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उत्तराखंड में ग्लोबल वार्मिंग से सिकुड़कर दरक रहे 'हैंगिंग ग्लेशियर'

उत्तराखंड के हैंगिंग ग्लेशियरों में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण बेस कमजोर हो रहे हैं, जिससे एवलांच की घटनाएं बढ़ रही हैं। प्रो. राजीव उपाध्याय ने कहा कि माणा क्षेत्र में हालिया एवलांच...

Newswrap हिन्दुस्तान, हल्द्वानीSat, 1 March 2025 12:19 PM
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उत्तराखंड में ग्लोबल वार्मिंग से सिकुड़कर दरक रहे 'हैंगिंग ग्लेशियर'

विशेषज्ञ राय: - बेस कमजोर के कारण हैंगिंग ग्लेशियरों में हो रही एवलांच की घटनाएं

- ग्लेशियरों से जुड़े आबादी वाले क्षेत्रों में एवलांच अलर्ट सिस्टम हो विकसित

- कुविवि के भू-गर्भ वैज्ञानिक प्रो. राजीव उपाध्याय की बद्रीनाथ के माणा क्षेत्र में हुई घटना पर हिन्दुस्तान से साझा की राय

जहांगीर राजू

हल्द्वानी। उत्तराखंड के हैंगिंग ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर पड़ रहा है। ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में तापमान बढ़ने के कारण हैंगिंग ग्लेशियर सिकुड़कर दरक रहे हैं। बद्रीनाथ के माणा क्षेत्र में हुई एवलांच की घटना इसी का कारण हैं। बेस कमजोर हो जाने के कारण तापमान बढ़ने से हैंगिंग ग्लेशियरों में दरारें आ जाती हैं। जिससे वह सिकुड़कर एवलांच की घटना को अंजाम देते हैं।

वरिष्ठ भूगर्व वैज्ञानिक प्रोफेसर राजीव उपाध्याय के मुताबिक हैंगिंग ग्लेशियरों बेस बहुत कमजोर होता है। कई स्थानों पर उनका बेस तक नहीं होता है। वर्तमान में तापमान अधिक होने के कारण हैंगिंग ग्लेशियरों में व्यापक असर पड़ रहा है। बेस कमजोर होने के कारण हैंगिंग ग्लेशियरों में बड़ी दरारें आ रही हैं। जिससे वह कमजोर होकर दरक रहे हैं। हैंगिंग ग्लेशियरों के दरकने के एवलांच व हिमस्खलन की बड़ी घटनाएं हो रही हैं। पिछले वर्ष नंदादेवी ग्लेशियर में एवलांच आने के कारण तपोवन में हिमस्खलन की बड़ी घटना हुई। इस दौरान बर्फ की चट्टानें अपने साथ बड़ी मात्रा में मलबा, पत्थर व पेड़ों को बहाकर ले गया। जिससे आबादी वाले क्षेत्रों में बड़ा नुकसान हुआ। बद्रीनाथ के माणा क्षेत्र में हुई एवलांच की यह घटना भी तपोवन की घटना का दूसरा रूप है। हिमालयी ग्लेशियरों में जलवायु परिवर्तन के चलते एवलांच की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इस तरह की घटनाओं के दौरान नुकसान को कम करने के लिए उत्तराखंड के सुदूरवर्ती ग्लेशियरों से जुड़े आबादी वाले क्षेत्रों में एवलांच अलर्ट सिस्टम विकसित किए जाने की जरूरत है। यदि एवलांच आने से पहले आसपास की आबाद को अलर्ट कर दिया जाए तो इससे बड़े नुकसान से बचा जा सकता है।जिसके लिए डीआरडीओ के चंडीगढ़ स्थित स्नो एंड एवलांच रिसर्च सेंटर से मदद ली जा सकती है।

भूकंप वाले क्षेत्रों में हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ी:

प्रोफेसर राजीव उपाध्याय ने बताया कि बद्रीनाथ का माणा क्षेत्र भूकंप के जोन-5 में शामिल है। जिसके चलते यह क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील है। कमजोर बेस वाले ग्लेशियरों में लगातार छोटे-छोटे भूकंप आते हैं। जिससे हैंगिंग ग्लेशियरों में एवलांच की घटनाएं बढ़ रही हैं।

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