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ईश्वर के प्रति आपका संकल्प दृढ़ होना चाहिए

  • भगवद्गीता सिखाती है कि यदि किसी व्यक्ति को यह ज्ञान हो जाता है कि यह संसार मिथ्या है और केवल परमात्मा ही सत्य है, चाहे यह मृत्यु से पूर्व अंतिम क्षण में ही क्यों न हो, वह व्यक्ति अपनी देह त्यागने के बाद और अधिक अच्छे लोक में प्रवेश करता है।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तानTue, 3 Sep 2024 07:48 AM
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हम सब इस धरती पर थोड़े समय के लिए आए हैं। अपनी भूमिका पूरी होने के पश्चात हम उस अज्ञात स्थान पर चले जाएंगे, जहां से इस पृथ्वी पर आए थे। लेकिन इस थोड़े समय के बीच हमारे जीवन का एक उद्देश्य होना चाहिए। यह उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब हमारा ईश्वर के प्रति संकल्प दृढ़ होगा। जो सुख और समृद्धि में भी ईश्वर के साथ घनिष्ठता बनाए रखता है, वह आवश्यकता पड़ने पर ईश्वर को सदा अपने निकट ही पाता है। परंतु जो उस संबंध को बनाने में विलंब करता है, उसे अकेले ही अपनी परीक्षाओं के साथ संघर्ष करना पड़ता है, जब तक कि वह ज्ञान द्वारा अशर्त समर्पण नहीं करता, तब तक वह शाश्वत सुख को प्राप्त नहीं करता।

वह मंदिर जिसे ईश्वर सर्वाधिक प्रेम करते हैं, उनके भक्तों के आंतरिक मौन एवं शांति का मंदिर है। जब भी आप यहां इस सुंदर मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो अशांति और चिंताओं को पीछे छोड़ कर आया करें। यदि आप उन्हें नहीं छोड़ेंगे, तो ईश्वर आपके पास नहीं आ सकेंगे। पहले अपने भीतर सुंदरता और शांति का मंदिर स्थापित करें, वहां आप उन्हें अपनी आत्मा की वेदी पर पाएंगे।

कभी-कभी व्यक्ति यह सोच कर हतोत्साहित हो जाता है कि ईश्वर की खोज में मैंने बहुत देर कर दी है। बहुत देर कभी भी नहीं होती। भगवद्गीता सिखाती है कि यदि किसी व्यक्ति को यह ज्ञान हो जाता है कि यह संसार मिथ्या है और केवल परमात्मा ही सत्य है, चाहे यह मृत्यु से पूर्व अंतिम क्षण में ही क्यों न हो, वह व्यक्ति अपनी देह त्यागने के बाद और अधिक अच्छे लोक में प्रवेश करता है।

कभी-न-कभी हममें से प्रत्येक को इस पृथ्वी से उठा लिया जाएगा। अभी से ही जान लें कि जीवन का उद्देश्य क्या है। यहां आपके अनुभवों का महत्वपूर्ण उद्देश्य उनके अर्थ की खोज के लिए आपको प्रेरित करना है। मानवता की इस यात्रा को महत्व न दें। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, आपको अंतत यह अवश्य समझना होगा कि आप परम तत्त्व के एक अंश हैं। ईश्वरानुभूति को अपना लक्ष्य बनाएं। इस धर्म-कर्म योग, ईश्वर को जानने का थोड़ा-सा अभ्यास भी आपको दारुण भय से मुक्ति दिलाएगा। मृत्यु की संभावना अथवा असफलता अथवा अन्य कष्टदायक विपत्तियां, मनुष्य में अत्यधिक भय उत्पन कर देती हैं। जब आप अपनी सहायता करने में असमर्थ हों, जब आपका परिवार आपकी कोई सहायता न कर सकता हो, जब दूसरा कोई व्यक्ति आपको सहायता न दे सके, तब आपके मन की क्या अवस्था होती है? आप अपने लिए ऐसी स्थिति क्यों आने देते हैं? ईश्वर को खोजिए और स्वयं को उनमें स्थित कर दीजिए। आपको किसी भी व्यक्ति का साथ मिलने से पहले, आपके साथ कौन था? ईश्वर। और जब आप इस पृथ्वी को छोड़कर जाएंगे, तो आपके साथ कौन होगा? केवल ईश्वर। परंतु तब आप उनको नहीं जान लेते, यदि उन्हें अभी से ही अपना मित्र नहीं बना लेते। यदि आप ईश्वर को गहनता से खोजते हैं, तो आप उनको अवश्य पा लेंगे।

