देश के 10 हिमालयी राज्यों में मतदान में सबसे पीछे उत्तराखंड, इस राज्य में हुई बंपर वोटिंग
सुबह के पहले दो घंटे में मतदाताओं में जो उत्साह देखने को मिला, दोपहर होते-होते वो काफूर हो गया। हालांकि, मौसम ने भी साथ दिया था लेकिन वोटर घरों से बाहर निकलकर मतदान करने को नहीं पहुंचे थे।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान हुआ। हैरानी की वाली बात है कि मतदान को लेकर उत्तराखंड का प्रदर्शन एक बार फिर निराशाजनक रहा है। साल 2019 के चुनाव के मुकाबले मत प्रतिशत साढ़े छह फीसदी गिरा है।
पहले चरण में जिन आठ हिमालयी राज्यों में मतदान हुआ, उनमें सबसे कम वोटिंग उत्तराखंड में ही हुई है। यहां 55.89 फीसदी मतदान हुआ, जो सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर की तुलना में काफी कम है।
भारत निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण में शुक्रवार को 21 राज्यों में मतदान कराया। आठ हिमालयी राज्यों में सर्वाधिक 80.03 प्रतिशत मतदान सिक्किम में हुआ। इसके अलावा मेघालय, अरुणाचल और मणिपुर में 70 फीसदी से अधिक मतदान हुआ।
उत्तराखंड में 2019 के लोस चुनाव में 61.50 प्रतिशत वोट पड़े थे। मतदाता जागरूकता के विभिन्न अभियान चलने से उम्मीद थी कि मतदाता वोट डालने जरूर निकलेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्रदेश की पांचों सीटों में से कुछ में 50 प्रतिशत लोग वोट डालने पहुंचे ही नहीं।
सुबह के पहले दो घंटे में मतदाताओं में जो उत्साह देखने को मिला, दोपहर होते-होते वो काफूर हो गया। हालांकि, मौसम ने भी साथ दिया था लेकिन वोटर घरों से बाहर निकलकर मतदान करने को पोलिंग बूथों तक नहीं पहुंचे थे।
यह माने जा रहे कारण
1 दलों के प्रति उदासीनता: राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनावों में लगातार कम हो रहे मत प्रतिशत का प्रमुख कारण लोगों की राजनीतिक दलों के प्रति उदासीनता है। इतिहासकार पद्मश्री प्रो.शेखर पाठक का मानना है कि राजनीतिक दल अब लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे। नौकरी, रोजगार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, जल-जंगल-जमीन के संरक्षण पर काम होना जरूरी है।
2 मतदान के प्रति अरुचि: भूगोल के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. बीआर पंत का कहना है कि कई सुविधाओं के लिए लोग अब महानगरों, कस्बों, एवं जिला मुख्यालयों को पलायन करने लगे हैं। गांव में पुश्तैनी मकान और जमीन की वजह से उनका नाम वोटर लिस्ट में जुड़ा होता है। लेकिन वोटिंग के दिन लोग कई किलोमीटर का पैदल सफर तय करने गांव नहीं जाना चाहते हैं।
3 स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: प्रो. शेखर पाठक कहते हैं कि वर्तमान समय में चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों को खूब उछाला जा रहा है। धर्म-जाति के नाम पर वोटरों को लुभाने की कोशिश होती है। जबकि, क्षेत्र और राज्य के मुद्दे गायब कर दिए जाते हैं। इसी अनदेखी के कारण लोग मानते हैं कि राजनीतिक दल उनके लिए कुछ नहीं करेंगे।
4 विश्लेषण की कमी: प्रो. बीआर पंत का मानना है कि घटते मतदान के पीछे एक बड़ी वजह कुल आबादी और मतदाताओं के सटीक विश्लेषण की कमी भी है। कई बार किसी गांव की आबादी कम होती है और मतदाता सूची में नाम अधिक होते हैं। ऐसे में सटीक विश्लेषण होना बेहद जरूरी है।
5 गायब दिखा विपक्ष: राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि लोकतंत्र में विपक्ष की अहम भूमिका होती है। लेकिन देश में पिछले कुछ समय से विपक्ष की मौजूदगी कम होती जा रही है। चुनाव के लिए प्रत्याशी चुनने और प्रचार करने में देरी ने भी विपक्ष की भूमिका पर प्रतिकूल असर डाला है।
2019 की तुलना में गिरा मतदान प्रतिशत
उत्तराखंड के लिए चिंता की बात यह भी है कि वर्ष 2019 में राज्य में 61.50 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार इसे 75 प्रतिशत तक ले जाने के दावे किए जा रहे थे। मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरूषोत्तम कहते हैं, राज्य में मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास किए गए थे। मतदान प्रतिशत कम होने की वजहों की समीक्षा की जाएगी।
राज्य मतदान प्रतिशत
त्रिपुरा 81.60
सिक्किम 80.24
असम 75.95
मेघालय 74.50
अरुणाचल 72.74
मणिपुर 72.17
जम्मू-कश्मीर 68.27
नागालैंड 56.91
मिजोरम 56.60
उत्तराखंड 55.89
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