कड़ाके की ठंड और बर्फबारी से सेब उत्पादन का उत्पादन बढ़ेगा
अच्छे सेब उत्पादन के लिए दिसंबर से लेकर मार्च तक बर्फबारी जरूरी जनवरी के महीने में बारिश व बर्फबारी के कारण उत्तरकाशी जिले में कड़ाके की सर्दी हो जाती
जनवरी माह में बारिश और बर्फबारी के कारण उत्तरकाशी जिले में कड़ाके की सर्दी हो जाती है। इस सर्दी में भले ही जनमानस ठिठुर कर रह जाता है, लेकिन यही ठंड सेब उत्पादन के लिए वरदान साबित होता है। मोरी के हजारों किसानों की आर्थिकी सेब उत्पादन पर निर्भर है। हर साल यहां से करोड़ों का सेब देश के विभिन्न राज्यों की मंडी में पहुंचता है। ऐसे में सेब उत्पादन वाले इलाकों में शानदार पैदावार के लिए कड़ाके की सर्दी बेहद जरूरी है। दिसंबर से लेकर मार्च तक के चार महीनों में एक हजार चिलिंग आवर्स यानी 1000 सर्द घंटे पूरे हों तो बेहतर सेब उत्पादन की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इन चिलिंग आवर्स पर ही मोरी के हजारों बागवानों की उम्मीदें टिकी होती हैं। इसके साथ ही यहां सर्दी में करोड़ों रुपये के सेब कारोबार की उम्मीदें भी बलवती हो उठती हैं। सेब की सेहत के लिए चिलिंग आवर्स जरूरी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि सेब के पोधों में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है। सेब के पौधे दिसंबर माह में सुस्त अवस्था यानी डोरमेंसी में होते हैं। उन्हें इस अवस्था से बाहर आने के लिए सात डिग्री तापमान औसतन 1000 घंटे तक चाहिए। जिसे चिलिंग आवर्स कहा जाता है।
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