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‘वर्दी का फर्ज’ निभाने को नहीं मानी ‘पिता की नसीहत’

वर्दी का फर्ज निभाने पिता की नसीहतें भी मेजर चित्रेश के कदम नहीं रोक पाई। शुक्रवार रात ही मेजर चित्रेश बिष्ट ने पिता को उनकी जन्मदिन की शुभकामनाएं फोन पर दीं और बताया कि आगे जाना पड़ रहा है, ऊपर से...

लाइव हिन्दुस्तान, देहरादून। महेश्वर प्रसाद सिंह Sun, 17 Feb 2019 01:54 PM
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वर्दी का फर्ज निभाने पिता की नसीहतें भी मेजर चित्रेश के कदम नहीं रोक पाई। शुक्रवार रात ही मेजर चित्रेश बिष्ट ने पिता को उनकी जन्मदिन की शुभकामनाएं फोन पर दीं और बताया कि आगे जाना पड़ रहा है, ऊपर से ऑर्डर आए हैं। पिता ने शादी का हवाला देकर हेडक्वार्टर में ही रहने की  नसीहत दी। लेकिन बेटे चित्रेश ने बात अनसुनी कर फोन मां को देने के लिए कह दिया। बेटे चित्रेश से 24 घंटे पहले हुई बातों को पिता एसएस बिष्ट बार-बार दोहरा रहे हैं। एसएस बिष्ट पुलिस में दंबग इंस्पेक्टर के तौर पर जाने जाते रहे हैं। इस तरह के हालात उन्होंने कई बार संभाले हैं, लेकिन आज वह बुरी तरह टूट चुके हैं। बार-बार कह रहे हैं कि मैंने कभी किसी का बुरा तो किया नहीं, लेकिन ऐसा क्या हुआ। एक बार मेरी सुन लेता। कल रात जन्मदिन की बधाई दे रहा था। कह रहा था हेडक्वार्टर से एक ऑपरेशन के लिए भेज रहे हैं। मैंने साफ कह दिया था कि तेरी शादी होने वाली है, अब इधर-उधर जाने की जरूरत नहीं है। हेडक्वार्टर को बता दे। लेकिन उसने पूरी बात नहीं सुनी और मां से बात करने लगा। मां से भी शादी की तैयारी पर बात की और आखिर में कहा कि एक काम के लिए आगे जा रहा हूं। मैं पीछे से कहता रह गया, लेकिन उसने मां से वापस लौटकर बात करता हूं कहकर फोन काट दिया। मैंने रेखा को भी कहा कि उसे समझाती तो सही, लेकिन चित्रेश ने एक नहीं सुनी। जिद्दी जो था, एक बार सुन तो सकता था, कुछ बात समझ में आती तो उसकी, लेकिन कहां कुछ सोचते तो हैं नहीं। 

नेहरू कॉलोनी की गलियों में यादें ही बाकी 
दून का लाल शहीद मेजर चित्रेश अब तिरंगे में लिपटे घर लौटेंगे। नेहरू कॉलोनी की जिन गलियों में पले-बढ़ेअब उनमें सिर्फ उसकी यादें रह जाएंगी। मोहल्ले के लड़कों के साथ चित्रेश का क्रिकेट खेलना हो या फिर नुक्कड़ पर जाकर दोस्तों के साथ खड़े रहने का सिलसिला, अब बस यादों का हिस्सा रह गया। इस बार चित्रेश जब लौटेेगे तो उन गलियों को नहीं, निहार पायेंगे, जिनमें पले-बढ़े। उन गलियों में सिर्फ उसके अमर रहने के नारे लगेंगे। शहीद मेजर चित्रेश सिंह बिष्ट के बचपन को नेहरू कॉलोनी ने करीब से देखा। सेंट जोसेफ एकेडमी से स्कूली शिक्षा लेने के बाद पुणे मिलेट्री एकेडमी से एनडीए किया और फिर 2010 में आईएमए से पासआउट होकर सेना में अफसर बने। चित्रेश का यह सफर अभी भी नेहरू कॉलोनी की यादों में है। हिम पैलेस होटल के पास नेगी परिवार के यहां चित्रेश अक्सर आते थे। इसके अलावा स्कूल के दिनों में नेहरू कॉलोनी का कोई ऐसा पार्क बचा नहीं है, जहां चित्रेश ने क्रिकेट न खेली हो। दोस्तों संग मस्ती न की हो। चित्रेश को सोनू नाम से बुलाने वाले मोहल्ले के लोग भी गहरे सदमे में हैं। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा कि अब चित्रेश अपनी कॉलोनी में कभी नहीं आएगा।  उनका कहना है कि उन्होंने कभी सोचा तक ना था कि कभी ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा। उन्होंने सरकार से पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की मांग की। 

सेना में शानदार करिअर
छोटी सी उम्र में देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए मेजर चित्रेश बिष्ट का सेना में करिअर शानदार रहा। साल 2010 में आईएमए से पास होने के आठ सालों में उनकी पहचान जाबांज अफसर के तौर पर थी। भारतीय सेना में इंजीनयर विंग के अधिकारी चित्रेश बम डिफ्यूज करने में मास्टर थे। उनके नाम विभिन्न सैन्य अभियानों में 22 से ज्यादा बम डिफ्यूज करने का भी रिकार्ड था। सूत्रों ने बताया कि आज अंतिम समय पर भी वह अपने काम में जुटे थे। तीन आईईडी डिफ्यूज कर चुके थे, चौथे को डिफ्यूज करने बढ़ रहे थे और इसी दौरान चित्रेश शहीद हो गए।  

 

 

 

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