Hindi Newsधर्म न्यूज़Dev Diwali is the festival of victory of divinity over demonism

दानवता के ऊपर देवत्व की विजय का पर्व है देव दीवाली

  • प्रथा के अनुसार देव दीपावली पर 11, 21, 51 व 108 की शुभ संख्या में आटे के दीपक जलाकर देवी-देवताओं की स्मृति में उन्हें नदी में प्रवाहित किया जाता है।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, ब्रह्मा कुमारी सुदेशTue, 12 Nov 2024 10:15 AM
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कार्तिक अमावस को मुख्य दीवाली होती है। उसी मास की पूर्णिमा को देव दीवाली मनाई जाती है। छोटी या बड़ी दिवाली हो या फिर देव दीवाली हो, दीपावली असल में खुशियों का त्योहार है। खुशी किस बात की! अंधकार के ऊपर रोशनी की, बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत की खुशी का उत्सव है दीवाली। कृष्ण के द्वारा नरकासुर का वध हो या राम के द्वारा रावण का अंत हो, यह असल में दानवता के ऊपर देवत्व की जीत है।

देव दीवाली के दिन भगवान शिव ने दानव त्रिपुरासुर को मारा था। इसके बाद सभी देवी- देवताओं ने हर्षोल्लास से देवलोक में दीये जलाकर दीपमाला उत्सव मनाया। तभी से इसे देव दीवाली के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता शिव की नगरी काशी में गंगा तट पर दीये जलाने आते हैं, इसलिए इसे देवताओं की दीवाली भी कहते हैं।

कहते हैं इस तिथि पर दीपदान करने से शिव और विष्णु के साथ ही हमारे पितृ भी तृप्त होते हैं। इसी दिन लोग बनारस के घाटों पर स्नान, तर्पण व दीपदान करते हैं। इस दिन शाम को दीपदान करना शुभ माना जाता है। प्रथा के अनुसार देव दीपावली पर 11, 21, 51 व 108 की शुभ संख्या में आटे के दीपक जलाकर देवी-देवताओं की स्मृति में उन्हें नदी में प्रवाहित किया जाता है।

इन प्राचीन प्रथा व परंपराओं के पीछे गहरा आध्यात्मिक सत्य छिपा हुआ है। देव दीवाली वास्तव में दैवी संपदा की आसुरी संपदा के ऊपर विजय की सूचक है। देखा जाए तो आटे से बना दीया मानव शरीर रूपी पुतले का प्रतीक है। उसमें, दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप अंतरात्मा पूर्ण रूप से तब जगती है, जब परमात्मा शिव के साथ मनुष्य-आत्मा ईश्वरीय ज्ञान व सहज साधना के द्वारा जुड़ जाती है तथा त्रिपुरारी शिव की सहायता से भीतर की तमो, रजो व सतो आदि तीनों भौतिक पुर व गुणों को अपने अधीन कर लेती है।

परमात्मा शिव प्रदत्त ज्ञान और योग बल से ही मनुष्य-आत्मा इन तीनों गुणों व पुरियों को पार कर त्रिगुणातीत बन सकती है। आसुरी प्रवृत्तियों को समाप्त कर देवीगुण व दैवी संपदाओं का अधिकारी यानी वैकुंठवासी बन सकता है। देव दीवाली का मतलब सिर्फ आत्म दीपक जलाकर अकेले वैकुंठ का अधिकारी बनना नहीं है। अपितु, खुद की आत्म ज्योति से अनेक मनुष्य आत्माओं के दीपकों को ईश्वरीय ज्ञान, देवी गुण और दैवी शक्तियों की रोशनी से जगमगाना है। देव दीवाली हमारे भीतर देवताओं जैसे संस्कार जगाती है।

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