Hindi Newsउत्तराखंड न्यूज़Corbett National Park: Gypsies will become history after 26 years forest department include high tech vehicles

कॉर्बेट नेशनल पार्क : 26 साल चलकर इतिहास बन जाएंगी जिप्सियां, जानिए क्या है वन विभाग का प्लान

कॉर्बेट पार्क में वर्षों से जंगल सफारी के लिए संचालित हो रहे जिप्सी वाहन में बदलाव कर हाईटेक वाहन थार व फोर्स क्रूजर लाने की तैयारियां की जा रही हैं। इसके लिए दोनों ही वाहनों का कॉर्बेट में बीते...

Himanshu Kumar Lall रामनगर। राजू वर्मा, Sun, 6 March 2022 01:52 PM
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कॉर्बेट पार्क में वर्षों से जंगल सफारी के लिए संचालित हो रहे जिप्सी वाहन में बदलाव कर हाईटेक वाहन थार व फोर्स क्रूजर लाने की तैयारियां की जा रही हैं। इसके लिए दोनों ही वाहनों का कॉर्बेट में बीते शुक्रवार को ट्रायल भी हो चुका है। ऐसा निर्णय मारुति कंपनी के नई जिप्सियां नहीं बनाने के कारण लिया जा रहा है। कॉर्बेट में 26 साल से जिप्सियां चल रही हैं। 

1936 में कॉर्बेट को हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था। तब लोग अपने निजी वाहनों से ढिकाला घूमने जाते थे। इसके बाद नेशनल पार्क को रामगंगा नेशनल पार्क से पहचान मिली। 1957 में रामगंगा नेशनल पार्क का नाम कॉर्बेट रखा गया। जिप्सी एसोसिएशन के अध्यक्ष गिरीश चंद्र धस्माना बताते हैं कि पार्क गठन के बाद से ही लोग ढिकाला का भ्रमण करते थे।

इसके लिए तीन प्राइवेट बसें रामनगर व एक नैनीताल से ढिकाला की सैर को चलती थी। अधिकांश लोग अपने वाहनों से ही कॉर्बेट घूमते थे। 2005 में पहली बार जिले के आरटीओ विभाग ने पार्क में जिप्सी चलाने को 11 परमिट जारी किए थे। कॉर्बेट के ईको टूरिज्म विभाग के प्रभारी ललित आर्य ने बताया कि कॉर्बेट में जिप्सी पंजीकरण के बाद 17 साल तक परिवहन विभाग अनुमति देता है।

2022 में दर्जनों जिप्सियां रिटायर हो जाएंगी। बताया कि 2005 में साढ़े तीन लाख की जिप्सी खरीदी जाती थी। दो साल पहले जिप्सियां बननी बंद हो गईं, तब जिप्सी साढ़े छह लाख रुपये में मिलती थी। बताया कि थार व फोर्स क्रूजर वाहन की कीमत 12 लाख से शुरू है। 

कॉर्बेट में 1996 में लाई गई पहली जिप्सी
पर्यटन कारोबारी हरिमान सिंह ने बताया कि रामनगर में कॉर्बेट पार्क का भ्रमण कराने के लिए पहली जिप्सी 1996 में आंध्र प्रदेश से लाई गई थी, जिसका नंबर एचबी-2879 था। उन्होंने बताया कि एक लाख 20 हजार रुपये में जिप्सी खरीदी गई थी, लेकिन यह जिप्सी कुछ समय तक के लिए चली। 

कॉर्बेट में जिप्सी चलाने को पहला परमिट धस्माना का
जिप्सी एसोएशिन के अध्यक्ष गिरीश चंद्र धस्माना ने बताया कि निजी वाहनों के कॉर्बेट में प्रवेश के बाद लोग नियम तोड़ने लगे थे। निजी वाहनों पर रोक लगाने को लेकर कड़ा संघर्ष किया गया। उन्होंने बताया कि 2005 में 11 परमिट हल्द्वानी आरटीओ ने जारी किए। सबसे पहला परमिट उनको मिला था। वह 11 लोगों में शामिल थे। 

जिप्सियों का किराया देते थे 350 रुपये
पर्यटन कारोबारियों के अनुसार 2005 के बाद जिप्सियों का ट्रेंड बढ़ता गया। उस समय जिप्सियों का किराया 350 रुपये होता था। इसके अलावा बिजरानी व ढिकाला जाने के लिए 30 रुपये एंट्री फीस, 50 रुपये रोड टैक्स व 50 रुपये गाइड को देने पड़ते थे। यह सिलसिला काफी सालों तक चला। 2011 में परमिटों को पार्क प्रशासन ऑनलाइन देने लगा। अब डे विजिट का एक परमिट करीब 950 रुपये का मिलता है। जिप्सी का किराया 28 सौ रुपये है। 

जिस आधुनिक वाहन का कॉर्बेट प्रशासन सफारी के लिये चयन कर रहा है, उसकी आसमान छूती कीमत को जिप्सी मालिक वहन करने में सक्षम नहीं है। कहीं ऐसा ना हो स्थानीय लोगों के रोजगार पर सीधी चोट पहुंचे।
नरेंद्र शर्मा, जिप्सी कारोबारी

जिप्सियां नहीं बन रही हैं तो चयनित 50 महिला चालक के लिए थार व फोर्स क्रूजर वाहनों को खरीदने की तैयारियां हैं। जो रिटायर होंगी, उनकी जगह यही वाहन खरीदने हैं। अन्य टाइगर रिजर्वों की सफारी में भी फोर्स क्रूजर जैसे वाहन संचालित किए जाते हैं। 
मदन जोशी, पर्यटन कारोबारी 

नई जिप्सियां नहीं बनने के कारण ये जल्द बंद हो जाएंगी। 
पर्यटन कारोबारी, जिप्सी मालिकों की सहमति के बाद ही हाईटेक वाहनों के संचालन पर मंथन किया जाएगा। महिला चालकों को वीरचंद्र गढ़वाली योजना के तहत वाहन दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। 
राहुल, निदेशक, कॉर्बेट नेशनल पार्क

जिप्सियां इतिहास बन जाएंगी। 2005 के बाद से जिप्सियों का प्रचलन हुआ है। 2022 में 2008 मॉडल की जिप्सियां भी कॉर्बेट से बाहर होंगी। कॉर्बेट के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय लोगों के साथ अधिकारी व कर्मचारियों ने भी मेहनत की है। 
गिरीश चंद्र धस्माना, अध्यक्ष जिप्सी एसोसिएशन

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