Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Yogi government Two gifts from on same day orders issued on filling vacant posts and quota in government department

एक ही दिन योगी सरकार की दो सौगात, सरकारी विभागों में खाली पदों को भरने और कोटा पर आदेश जारी

यूपी की योगी सरकार ने बुधवार को युवाओं के पक्ष में दो बड़े फैसले लिये। पहला सरकारी विभागों में खाली पड़े अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के पदों को भरा जाएगा।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, लखनऊWed, 20 Nov 2024 09:46 PM
share Share

यूपी की योगी सरकार ने बुधवार को युवाओं के पक्ष में दो बड़े फैसले लिये। पहला सरकारी विभागों में खाली पड़े अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के पदों को भरा जाएगा। पद खाली रहने पर जिम्मेदारी भी तय कर दी। कहा कि एससी/एसटी वर्गों के पद खाली रहने पर अब सीधे तौर पर विभागाध्यक्षों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। सभी विभागों से 10 सालों में इन वर्गों के भरे गए पदों के बारे में रिपोर्ट मांगी गई है। पद अगर खाली रह गए हैं तो इसकी वजह भी पूछी गई है। वहीं, हाईस्कूलों में शिक्षकों के पदोन्नति का कोटा फिर से बहाल किया जाएगा। सरकार जल्द ही इस दिशा में कदम उठाने जा रही है। इसके तहत एलटी एवं प्रवक्ता ग्रेड के 50 प्रतिशत पदों को पदोन्नति से भरे जाने के नियम लागू किए जाएंगे।

उत्तर प्रदेश विधान मंडल की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों और विमुक्त जातियों संबंधी संयुक्त समिति का गठन किया गया है। इस समिति का मुख्य काम सरकारी विभागों में इन वर्गों के पदों को भरे जाने को लेकर समय-समय पर समीक्षा करते हुए रिक्त पदों को भराना है। समिति सरकारी विभागों में आरक्षित पदों को भरने को लेकर वस्तु स्थिति का पता लगाने जा रही है। इसीलिए विभागों से यह पूछा गया है कि उनके यहां कितने पद भरे गए हैं।

खासकर नगर निकायों और विकास प्राधिकरणों, आयुष विभाग, पंचायती राज विभाग और खेल एवं युवा कल्याण विभाग से इसके बारे में स्थिति स्पष्ट करने को गया है। इन विभागों की 28 और 29 नवंबर को समिति के समक्ष बैठक भी होगी। इसमें विभागों को बताना होगा कि उनके यहां कुल कितने स्वीकृत पद हैं। समूह ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ और ‘घ’ के कितने पद हैं। इसमें से आरक्षित वर्गों के लिए कितने पद रखे गए।

खासकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और विमुक्त जातियों के कितने पद हैं व इनमें से कितने भरे गए हैं। विभागों से पिछले 10 सालों में इन पदों के बारे में पूरी जानकारी मांगी गई है। इसमें बिंदुवार पूरी जानकारी मांगी है। विभागों को वर्षवार रिक्तियों को भरने को लेकर किए गए प्रयासों के बारे में भी जानकारी देने होगी।

हाईस्कूलों में शिक्षकों के पदोन्नति का कोटा फिर से बहाल करेगी सरकार

लखनऊ। उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग के गठन के बाद से दोनों संवर्गों में पदोन्नत कोटे से भरे जाने वाले पदों पर पदोन्नति नहीं हो रही है। इससे दोनों संवर्गों में पदोन्नति से भरे जाने वाले 10 हजार से अधिक पद खाली पड़े हैं। इससे स्कूलों में नियमित शिक्षण कार्य पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ऐसे में पूर्व के माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग के नियमों के अनुसार ही फिलहाल पदोन्नति कोटे के पदों को भरने का शासन स्तर पर निर्णय किया गया है।

जानकारों की माने तो पूर्व के माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग के अधिनियम तीन की धारा -12 में संयुक्त शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय समिति के माध्यम से शिक्षकों की पदोन्नति के लिए चयन का प्रावधान है। इसी अधिनियम की धारा 18-1 के तहत कार्यवाहक संस्था प्रधानों का दो महीने से रिक्त पदों पर वरिष्ठ शिक्षक की तदर्थ आधार पर पदोन्नत कर अनुमोदन एवं नियमित प्रधानों के समान ही वेतन तक प्रदान करने के भी नियम हैं।

शिक्षा सेवा आयोग के गठन के बाद से लगभग दो वर्षों से न तो एलटी ग्रेड में और न ही प्रवक्ता ग्रेड में 50 प्रतिशत पादोन्नति कोटे में पदोन्तियां हो पा रही हैं और न ही कार्यवाहक संस्था प्रधानों का अनुमोदन एवं वेतन भुगतान संभव हो पा रहा है। परिणामस्वरूप शिक्षा संगठनों से लेकर शिक्षक दल तक इसका लगातार विरोध कर रहे थे।

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के वरिष्ठ शिक्षक नेता ओम प्रकाश त्रिपाठी कहते हैं कि यह गंभीर मामला है। शिक्षा सेवा चयन आयोग के अधिनियम-2023 में किए गए प्रावधानों का समावेश कर पूर्व की अधिनियमित व्यवस्थाओं को बहाल कर शिक्षकों के साथ हो रही नाइंसाफी को दूर किया जा सकता है। शिक्षक नेता का कहना है कि उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा आयोग के गठन के बाद से ही नियमानुसार, 50 फीसदी पदोन्नत कोटे में शिक्षकों की पदोन्नतियां नहीं हो पा रही हैं।

नतीजा रिक्त पदों पर कार्य करने वाले शिक्षक बिना अनुमोदन व अतिरिक्त प्रभार वाले पद का वेतन मिले काम करने पर मजबूर है। इसके अलावा कार्यरत संस्था प्रधानों का भी अनुमोदन एवं वेतन भुगतान नहीं किया जा रहा है। इस प्रकार उन्हें बिना अनुमोदन एवं वेतन के नियमित संस्था प्रधानों के ही समान सभी दायित्व का निर्वहन करना पड़ रहा है जो समान कार्य के लिए समान वेतन के सामान्य सिद्धांतों एवं अधिकारों के विपरीत है।

अगला लेखऐप पर पढ़ें