आद्रा नक्षत्र रात के 3:30 बजे तक पड़ रहा है। इसलिए इस दिन व्रत करना बहुत ही शुभ रहेगा। तिथि और मुहूर्त की इस स्थिति के कारण इस वर्ष 24 सितम्बर मंगलवार को जितिया का नहाय-खाय होगा जबकि जितिया का व्रत रखने वाली माताएं उदया तिथि के कारण 25 सितम्बर, बुधवार को पूरे दिन और पूरी रात व्रत रखेंगी।
जितिया पूजा का शुभ मुहूर्त: पंडित धर्मेन्द्र झा के मुताबिक, बुधवार की शाम में जिउतिया शुभ मुहूर्त (लाभ) दोपहर 01 बजे से संध्या 04 बजे तक है। पुरोहित संतोष त्रिपाठी के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04.35 से सुबह 05.22 बजे तक, अमृत काल- 12.11 बजे से 01.49 बजे तक, विजय मुहूर्त- दोपहर 02.12 बजे से दोपहर 3 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त- शाम 06.13 बजे से शाम 06.37 बजे तक रहेगा।
बनेगा शुभ योग: कल, 25 सितंबर दिन बुधवार को महिलाएं जितिया का निर्जला व्रत रखेंगी। पंचांग अनुसार, इस दिन वरीयान् योग रात 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही आर्द्रा नक्षत्र का भी संयोग रहेगा।
जितिया व्रत के दिन इस विधि से करें पूजा
पंडित धर्मेन्द्र झा के अनुसार, महिलाएं सुबह ही स्नान करने के बाद व्रत करने का संकल्प लेती हैं और गोबर से लीपकर पूजास्थल को साफ कर देती हैं। उसके बाद महिलाएं वहां पर एक छोटा सा कच्चा तालाब बनाकर उसमें पाकड़ की डाल लगा देती हैं। तालाब में भगवान जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित करते हैं। इस प्रतिमा की धूप-दीप, अक्षत, रोली और फूलों से पूजा की जाती है। इस व्रत में गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इन पर सिंदूर चढ़ाया जाता है और उसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनाकर पूजा को सम्पन्न किया जाता है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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