Hindi Newsउत्तराखंड न्यूज़There will be no water left in Ganga even for Aachman PCB latest report on pollution has raised concern

गंगा में ‘आचमन’ के लिए भी नहीं बचेगा जल! प्रदूषण पर PCB की ताजा रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता

  • पीसीबी की रिपोर्ट में एसटीपी से निकलने वाले पानी को एनजीटी के मानकों के अनुरूप सही नहीं बताया जा रहा है। एनजीटी के मानकानुसार एसटीपी से निकलने वाले पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 230 एमपीएन तक होनी चाहिए।

Himanshu Kumar Lall हिन्दुस्तान, देहरादून, रवि बीएस नेगीThu, 21 Nov 2024 10:01 AM
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प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड(पीसीबी)की ओर से अक्तूबर में जारी रिपोर्ट में बताया गया कि अक्तूबर में एसटीपी से गंगा में गया पानी सितंबर की तुलना में ज्यादा खराब रहा। जल निगम व जल संस्थान के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी)से निकलने वाले पानी ने अक्तूबर में भी गंगा को प्रदूषित किया।

रिपोर्ट के अनुसार, ओल्ड सस्पेंशन चमोली के एसटीपी (.05 एमएलडी) से सितंबर में निकले पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 280 मोस्ट प्रोबेबल नंबर (एमपीएन) थी, जो अक्तूबर में 1600 एमपीएन पर पहुंच गई है।

गंगोत्री में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 540 से 920 एमपीएन पर पहुंच गई। बदरीनाथ में यह मात्रा 920 एमपीएन तक है। पीसीबी की रिपोर्ट से जल संस्थान में खलबली मची है। मुख्यालय से टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार, नैनीताल, देहरादून के इंजीनियरों को दिनभर निर्देश जारी किए जाते रहे।

इस संबंध में महाप्रबंधक डीके सिंह ने बताया कि रिपोर्ट निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई है। उन्होंने तीन दिन में दो और लैबों से सैंपल लेकर रिपोर्ट मुख्यालय को भेजने के निर्देश दिए। सिंह ने निर्देश दिए कि एसटीपी का संचालन निर्धारित मानकों के अनुरूप किया जाए। रखरखाव और संचालन में गड़बड़ी मिलने पर उन्होंने सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।

जल संस्थान की रिपोर्ट में सब मानक के अनुसार

पीसीबी की रिपोर्ट में एसटीपी से निकलने वाले पानी को एनजीटी के मानकों के अनुरूप सही नहीं बताया जा रहा है। एनजीटी के मानकानुसार एसटीपी से निकलने वाले पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 230 एमपीएन तक होनी चाहिए।

दूसरी ओर, जल संस्थान के डिवीजनों से जो रिपोर्ट मुख्यालय भेजी जा रही है, उसमें मात्रा, मानकानुसार बताई जा रही है। इस पर जीएम सिंह ने बताया कि कई बार सैंपल लेने के तरीके से भी रिपोर्ट में अंतर की संभावना रहती है। इसे ध्यान में रखते हुए पानी के सैंपल दोबारा लेकर जांच को भेजे जा रहे हैं।

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