उत्तरायणी मेले में भव्य शोभायात्रा, झांकियों ने दिया जनजागृति का संदेश
उत्तराखंड का उत्तरायणी मेला कुमाऊं की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। 44वें उत्तरायणी मेले की शोभायात्रा में पर्वतीय संस्कृति, पारंपरिक वेशभूषा, और धार्मिक झांकियों का अद्भुत प्रदर्शन हुआ। यात्रा में...
हल्द्वानी, संवाददाता। उत्तराखंड की पहचान केवल इसके हिमालयी सौंदर्य और तीर्थस्थलों से नहीं है, बल्कि इसकी समृद्ध लोक संस्कृति और मेलों से भी है। उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक उत्तरायणी मेला कुमाऊं की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का अनोखा उत्सव है। पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच हीरानगर की ओर में आयोजित 44वें उत्तरायणी मेले की शोभायात्रा ने मंगलवार को नगर में सांस्कृतिक सौहार्द और परंपराओं की बयार बहा दी। कुमाऊं की जीवंत परंपरा, देवी-देवताओं की झांकियां, और सांस्कृतिक विरासत का अनोखा प्रदर्शन देखने को मिला। जोहार, गोरखा समाज सहित विभिन्न संप्रदाय के लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा में शोभायात्रा में भाग लिया। पहाड़ी संस्कृति, खानपान, वेशभूषा और लोकगीतों का अनूठा संगम देखने को मिला। यात्रा की शुरुआत हीरानगर स्थित उत्थान मंच से दोपहर एक बजे शुरू हुई जो जेल रोड तिराहा, कालाढूंगी तिराहा, रोडवेज, तिकोनिया, वर्कशॉप लाइन, ताज चौराहा, सिंधी चौक से होते हुए कालाढूंगी तिराहा से दोबारा उत्थान मंच हीरानगर पहुंची। शोभायात्रा में कुमाउनी, जोहारी और गोरखा समाज के लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा में भाग लिया। यात्रा में 15 आकर्षक झांकियों के माध्यम से धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश दिए गए। जगह-जगह पुष्पवर्षा से स्वागत कर लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। शोभायात्रा का नेतृत्व अध्यक्ष खड़क सिंह बगडवाल और संरक्षक हुकुम सिंह कुंवर ने ध्वजवाहक के रूप में किया। यात्रा में बाबा केदारनाथ, बागनाथ मंदिर बागेश्वर, गंगोत्री और यमुनोत्री की झांकियों सहित अन्य शामिल रहीं। कैंची धाम की झांकी में प्रसिद्ध संत बाबा नीम करौरी के स्थापित किए गए आश्रम और मंदिर का वर्णन कर दिखाया गया। राज्य पुष्प ब्रह्म कमल की झांकी भी लोगों को खूब भाई। कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की झांकी ने नशा मुक्ति और क्रियाशाला सेवा समिति ने गो संरक्षण का संदेश दिया।
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