Hindi Newsधर्म न्यूज़Aja ekadashi vrat katha in hindi

आज है अजा एकादशी, यहां पढ़ें कथा, विश्नामित्र ने कैसे हरिशचंद्र से सबकुछ छीना?

  • Aja ekadashi vrat katha : भाद्रपद महीने में दो एकादशी आती हैं। जन्माष्टमी के बाद पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादसी कहते हैं। इस साल अजा एकादशीआज 29 अगस्त को मनाई जा रही है अगर आप भी व्रत रख रहे हैं, तो यहां व्रत की कथा पढ़ सकते हैं-

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानThu, 29 Aug 2024 03:46 AM
share Share

भाद्रपद महीने में दो एकादशी आती हैं। जन्माष्टमी के बाद पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं।  बता दें कि कहा जाता है भगवान विष्णु को एकादशी पर्व बहुत प्रिय है। साल में 24 एकादशी पड़ती हैं। भाद्रपद माह में  इस साल अजा एकादशी 29 अगस्त को मनाई जा रही है। उदया तिथि के कारण एकादशी 29 अगस्त को मनाई जा रही है और इसका पारण अगले दिन किया जाएगा। अगर आप भी व्रत रख रहे हैं, तो यहां व्रत की कथा पढ़ सकते हैं-

अजा एकादशी व्रत कथा

पुराणों के अनुसार एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। कृष्ण बोले-भादो मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। इसका महत्व गौतम मुनि ही जानते हैं, जिसने युगों का परिवर्तन कर दिया। कथा इसकी ऐसे है कि सूर्यवंश में राजा हरिशचंद्र अयोध्या में हुए थे। उनके द्वार पर एक श्याम पट लगा था, जिसमें मणियों से लिखा हुआ यह लेख था -इस द्वार में मुंह मांगा दान दिया जाएगा। विश्वामित्र ने पढ़कर कहा-यह लेख मिथ्या है। हरिशचंद्र ने उत्तर दिया परीक्षा कर लो। विश्वामित्र बोले -अपना राज्य मुझे दे दो। हरिशचंद्र बोले राज्य आपका है और क्या चाहिए? विश्वामित्र बोले दक्षिणा बी तो लेनी है। राहु-केतू औरशनि की पीड़ा भोगनी सहज है, साढ़ेसाती का कष्ट भी सुगम है, मेरी परीक्षा में पास होना बड़ा कठिन है। आपको मुर्दे जलाने पड़ेंगे, तेरी रानी को मेरा दास बनना होगा। अगर इन अत्याचारों से आपको डर नहीं लगता तो जय गणेश करके हमारे साथ काशी चलो। राजा ने धर्म का सत्कार किया। रानी दासी हो गई, राजा सेवक हो गए। पुत्र को नाग बनकर विश्वामित्र ने डस लिया। ऐसी परिस्थिति में भी राजा हरिशचंद्र ने सत्य का त्याग न किया, लेकिन मन में शोक अग्नि भड़क रही थी। उस समय गौतम मुनि के दिल में दया आई।  

अनेक कष्ट सहे, लेकिन वो सत्य से विचलित नहीं हुए, तब एक दिन उन्हें ऋषि गौतम मिले, उन्होंने गौतम ऋषि से इसका उपाय पूछा, उन्होंने उन्हें अजा एकादशी की महिमा सुनाते हुए यह व्रत करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि समस्त संकट दूर हो जाएंगे। ऐसा कहकर मुनि अंतर्ध्यान हो गए। रराजा हरीश्चन्द्र ने अपनी सामर्थ्यानुसार इस व्रत को किया। जिसके प्रभाव से उन्हें न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ बल्कि परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में वह प्रभु के परमधाम को प्राप्त हुए। तब से उनके राज में सभी एकादशी का व्रत करते थे। 

 

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेख