मसालों की खेती बनेगी बंजर खेतों को आबाद करने में मददगार
जंगली जानवरों के आतंक से बंजर हो चुकी जमीन को आबाद करने के लिए काश्तकारों को मशालों की खेती के लिए प्रेरित किया...
जंगली जानवरों के आतंक से बंजर हो चुकी जमीन को आबाद करने के लिए काश्तकारों को मसालों की खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा। ग्राम्य विकास विभाग ने इस दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। काश्तकारों को उद्यान और कृषि विभागों के माध्यम से अदरक, हल्दी, मिर्च, धनियां आदि का बीज उपलब्ध कराने के साथ मनरेगा से बंजर भूमि को आबाद करने में मदद की जाएगी। विभाग की पहल रंग लाई तो बंजर हो चुके खेतों में फिर से फसल लहलहानी शुरू हो जाएगी। जिले के कई गांवों में जंगली सुअर, बंदर, लंगूर और सेही का आतंक इतना अधिक है कि काश्तकारों ने खेतीबाड़ी करना छोड़ दिया है। जंगली जानवरों का आतंक पलायन का कारण भी बन रहा है। उद्यान विभाग की सर्वे के अनुसार जंगलों के आस-पास लगे गांवों में 10 फीसदी काश्तकारों ने खेती करना छोड़ दिया है और 30 फीसदी काश्तकारों ने औद्यानिक गतिविधियां कम कर दी हैं। जानवरों से फसलों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम न किए जाने के कारण खेती का रकबा लगातार घट रहा है। ऐसी स्थिति में अब मशालों की खेती को बंजर भूमि आबाद करने का सशक्त माध्यम माना जा रहा है। पीडी एचजी भट्ट ने बताया कि काश्तकारों को बंजर भूमि आबाद करने के लिए न केवल मनरेगा से मदद की जाएगी बल्कि उन्हें कृषि और उद्यान विभाग के माध्यम से बड़ी मात्रा में अदरक, हल्दी, मिर्च, धनियां, बड़ी इलायची आदि के बीच उपलब्ध कराए जाएंगे। उन्होंने बताया कि इन फसलों को जंगली जानवर नहीं खाता। इनकी खेती से काश्तकारों की आय भी काफी अधिक होगी। पीडी ने बताया कि काश्तकारों को मनरेगा से चारा बीज भी मिलेगा जिसके कि वह खाली छोड़े गए खेतों में उसकी बुवाई कर सकें। इससे पशुपालन व्यवसाय को भी बढ़ावा मिलेगा। योजना के क्रियान्वयन के लिए सभी ब्लाकों से जंगली जानवरों के आतंक से खेती छोड़ चुके किसानों की सूची मांगी गई है।
अब तक कम मिलता था बीज
चम्पावत। उद्यान विभाग की ओर से अब तक काश्तकारों को सब्सिडी पर अदरक, हल्दी आदि का बीज दिया जाता था, पर बीज मात्रा इतनी कम होती थी कि काश्तकार बड़े भूभाग पर उसकी खेती नहीं कर पाते थे। नई व्यवस्था में काश्तकारों को जरूरत के मुताबिक बीज उपलब्ध कराया जाएगा।
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