धनतेरस के दिन बनेगा त्रिग्रही योग, जो भी कार्य किया जाएगा उसका तीन गुना फल होगा प्राप्त, नोट कर लें पूजन विधि
- इस बार धनतेरस पर सौ साल बाद एक साथ त्रिग्रही योग, त्रिपुष्कर योग, इंद्र योग, वैधृति योग और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का महासंयोग बनने जा रहा है। जो कई राशि के जातक के लिए शुभ माना जा रहा है।
दिवाली का पर्व धनतेरस से शुरू होकर पांच दिनों तक चलता है। धनतेरस में 'धन' का अर्थ धन और'तेरस' कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन से है। यही कारण है कि धनतेरस को धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। इस बार धनतेरस पर सौ साल बाद एक साथ त्रिग्रही योग, त्रिपुष्कर योग, इंद्र योग, वैधृति योग और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का महासंयोग बनने जा रहा है। जो कई राशि के जातक के लिए शुभ माना जा रहा है। इस दिन प्रदोष व्रत भी रखा जाता है, जिसमें शाम को भगवान शिव की पूजा करतेहैं। आचार्य अंजनी कुमार ठाकुर ने बताया कि त्रिपुर योग में जो भी कार्य किया जाएगा उसका तीन गुना फल प्राप्त होगा। इस साल धनतेरस पर 1 घंटा 41 मिनट का शुभ मुहूर्त प्राप्त होगा।
धनतेरस पर लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की होती पूजा: धनतेरस के दिन श्रद्धालुमाता लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करते हैं। देवी लक्ष्मी और कुबेर की कृपा सेधन और दौलत में वृद्धि होती है। सुख और समृद्धि बढ़ती है। धन्वंतरि की पूजा करने से व्यक्ति की सेहत अच्छी रहती हैऔर परिवार के लोग निरोगी रहते हैं। इसी मान्यता के कारण यह पर्व महत्वपूर्ण हो जाता है।
धनतेरस पूजन विधि
धनतेरस की शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं। कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं। पूजा करते समय कुबेर मंत्र का जाप करना चाहिए। फिर धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसके बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करना चाहिए। माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को भोग लगाएं और फूल चढ़ाना चाहिए। धनतरेस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। शास्त्रों में वर्णित है की कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी की रात यम देवता का पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसलिए इस दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखा जाता है।
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