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Baikunth Chaturdashi : बैकुंठ चतुर्दशी व्रत रखने से बैकुंठ धाम की होती है प्राप्ति

  • कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। इस त्योहार को बैकुंठ चौदस नाम से भी जाना जाता है। इस साल 14 नवंबर, गुरुवार को बैकुंठ चतुर्दशी है। इस तिथि पर भगवान शिव और भगवान श्री हरि विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 13 Nov 2024 10:55 PM
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कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। इस त्योहार को बैकुंठ चौदस नाम से भी जाना जाता है। इस साल 14 नवंबर, गुरुवार को बैकुंठ चतुर्दशी है। इस तिथि पर भगवान शिव और भगवान श्री हरि विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान विष्णु का नाम जपने वाले बैकुंठ धाम को प्राप्त करते हैं। इस दिन सप्तऋषि का पूजन भी करना चाहिए।

एक बार श्रीहरि विष्णु, देवाधिदेव महादेव का पूजन करने काशी पहुंचे और एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान शिव के पूजन का संकल्प लिया। जब वह पूजन करने लगे तो भगवान शिव ने एक कमल पुष्प कम कर दिया। यह देख श्री हरि ने सोचा कि मेरे नेत्र भी तो कमल जैसे हैं और उन्हें अर्पित करने को वह प्रस्तुत हुए। यह देख भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी। इस दिन जो मनुष्य पहले आपका पूजन करेगा, वह बैकुंठ को प्राप्त होगा। यह भी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी में भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंप देते हैं और विश्राम करते हैं। इन चार माह में सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैंऔर बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव सृष्टि का भार फिर से भगवान विष्णु को सौंप देते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने श्री हरि को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। बैकुंठ चतुर्दशी को श्री हरि और भगवान शिव की उपासना करने से पापों का नाश होता है। इस दिन श्रीमद्भागवतगीता और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। बैकुंठ चतुर्दशी पर सप्तऋषि की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जो भी बैकुंठ चतुर्दशी व्रत का पालन करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। इस तिथि को भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्ति का पर्व माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और श्री हरि विष्णु एक रूप में रहते हैं। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। इस दिन हरिहर मिलन होता है।

बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत रखने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। इसी दिन महाभारत के युद्ध के बाद मारे गए लोगों का भगवान श्रीकृष्ण ने श्राद्ध कराया था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य करना चाहिए। इससे समस्त पापों का प्रायश्चित होता है। बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में तालाब, नदी के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए। मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का इस दिन पूजन कर भगवान शिव की अर्चना करते हैं वे बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम पाते हैं। इस त्योहार को लेकर पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद जी बैकुंठ पंहुचते हैं। भगवान विष्णु उनके आने का कारण पूछते हैं तो नारद जी कहते हैं प्रभु ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सके। श्री हरि बोले- कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे। इसके बाद श्री हरि जय-विजय को बुलाते हैं और कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं।

इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरूचि को ध्यान में रखकर तुत या गया है।

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