दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे के लिए टूटेगा ब्रिटिश काल का एतिहासिक फॉरेस्ट बंगला
देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे के लिए ब्रिटिश काल में बनी 136 साल पुराना जंगलात बंगला (फॉरेस्ट रेस्ट हाउस) टूटने जा रहा है। निर्माण एजेंसी ने फॉरेस्ट बंगले के आसपास ध्वस्तीकरण का काम शुरू भी कर दिया है।
देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे के लिए ब्रिटिश काल में बनी 136 साल पुराना जंगलात बंगला (फॉरेस्ट रेस्ट हाउस) टूटने जा रहा है। निर्माण एजेंसी ने फॉरेस्ट बंगले के आसपास ध्वस्तीकरण का काम शुरू भी कर दिया है। एतिहासिक पहचान का नामोनिशान मिटाने पर दून रहवासियों में नाराजगी भी है।
देहरादून को सहारनपुर मोहंड से जोड़ने वाली सड़क पर डाट काली से पहले दाएं हाथ पर ब्रिटिश कालीन जंगलात का बंगला है, जो सड़क एक्सप्रेस-वे निर्माण के लिए जमींदोज होने जा रहा है। देहरादून के इतिहास की जानकारी रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय भट्ट ने बताया कि डाट काली में देहरादून की सीमा में प्रवेश करते ही गोरखा शासनकाल में निगरानी चौकी हुआ करती थी। अंग्रेजों ने यहां 1886 में जंगलात का सामान रखने के लिए माल गोदाम, एक बड़ी रसोई और बंगले का निर्माण करवाया था। आजादी के बाद भी समय-समय पर इस बंगले को सजाया संवारा गया। इसे आशारोड़ी फॉरेस्ट रेस्ट हाउस के नाम से जाना जाता है। वन विभाग ने 2007-08 में भी इसका रिनोवेशन भी कराया था। भट्ट ने बताया कि जंगल के बीच यह खूबसूरत फॉरेस्ट बंगला अब इतिहास में दफन होने जा रहा है।
युवा एक्टिविस्ट हिमांशु चौहान ने बताया कि सरकारों के हमारी विरासत को संजोने और संवारने में लापरवाही बरती है। इस एतिहासिक भवन को बचाया जा सकता था। पिछले 30 साल की रखवाली कर रहे गोपाल भी दुखी हैं। कहते हैं अब ऐसा बंगला नहीं बन सकेगा। राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक अखिलेश तिवारी का कहना है कि लैंड ट्रांसफर की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। फॉरेस्ट बंगले का अभी मुआवजा नहीं मिला है। इसका करीब डेढ़ करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया है। एनएचएआई मुआवजा देगा या नया फॉरेस्ट रेस्ट हाउस बनाकर देगा इसपर अभी निर्णय होना बाकी है।
कभी पगडंडी थी, अब एक्सप्रेस-वे बनेगा
देहरादून। विजय भट्ट बताते हैं कि 1823 में तत्कालीन सुपरिन्टेंडेन्ट ऑफ दून मिस्टर शोर ने देहरादून को मैदानी इलाकों से जोड़ने के लिए रुड़की-देहरा-राजपुर सड़क का निर्माण करवाया। उससे पहले यह पगडंडी हुआ करता था। देहरादून और सहारनपुर के सजायाफ्ता कैदियों को लगाकर यहां सड़क बनाई। पगडंडी चौड़ी कर बैलगाड़ियां चलाने के लिए सड़क बनाई गई। धीरे-धीरे मोटर वाहन चलने लगे। पुराने जमाने का पगडंडी मार्ग अब एक्सप्रेस-वे में बदलने जा रहा है। हालांकि इसके लिए बड़ी संख्या पेड़ भी काटे जा रहे हैं।
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