High Court Quashes Dehradun Court Proceedings in Dowry Case हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामले में देहरादून कोर्ट की कार्रवाई को किया रद्द, Haldwani Hindi News - Hindustan
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हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामले में देहरादून कोर्ट की कार्रवाई को किया रद्द

नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून की न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत में चल रहे एक दहेज मामले की कार्यवाही को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता हिमांशु सिंह ने कहा कि उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर में केवल व्यक्तिगत रिश्ते की...

Newswrap हिन्दुस्तान, हल्द्वानीMon, 16 June 2025 10:14 PM
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हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामले में देहरादून कोर्ट की कार्रवाई को किया रद्द

नैनीताल, संवाददाता। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में देहरादून के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में चल रही एक आपराधिक मामले की कार्यवाही को रद्द कर दिया है। यह मामला दहेज निषेध अधिनियम के तहत दर्ज एक प्राथमिकी से संबंधित था, जिसमें आरोपी पर विवाह का वादा कर धोखाधड़ी, भावनात्मक क्षति और दहेज की मांग जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकलपीठ ने देहरादून निवासी हिमांशु सिंह की याचिका पर यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता ने देहरादून निवासी महिला की ओर से दर्ज की गई एफआईआर को निरस्त करने की मांग की थी। महिला ने 2017 में हिमांशु पर दहेज उत्पीड़न, आपराधिक धमकी के तहत मामला दर्ज कराया था।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शिकायत में मुख्य रूप से एक असफल निजी रिश्ते और उससे हुई भावनात्मक चोट का उल्लेख है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई ठोस प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि दोनों के बीच विधिवत विवाह संपन्न हुआ था। विवाह की वैधानिक और पारंपरिक प्रक्रिया पूरी न होने के कारण दहेज निषेध अधिनियम की धाराएं लागू नहीं होतीं। हिमांशु सिंह ने अपनी याचिका में बताया कि जब उसे महिला के पूर्व संबंध और उस पर घरेलू हिंसा अधिनियम एवं हिंदू विवाह अधिनियम के तहत चल रही कानूनी कार्रवाई की जानकारी मिली, तो उसने विवाह से इनकार कर दिया था। महिला का आरोप था कि हिमांशु ने शादी का झांसा देकर रिश्ता शुरू किया और बाद में अपने वादे से मुकर गया, जिससे उसे भावनात्मक और आर्थिक क्षति हुई। साथ ही, उस पर और उसके परिवार पर उपहार और पैसों की मांग करने व धमकाने का भी आरोप लगाया गया था। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि मामला विवाह के झूठे वादे और व्यक्तिगत संबंधों की टूटने तक ही सीमित था और इसमें दहेज कानूनों के तहत दंडनीय अपराध की स्पष्ट पुष्टि नहीं होती। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही को निरस्त कर दिया

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