मानवीय मूल्यों का विस्तार करना ही साहित्य: प्रो.दीक्षित
यूओयू में भारतीय ज्ञान परंपरा में संस्कृत की केंद्रीय भूमिका विषय पर आयोजित कार्यशाला के पांचवें दिन लखनऊ विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित कहा कि...
यूओयू में भारतीय ज्ञान परंपरा में संस्कृत की केंद्रीय भूमिका विषय पर आयोजित कार्यशाला के पांचवें दिन लखनऊ विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित कहा कि कविता ईश्वरीय प्रेरणा से होती है। उन्होंने कहा कि साहित्य का काम संस्कृति बोध के साथ जोड़ना है। लेकिन साहित्य आज इससे इतर चल रहा है। शब्दों की बाजीगरी साहित्य नहीं, साहित्य का सही अर्थ मानवीय मूल्यों का विस्तार करना है।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला में जेएनयू के संकाय प्रमुख प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने कहा कि 'आत्मानम् विद् हि' अर्थात भारतीय साहित्य हमें अपने आपको जानने का ज्ञान देता था। 1840 में प्रथम बार परीक्षा एवं पाठ्यक्रम प्रणाली का प्रारंभ संस्कृत के लिए किया गया था। उन्होंने कहा कि साहित्य का काम चित्तशुद्धि का मार्ग निर्देशन करना है। विशिष्ट वक्ता प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि इतिहास की सही समझ रखने के लिए संस्कृत को जानना होगा। इतिहास के मूल में है संस्कृत, क्योंकि भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत पुराना है। कार्यक्रम का संचालन कार्यशाला संयोजक डॉ. देवेश कुमार मिश्र ने किया। जूम के माध्यम से संचालित हो रही इस कार्यशाला में 160 से अधिक प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। साथ ही यूट्यूब चैनल पर कार्यशाला को सैकड़ों शोधार्थी देख रहे हैं। इस दौरान यूओयू के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी, संस्कृत भारती उत्तराखंड की प्रांत अध्यक्ष जानकी त्रिपाठी, प्रो. जया तिवारी, डॉ. सूर्यभान सिंह, डॉ. गगन सिंह, डॉ. नीरज जोशी, डॉ. प्रभाकर पुरोहित, अखिलेश सिंह, जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राकेश रयाल, तकनीकी सहायक राजेश आर्या, विनीत मौजूद रहे।
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