Hindi Newsधर्म न्यूज़Basant Panchami 2025 Celebrating joy with purity is spring

शुचिता के साथ आनंद का उत्सव मनाना ही वसंत है

  • Basant Panchami 2025 : इस वसंत में होली के उद्दाम रंग हैं तो ज्ञान की देवी सरस्वती की पंचमी भी है, जो बराबर यह संदेश देती हैं कि आनंद और उल्लास में हमें शुचिता और विवेक का भी ध्यान रखना चाहिए, तभी वास्तविक वसंत है।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, आनंदमूर्ति गुरुमांTue, 28 Jan 2025 10:59 AM
share Share
Follow Us on
शुचिता के साथ आनंद का उत्सव मनाना ही वसंत है

Basant Panchami 2025: वसंत यानी उमंग। जब प्रकृति के साथ-साथ जीवन भी उमंग में झूमने लगे तो समझो वसंत आ गया है। इस वसंत में होली के उद्दाम रंग हैं तो ज्ञान की देवी सरस्वती की पंचमी भी है, जो बराबर यह संदेश देती हैं कि आनंद और उल्लास में हमें शुचिता और विवेक का भी ध्यान रखना चाहिए, तभी वास्तविक वसंत है।

देवी सरस्वती स्त्री के शरीर के रूप में हैं। स्त्री में ममत्व, देने का भाव, प्यार, पालन-पोषण होता है। सरस्वती का अर्थ है— रसपूर्ण। जो स्व के रस से पूर्ण है, जो अपने आत्मरस में स्थित है, उसी का नाम सरस्वती है।

रती पर जब पीले फूलों की चादर बिछने लगती है, जब मंद-मंद हवा मन में उत्साह का संचार करती है, और जब सूरज की किरणें मानो जीवन को नवजीवन का संदेश देती हैं, तब समझिए वसंत ऋतु ने अपनी दस्तक दे दी है। यह केवल ऋतु का परिवर्तन नहीं, बल्कि प्रकृति का एक अद्भुत उत्सव है, जो हृदय को भी उसी आनंद और उल्लास से भर देता है। इसी उल्लास को जीवन में संजोने का एक विशेष दिन है— वसंत पंचमी। यह वह दिन है, जब विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

ये भी पढ़ें:शुभ योग में बसंत पंचमी, जानें मुहूर्त, पूजा-विधि

वृंदावन में इसी दिन से होली के रंगों की शुरुआत होती है। यह दिन केवल ऋतु परिवर्तन का नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में नवचेतना और रचनात्मकता का प्रतीक है। शिक्षक, कलाकार, संगीतकार— ये सभी इस दिन देवी सरस्वती के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं, क्योंकि यह सृजन का महापर्व है।

आपने भी देवी सरस्वती की मूर्ति या चित्र देखा होगा। उसमें मां सरस्वती श्वेत कमल पर बैठी हुई हैं। कहीं-कहीं उनको हंस पर बैठे हुए दिखाया जाता है। उनका सुंदर मुख है, श्वेत वस्त्र हैं, चार भुजाएं हैं। सामने दो हाथों में वीणा, पीछे एक हाथ में माला और एक हाथ में ग्रंथ को धारण किए हुए दिखाया जाता है। कहीं-कहीं पर शंख पकड़े हुए भी दिखाया जाता है। सुंदर मुसकान वाली इस विद्या की देवी का पूजन वसंत पंचमी के दिन करते हैं।

देवी सरस्वती स्त्री के शरीर के रूप में हैं। स्त्री में ममत्व, देने का भाव, प्यार, पालन-पोषण होता है। सरस्वती का अर्थ है— रसपूर्ण। जो स्व के रस से पूर्ण है, जो अपने आत्मरस में स्थित है, उसी का नाम सरस्वती है। देवी सरस्वती के सामने दो हाथों में वीणा है। वीणा का अर्थ है— संगीत। वीणा तभी बजती है, जब उसके तार सुर में हों। तार न बहुत कसे हुए हों और न ही बहुत ढीले हों। वीणा इसी बात की ओर संकेत करती है कि हर व्यक्ति को अपनी जीवनरूपी वीणा को ठीक तरह से कसकर रखना चाहिए, न ज्यादा ढीला और न ही बहुत कसा हुआ होना चाहिए। वीणा का अर्थ है— संतुलन। मनुष्य किसी भी धर्म का हो, उसका जीवन संतुलित होना ही चाहिए। जिसका जीवन संतुलित नहीं, उसके जीवन में सुंदर संगीत नहीं बज पाएगा।

देवी के श्वेत वस्त्र पवित्रता का, सौम्यता का प्रतीक हैं। श्वेत रंग संदेश देता है कि हमारा जीवन पवित्र होना चाहिए, उसमें शुचिता होनी चाहिए। मन मैला न हो, वाणी में भी मिठास हो। गंदी भाषा बोलने का किसी को कोई अधिकार नहीं है। हमें यह जीभ ईश्वर का गुणगान करने के लिए मिली है, सत्य वचन बोलने के लिए मिली है। देवी सरस्वती को कहीं-कहीं हंस पर बैठे हुए दिखाया गया है। हंस के बारे में एक मान्यता है कि अगर दूध और पानी मिलाकर हंस के सामने रख दें तो वह सिर्फ दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है। सत्य और असत्य में क्या अंतर है, यह जिसको मालूम है, उसे हंस-वृत्ति का कहा जाता है। देवी के एक हाथ में माला है। माला से संकेत मिलता है कि मंत्र जप करना चाहिए। जैसे माला के मोतियों के अंदर एक ही सूत्र चलता है और वह एक सूत्र सब मणियों को जोड़कर रखता है। ऐसे ही हम सबके अंदर एक ही परमात्मा सूत्र रूप में मौजूद है और अपने अंदर के परमात्मा को पहचानने के लिए मन को अंतर्मुखी कर मंत्र जप करना चाहिए, सुमिरन करना चाहिए।

देवी सरस्वती के एक हाथ में ग्रंथ है। ग्रंथ सूचक है विद्या का, शास्त्र अध्ययन का। जिन ग्रंथों से हमें ज्ञान प्राप्त होता है, उन ग्रंथों से हमारा परिचय होना चाहिए। आपको यह बात समझनी होगी कि ग्रंथों में लिखे अक्षरों को पढ़ना कोई पढ़ना नहीं होता है। शास्त्रों के सूत्रों के सारगर्भित अर्थ का चिंतन भी होना चाहिए और उसके अनुसार अपने जीवन को ढालना भी चाहिए। ज्ञान, विद्या, संतुलन, समस्थिति, कला, नृत्य इन सब विद्याओं का देवी सरस्वती के रूप में एक रूपाकात्मक विग्रह हमें जीवन में प्राप्त हुआ है। इस दिन सब लोग वसंत मनाते हुए केसरी रंग के वस्त्र पहनते हैं, पीले रंग का भोजन बनाते हैं। पंजाब में इस दिन पीले रंग की पतंगें उड़ाई जाती हैं। पीला रंग प्रतीक है— आनंद का, खिलने का।

अगर सही मायने में वसंत पंचमी मनानी है, तो इस दिन आप संकल्प लीजिए कि आपके जीवन में शुद्धता, शुचिता, कलात्मकता, अध्ययन, संगीत, नृत्य और ज्ञान आए। अपने जीवन में देवी सरस्वती के वास्तविक स्वरूप को समझकर उसको आत्मसात करें। उनके गुणों को अपने अंदर धारण करें, तभी यह वसंत पंचमी का उत्सव आपके लिए वास्तव में आनंदमय होगा।

अगला लेखऐप पर पढ़ें