जब तक कहा न जाए मत बोलो यह कहती बांसुरी: आचार्य ममगांई
सरस्वती विहार में श्रीमद्भागवत महापुराण से पूर्व कलश यात्रा का आयोजन किया गया। महिलाओं ने पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ शोभायात्रा निकाली। कथा वाचन के दौरान आचार्य शिवप्रसाद ममगांई ने भगवान कृष्ण की...
सरस्वती विहार में श्रीमद्भागवत महापुराण से पूर्व कलश यात्रा का आयोजन किया गया। पारम्परिक वाद्य यंत्र ढोल दमाऊं की थाप महिलाओं ने कलश यात्रा निकाली। गोविन्द जय गोपाल जय के जय घोष से यह शोभायात्रा सरस्वती विहार शिव मन्दिर से होते हुए कथा पंडाल पर पहुंची। लड्डू गोपाल जी का अभिषेक कर मन्दिर समिति के पदाधिकारियों ने श्रद्धालुओं संग शोभायात्रा पर पुष्पवर्षा की। कथा वाचन करते हुए आचार्य शिवप्रसाद ममगांई ने भगवान कृष्ण की छह प्रिय वस्तुओं में से एक मुरली की व्याख्या करते हुए कहा कि बांसुरी भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय है, क्योंकि बांसुरी में तीन गुण है। पहला बांसुरी में गांठ नहीं है। जो संकेत देता है कि अपने अंदर किसी भी प्रकार की गांठ मत रखो, यानी मन में बदले की भावना मत रखो। दूसरा बिना बजाए यह बजती नहीं, मानो बता रही है कि जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो। तीसरा जब भी बजती है मधुर ही बजती है, जिसका अर्थ है कि जब भी बोलो मीठा बोलो। जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते हैं, तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं। ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से देखें तो बांसुरी नकारात्मक ऊर्जा और कालसर्प के प्रभाव को दूर करता है। श्री कृष्ण की कुण्डली में भी कालसर्प योग था। इसलिए श्री कृष्ण को बांसुरी से स्नेह था। मौके पर मन्दिर समिति के महासचिव गजेन्द्र भण्डारी, कैलाश बड़ाकोटी, ललिता प्रसाद बड़ाकोटी, आचार्य दामोदर प्रसाद सेमवाल, ललिता प्रसाद, आचार्य हितेश पंत, आचार्य हिमांशु मैठाणी, सूरज पाठक, सुनील चमोली, भैरव दत्त कण्डवाल, मूर्तिराम बिजल्वाण, गिरीश ड्यूंडी, आशीष गुसाईं, दीपक काला, वेद प्रकाश भट्ट, कुलानन्द पोखरियाल, सुशांत जोशी मौजूद थे।
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