गुजरात के आधे वोट भी हिमाचल में पा जाती आप, तो भाजपा नहीं कांग्रेस को मिल जाती मात
आम आदमी पार्टी ने गुजरात में सीटें भले ही पांच ही पाईं, लेकिन बढ़े वोट परसेंट के दम पर राष्ट्रीय दल की दौड़ में शामिल हो गई। कांग्रेस का दावा है कि गुजरात में आप ने उसका खेल खराब कर दिया है।
आम आदमी पार्टी ने गुजरात में सीटें भले ही पांच ही पाईं, लेकिन बढ़े वोट परसेंट के दम पर राष्ट्रीय दल की दौड़ में शामिल हो गई। कांग्रेस का दावा है कि गुजरात में आप ने उसका खेल खराब कर दिया है। कांग्रेस के प्रवक्ताओं के मुताबिक अगर आम आदमी पार्टी ने यहां पर उसका वोट नहीं काटा होता तो वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती थी। अब कांग्रेस के इस दावे में कितना दम है यह तो पता नहीं, लेकिन अगर हिमाचल में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट परसेंटेज में सेंध लगाई होती तो निश्चित था कि कांग्रेस के लिए मुश्किल बढ़ जाती। आइए समझते हैं क्या है वोट परसेंटेज का गणित...
गुजरात के वोटों का गणित
अगर गुजरात की बात करें तो यहां पर पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार उसके पास 57 सीटें अधिक हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 99 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थी। अगर उस चुनाव के वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को 49.05 % वोट मिला था, जबकि कांग्रेस ने 41.44% वोट हासिल किए थे। वहीं, इस बार भाजपा का वोट परसेंट 52.50 फीसदी तो कांग्रेस का 27.28 परसेंट और आम आदमी पार्टी का करीब 13 फीसदी है। यानी मतलब साफ है, भाजपा का वोट परसेंट तो बहुत कम बढ़ा है, लेकिन उसकी सीटें काफी बढ़ गई हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी ने सीटें भले कम पाईं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है।
हिमाचल प्रदेश की बात
अब चलते हैं हिमाचल प्रदेश की तरफ। हिमाचल प्रदेश की 68 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 40 सीटों पर जीत दर्ज की है। भाजपा को 25 सीटें मिली हैं और तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। यहां पर आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन खास निराशाजनक रहा है। आप ने 67 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे और खाता खोलने में विफल रही। अगर वोट फीसदी की बात करें तो यहां आम आदमी पार्टी को केवल 1.1 प्रतिशत वोट मिले हैं। वहीं, कांग्रेस और भाजपा के मत प्रतिशत में एक फीसदी से भी कम अंतर रहा। कांग्रेस को जहां 43.9 फीसदी वोट मिले, वहीं भाजपा को 43 फीसदी वोट मिले हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि अगर आम आदमी पार्टी ने यहां जरा सा भी जोर लगाया होता तो वह कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती थी।
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