उत्तराखंड निकाय चुनाव रिजल्ट 2018: त्रिवेंद्र रावत के काम पर वोटर्स ने लगाई मुहर
Uttarakhand Nikay Chunav Result 2018: निकाय चुनावों के ताजा परिणामों को एक तरह से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कामों पर जनता की मुहर के रूप में देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मिली इस...
Uttarakhand Nikay Chunav Result 2018: निकाय चुनावों के ताजा परिणामों को एक तरह से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कामों पर जनता की मुहर के रूप में देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मिली इस उत्साहजनक जीत से भाजपाई गदगद हैं और भविष्य के चुनावों के लिए उन्हें एकतरह से संजीवनी मिल गई है। राज्य में निकाय चुनावों को त्रिवेंद्र सरकार के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा था। बीजेपी ने 7 में से पांच मेयर पद जीते, जबकि दो कांग्रेस का कब्जा रहा। त्रिवेंद्र की अगुवाई में भाजपा ने पहले थराली विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल की और अब निकाय चुनावों में भी वह बड़ी जीत की ओर अग्रसर है। यह परिणाम त्रिवेंद्र सरकार के पौने दो साल के विकास कार्यों पर जनता की मुहर भी है। लोकसभा चुनाव लगभग छह महीने बाद होने हैं। वर्तमान में राज्य की लोस की पांचों सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। आगामी चुनाव में भी भाजपा पिछले प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी।
इन्वेस्टर्स समिट से बना माहौल
उत्तराखंड के माली आर्थिक हालात सुधारने के लिए उठाए कदमों से भी राज्य में उत्साहजनक माहौल बना है। अक्तूबर माह में आयोजित दो दिवसीय इन्वेस्टर्स समिट में देश-विदेश के निवेशक पहुंचे। बाकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया। सरकार ने समिट के जरिए राज्य में निवेश को 1.25 करोड़ रुपये के करार किए। हालांकि, इसके परिणाम आगे चलकर ही सामने आएंगे, लेकिन कम से कम सरकार ने एक नींव तो रखी है। इससे राज्य में पलायन पर कुछ हद तक अकुंश लगना तय माना जा रहा है।
त्रिवेंद्र के सीएम बनने के बाद सचिवालय में दलालों को धंधा लगभग बंद हो गया है। उत्तराखंड में आमतौर पर कुछ लोग सचिवालय और सरकारी कार्यालयों में घूमकर जनता में अपनी ऐसी छवि बनाते रहे हैं जैसे कि वे किसी भी काम को चुटकी में करा सकते हैं। त्रिवेंद्र सरकार में फिलहाल ऐसे लोग अभी तक सामने नहीं आए। सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति पर कायम रहने से जनता में बेहतर संदेश गया है। पहली बार भ्रष्टाचार के मामले में राज्य में दो आईएएस और सात पीसीएस अफसर सस्पेंड हुए, जबकि 20 से अधिक अफसर व कर्मचारी जेल की सलाखों तक पहुंचे हैं। चुनावों में भाजपा को इसका भी फायदा मिला है।
त्रिवेंद्र सरकार के पौने दो साल के कार्यकाल के दौरान कई अहम जनहित फैसलों के कानूनी पचड़ों में फंसने से पार्टी के रणनीतिकार निकाय चुनावों को लेकर चिंतित थे। इनमें खासकर अतिक्रमण विरोधी अभियान, नजूल भूमि पॉलिसी निरस्त, बरसाती नदियों के किनारे कब्जे हटाने, अस्थायी कर्मचारियों के नियमितीकरण और दून का मास्टर प्लान निरस्त जैसे कई अहम नीतियां शामिल हैं। इससे प्रदेशभर में जनता में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ीं, जबकि इसमें सरकारी की तरफ से कोई लापरवाही नहीं रही। इन सब के बावजूद त्रिवेंद्र सरकार ने निकाय चुनावों में पार्टी को नंबर वन पर लाने में कामयाब रही।
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