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तकनीकी शिक्षा से होगी आठ ट्रिलियन की इकोनॉमी : धर्मेंद्र प्रधान

केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आईआईटी बीएचयू के दीक्षांत समारोह में कहा कि तकनीकी शिक्षा से ही भारत को आठ ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाया जा सकता है। उन्होंने युवाओं को जॉब क्रिएटर बनने और...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीMon, 28 Oct 2024 07:29 PM
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वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि देश को आठ ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का रास्ता तकनीकी और प्रौद्योगिकी शिक्षा से ही निकलेगा। स्वतंत्रता भवन सभागार में सोमवार को आईआईटी बीएचयू के 13वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर दीक्षांत संबोधन देते हुए केंद्रीय शिक्षामंत्री ने अगले 25 वर्षों में देश का विजन युवाओं के सामने रखा। उन्होंने कहा कि दुनिया में अब यह कहा जाने लगा है कि 21वीं सदी भारत की सदी होगी। समारोह में 1959 छात्र-छात्राओं को डिग्री प्रदान की गई। युवाओं का आह्वान करते हुए केंद्रीय शिक्षामंत्री ने कहा कि आप लाख-करोड़ के पैकेज के चक्कर में मत पड़िए। जॉब सीकर की जगह जॉब क्रिएटर बनिए। मौजूदा समय में मिलने वाले अवसरों की चर्चा करते हुए कहा कि यहां बैठे गुरुजन और पिछली पीढ़ी के लोग इन युवाओं को आशीर्वाद देने के साथ ही यह भी सोचते होंगे कि उनके समय में इतने अवसर नहीं थे। शिक्षामंत्री ने विज्ञान और तकनीक में उभरते हुए भारत की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान आज तेजी से विकास कर रहा है। भारत विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। चुनौतियों और दायित्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं आज यहां युवाओं से वचन लेने आया हूं। आने वाले 25 साल में भारत अमृत काल में रहेगा। आजादी के सौ साल पूरे होंगे। इस दौरान भारत में दुनिया की अन्य देशों की तुलना में सबसे ज्यादा युवा रहेंगे। उन्होंने कहा कि देश की आईआईटी ग्लोबल ब्रांड बन चुकी है और यहां के छात्र-छात्राएं इस ब्रांड के स्टेक होल्डर हैं। बताया कि देश में 50 रिसर्च पार्क बनाए जाने हैं जिनमें एक का शिलान्यास वह आईआईटी में आज कर रहे हैं।

डॉ. प्रधान ने तब और अब की चर्चा करते हुए कहा कि 50 साल पहले भारत में खाद्यान्न का अभाव था। अमेरिका से गेहूं आयात किया जाता था। आज भारत के साठ प्रतिशत लोगों को अनाज मुफ्त दिया जा रहा है और अन्य देशों में अन्न भेजा जा रहा है। टीबी, मलेरिया, पोलियो को कंट्रोल करने में हमें दशकों इंतजार करना पड़ा। मगर कोविड महामारी में न सिर्फ 225 करोड़ वैक्सीन के डोज लगाए बल्कि सौ से ज्यादा देशों तक वैक्सीन भी पहुंचाई। आगे कहा कि रिन्युएबल एनर्जी, सस्टनेबल एनर्जी, न्यू एनर्जी के लिए पूरी दुनिया आशा के साथ भारत की तरफ देख रही है।

चाची की कचौड़ी और बनारसी पान की आई याद

वाराणसी। काशी आए केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी बनारसी स्वाद को अनदेखा नहीं कर सके। सोमवार की सुबह उन्होंने दीक्षांत समारोह में आने से पहले चाची की कचौड़ी मंगाकर खाई। अपने संबोधन के दौरान डिजिटल पेमेंट का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि एक साल पहले काशी की प्रसिद्ध चाची की कचौड़ी खाई, फिर अमरूद खाया। इसके बाद चौराहे पर बनारसी पान खाया। तीनों जगहों पर मैंने डिजिटल पेमेंट भी किया। उन्होंने बताया कि आज अमेरिका, चीन और यूरोप तीनों में जितना डिजिटल पेमेंट होता है। अकेले भारत में उससे ज्यादा डिजिटल पेमेंट किया जाता है। कहा कि यह आप सबने ही कर दिखाया है।

कोई घर का पहला इंजीनियर तो किसी के पिता ने कर्ज लेकर पढ़ाया

वाराणसी, संवाददाता। विकल्प बहुत मिलेंगे मार्ग भटकने के लिए, लेकिन संकल्प एक ही काफी है। मंजिल तक पहुंचने के लिए..यह उन मेधावियों का कहना है, जो आईआईटी बीएचयू के दीक्षांत समारोम में सम्मानित हुए हैं। ये वो मेधावी हैं जिन्होंने विषम परिस्थितियों को मात देकर सफलता की इबारत लिखी है।

दीक्षांत समारोह में मेडल और पुरस्कार पाने वाले कई ऐसे मेधावी हैं। जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। ऐसे मेधावी भी हैं जो अपने घर के पहले इंजीनियर हैं। उन मेधावियों की कहानी से रूबरू कराते हैं। जो समाज और युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

पढ़ाई के लिए पिता ने लिया कर्ज,अब बेटा चुका रहा

मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग के छात्र सूरज को इंदिरा अनंनतचारी एंडोमेंट विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें ये पुरस्कार मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग में सर्वोच्च सीपीआईन प्राप्त करने पर मिला। सूरज के पिता की दुकान है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बाद भी माता-पिता ने बेटे को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आईआईटी की तैयारी के लिए कोटा भेजा। रिश्तेदारों से कर्ज लिया। बेटे ने पिता के सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत की। प्लेसमेंट में उन्हें लाखों का पैकेज मिला। अब वो अपनी कमाई से पिता का कर्ज को चुका रहे हैं।

पिता की ऑटो पार्ट्स की शॉप, बेटा बना इंजीनियर

इंदिरा अनंनतचारी एंडोमेंट विशेष पुरस्कार पाने वाले कानपुर के ऋषभ अग्रवाल के पिता की ऑटो पार्ट्स की शॉप है। पढ़ाई के दौरान आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई बार इससे पढ़ाई भी प्रभावित हुई। ऋषभ अग्रवाल ने बताया कि माता-पिता ने उन्हें संभाला और पैसे की चिंता छोड़ बस पढ़ाई पर ध्यान देने की बात कही। परिजनों ने अपनी जरूरतों को कम करके बेटे को पढ़ाया। कानपुर से जेईई की तैयारी की। ऋषभ ने बताया कि पिता के सपने को साकार करने के लिए पूरा जी-जान लगा दिया। पढ़ाई पूरा होने के बाद उन्हें कैंपस प्लेसमेंट में लाखों का पैकेज मिला। अभी वो खुद घर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

घर के पहले इंजीनियर हैं दिलीप कुमार

आईआईटी के दीक्षांत समारोह में तीन मेडल पाने वाले दिलीप घर के पहले इंजीनियर हैं। उनके घर अभी तक इस मुकाम तक कोई नहीं पहुंचा था। पिता की दुकान है और माता गृहिणी हैं। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। दिलीप कुमार ने बताया कि दो बहन और एक भाई की पढ़ाई के साथ आईआईटी की तैयारी करने के लिए पैसा मिलना बहुत मुश्किल हो रहा है। लेकिन उनके पिता ने उन्हें मौका दिया तो मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेहनत के दम पर उन्हें प्री-प्लेमेंट में ही 15 लाख का पैकेज मिला। अब अपने घर की जिम्मेदारी के साथ ही भाई-बहन के पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं।

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