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जिम कॉर्बेट में ‘जंगल के राजा’ को क्यों सता रहा वायरस से खतरा? क्या है कैनाइन डिस्टेंपर और इसके लक्षण

जिम कार्बेट नेशनल पार्क के जंगल में शेर को वायरस का खतरा सता रहा है। हालांकि अभी खतरे की कोई आहट नहीं है लेकिन पार्क प्रबंधन इंसानों जैसी गलती नहीं करना चाहता। प्रभंधन चौकन्ना हो गया है।

Sneha Baluni राजू वर्मा, रामनगरSat, 30 Sep 2023 09:04 AM
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वायरस के आगे पूरी दुनिया नतमस्तक है। बीते सालों में कोरोना ने अपनी ताकत से ये एहसास करा दिया। इस बार कॉर्बेट में जंगल का राजा वायरस से डरा है। हालांकि अभी खतरे की कोई आहट नहीं है लेकिन पार्क प्रबंधन इंसानों जैसी गलती नहीं करना चाहता। पार्क प्रबंधन ऐसे जानवरों को लेकर चौकन्ना हो गया है जिनमें कैनाइन डिस्टेंपर वायरस की मौजूदगी रहती है। इसे लेकर अध्ययन भी किया जाएगा। पार्क के पड़ोसी गांवों में पालतू कुत्ते-बिल्ली की निगरानी के लिए विशेष नेटवर्क बनाने की तैयारी है। 

पार्क के आसपास अब बीमार कुत्ते-बिल्ली नहीं रहेंगे और लावारिस जानवरों की मौजूदगी शून्य की जाएगी‌। ताकि जंगल के राजा तक वायरस किसी हाल में न पहुंचे। साल 2018 में गुजरात के गिर अभ्यारण्य में 21 शेरों की मौत में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का नाम सामने आने के बाद से ही कॉर्बेट प्रबंधन इसे लेकर सतर्क था। लेकिन पिछले दिनों बाघों की गणना के आंकड़े आने के बाद इस पर जमीनी स्तर पर भी काम शुरू हो गया है। 

पार्क के भीतर बाघों की संख्या बढ़ने से पहले ही उनका दायरा सीमित हो रहा था। अब संख्या और बढ़ गई है। ऐसे में बाघ आसपास के क्षेत्रों में भोजन की तलाश में चहलकदमी बढ़ा सकता है। प्रबंधन नहीं चाहता कोई बीमार जानवर बाघ का शिकार बने। ऐसे जानवरों के शिकार से कैनाइन डिस्टेंपर वायरस के पार्क के भीतर पहुंचने का खतरा है। यह बहुत तेजी से फैलने वाला वायरस है एक बार गलती से पार्क के भीतर पहुंच गया तो कई जानवरों को चपेट में ले सकता है।

वायरस और बीमारी के लक्षण

कैनाइन डिस्टेंपर या हार्डपैड रोग एक वायरल बीमारी है जो विभिन्न प्रकार के जानवरों को प्रभावित करती है। जिनमें घरेलू और जंगली प्रजातियां भी शामिल हैं। कुत्तों, लोमड़ियों, पांडा, भेड़िये, बड़ी बिल्लियों के साथ ही अन्य प्रजातियों को भी यह रोग हो सकता है। इसके लक्षण व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। सांस लेने में तकलीफ, खांसी, उल्टी, गंभीर निमोनिया के अलावा खूनी दस्त और मृत्यु तक हो सकती है। यह लार, छींक आदि के जरिये होता है और किडनी पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है।

वायरस से निपटने के लिए केन्द्र को भेजा प्रस्ताव

पार्क के अधिकारियों के अनुसार केंद्र सरकार को वायरस पर शोध के लिए प्रस्ताव भेजा है। जल्द इसकी मंजूरी मिलने की उम्मीद है। शोध टीम में वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ, डॉक्टर आदि शामिल होंगे। फिलहाल अपने स्तर से पालतू जानवरों की निगरानी शुरू कर दी गई है।

वैक्सीनेशन भी शुरू होगा

- शोध के साथ-साथ पार्क के आसपास कुत्ते बिल्लियों का वैक्सीनेशन भी किया जाएगा।
- कुत्ते-बिल्लियों के अलावा लोमड़ियों, पांडा, भेड़िये और जंगली बिल्लियों को भी शोध के दायरे में लिया जाएगा।

प्रदेश में पहली बार कॉर्बेट में शोध

पार्क के डिप्टी डायरेक्टर दिगंत नायक ने बताया कि शोध के लिए प्रक्रिया चल रही है। उत्तराखंड में पहली बार कैनाइन डिस्टेंपर वायरस को लेकर शोध किया जाएगा। इससे बाघ सहित अन्य वन्यजीवों को इस वायरस से बचाया जा सकता है। कॉर्बेट के वन्यजीवों के आबादी में जाने से खतरा अधिक होने की आशंका है।

कॉर्बेट पार्क के डिप्टी डायरेक्टर दिगंत नायक ने कहा, 'कैनाइन डिस्टेंपर वायरस को लेकर शोध की तैयारी की जा रही है। पहली बार राज्य के कॉर्बेट में शोध होगा। इसके लिए पार्क प्रशासन ने प्रस्ताव बनाकर उच्चाधिकारियों को भेजा है। शोध टीम में विशेषज्ञ व वाइल्ड लाइफ डॉक्टर शामिल होंगे।'

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