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सृष्टि की प्रत्येक वस्तु आपको ईश्वर से दूर रखने के लिए एक प्रलोभन है। परंतु वे किसी भी सांसारिक प्रलोभन से कहीं अधिक लुभावने हैं। यदि आप उनकी केवल एक झलक भी पा लें तो आप यह जान जाएंगे; और आप उन्हें आंतरिक प्रार्थना तथा ध्यान एवं दृढ़ निश्चय द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। ईश्वर के प्रति आपका संकल्प दृढ़ होना चाहिए। वे तब तक नहीं आएंगे, जब तक आपका मन कहीं और भटक रहा है। वे तो आपके पास आना चाहते हैं परंतु आप ही उन्हें आने नहीं देते; बल्कि आप तुच्छ इंद्रिय सुखों को खोजते रहते हैं अथवा अपना समय पुस्तकों या मदिरापान के प्रीतिभोजों (कॉकटेल पार्टियों) में व्यतीत कर देते हैं। तब ईश्वर कहते हैं, ‘ठीक है मेरे बच्चे, खेल में लगे रहो।’

यदि ईश्वर किसी वस्तु के इच्छुक हैं, तो वह है हमारा प्रेम। वे प्रत्येक व्यक्ति के हृदय द्वार को खटखटाते हैं और हमें अपने पास बुलाते हैं, परंतु अधिकांश लोग जाना नहीं चाहते। फिर जब वे किसी परेशानी में पड़ जाते हैं अथवा बीमार हो जाते हैं, तो वे ईश्वर को तुरंत पुकारने लगते हैं। जो सुख और समृद्धि में भी ईश्वर के साथ घनिष्ठता बनाए रखता है, वह आवश्यकता पड़ने पर ईश्वर को सदा अपने निकट ही पाता है। परंतु जो उस संबंध को बनाने में विलंब करता है, उसे अकेले ही अपनी परीक्षाओं के साथ संघर्ष करना पड़ता है, जब तक कि वह ज्ञान द्वारा अशर्त समर्पण नहीं करता, तब तक वह शाश्वत सुख को प्राप्त नहीं करता।

लोगों की इस भारी भीड़ में से केवल कुछ ही ईश्वर को गहनता से खोजते हैं। वे सब कहां हैं, जो दो सौ वर्ष पहले कहते थे कि यह संसार उनका है? वे सब चले गए और उनमें से शायद केवल कुछ ही लोग जीवन के सत्य को समझ पाए और ईश्वर के आत्म-साक्षात्कार प्राप्त भक्त बन पाए। फिर भी हर अगली पीढ़ी सोचती है कि यह जीवन वास्तविक है। आप जो यहां थोड़े से समय के लिए हैं, इस आडंबर को बहुत महत्व देते हैं। इसमें अत्यधिक लिप्त न हों। ईश्वर की खोज करें। वे अपने प्रेम के द्वारा हमें अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं। वस्तुओं की अभिवृद्धि और प्रकृति के परिशुद्ध नित्यक्रम के चमत्कार— वे इन सब चमत्कारों को हमें दिखा रहे हैं, जिन्हें हमें देखने की इच्छा हो सकती है। वे पुष्पों के ठीक पीछे विद्यमान हैं। उन्हें उनमें खोजें। वैज्ञानिकों ने अपनी खोज विवेकहीन प्रार्थना के द्वारा नहीं की, उन्होंने विज्ञान के नियमों का पालन किया। यदि आप सच्ची भक्ति के साथ वैज्ञानिक आध्यात्मिक नियमों का प्रयोग करें, तो ईश्वर स्वत ही आपके पास होंगे। अपने भक्ति के नेत्रों को खोलें, क्योंकि निरंतर उत्साह और आध्यात्मिक नियमों के पालन द्वारा आप उन्हें प्राप्त कर लेंगे।

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