गढ़वाल यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों में एडमिशन होगा मुश्किल, 40 फीसदी सीटें घट जाएंगी
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय ने संबद्ध कॉलेजों में चल रहे पाठ्यक्रमों की सीटों में बड़ी कटौती की है। विश्वविद्यालय ने यूजीसी नियमों और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेशों का हवाला देते हुए नए सत्र में...
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय ने संबद्ध कॉलेजों में चल रहे पाठ्यक्रमों की सीटों में बड़ी कटौती की है। विश्वविद्यालय ने यूजीसी नियमों और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेशों का हवाला देते हुए नए सत्र में सीटों की संख्या वर्ष 2009 के आधार पर तय कर दी है।
गढ़वाल विवि के रजिस्ट्रार एके झा की ओर से इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया गया है। जिसमें उन्होंने एकेडमिक काउंसिल की बैठक का हवाला देते हुए कहा है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश पर सीटों की संख्या में कटौती की गई है। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि 15 जनवरी 2009 को गढ़वाल विवि के केंद्रीय विश्वविद्यालय बनते वक्त राज्य के संबद्ध कॉलेजों में यूजी और पीजी में जो सीटों की संख्या तय थी, उतनी सीटों पर शैक्षणिक सत्र 2018-19 में एडमिशन होंगे।
2009 से 2018 तक जितनी भी सीटें बढ़ाई गईं थी, नए सत्र में उन सभी सीटों को खत्म कर दिया गया है। इसका सीधा असर यूनिवर्सिटी से संबद्ध 170 कॉलेजों पर पड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक अगले सत्र में स्नातक, परास्नातक स्तर पर 40 फीसदी सीटें कम हो जाएंगी। इस संबंध में रजिस्ट्रार एके झा ने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेश पर यह कार्रवाई की गई है और यूजी में एक विषय में अधिकतम 80 और पीजी में अधिकतम 60 सीटें निर्धारित की गई हैं। इन सीटों की हर साल नवीनीकरण की प्रक्रिया होगी।
पूर्व कुलपति निशाने पर
इस पूरे मामले को गढ़वाल विवि के बर्खास्त कुलपति प्रो.जेएल कौल प्रकरण से जोड़कर देखा जा रहा है। वर्ष 2014 के बाद प्रो.कौल के कार्यकाल में संबद्ध कॉलेजों में मनमाने ढंग से सीटें बढ़ाने के आरोप भी लगे थे और उनकी जांच में भी यह बात सामने आई थीं। माना जा रहा है कि इन्हीं अनियमितताओं के चलते ताजा फैसला लिया गया है।
भेदभाव का लगाया आरोप
डीबीएस पीजी कालेज प्राचार्य डा. ओपी कुल श्रेष्ठ ने गढ़वाल विवि के बर्खास्त कुलपति प्रो. कॉल पर सीधे तौर पर आरोप लगाया है कि उन्होंने निजी स्वार्थ के लिए कई कालेज और संस्थानों की सीटें बढ़ाई। अब विवि ने केवल संबद्ध कालेजों और संस्थानों में ही सीटें कम करने आदेश दिए हैं, जो सीधे तौर पर संबद्ध कॉलेजों के साथ भेदभाव है।
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