भक्त की मांग में कटौती नहीं करते शिव
वाराणसी में कथावाचक पं. प्रदीप मिश्र ने बताया कि भगवान शिव से जो भी मांगा जाए, वह बिना किसी कटौती के मिलता है। उन्होंने श्रीराम के उदाहरण से समझाया कि शिवलिंग की स्थापना के दौरान नामकरण कैसे हुआ और...
वाराणसी, मुख्य संवाददाता। मन में जो अभिलाषा है उसे यथारूप में प्राप्त कर लेना बिना भगवान शिव के सम्भव नहीं है क्योंकि किसी और देवता से हम अपने मन की अभिलाषा मागेंगे वह उसमें कुछ न कुछ कटौती करेंगे। कुछ न कुछ सुधार करेंगे। एकमात्र भगवान शिव ही हैं जिनसें जो मांगेंगे वही मिलेगा। उसमें कोई कटौती नहीं होगी।
ये बातें सिहोर के कथावाचक पं. प्रदीप मिश्र ने कहीं। वह श्रीसतुआ बाबा गौशाला डोमरी में महामंडलेश्वर संतोष दास सतुआ बाबा के सानिध्य में आयोजित कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि माता-पिता से जब हम मांगते हैं कि हमको ये चीज चाहिए तो कहते हैं ये वाली नहीं ये करो, ऐसा नहीं ऐसा कर लो। कुछ सुधार उसमें बता देते हैं लेकिन भगवान शिव के सामने जो मांगो सो पाओ, जैसी इच्छा हो वैसा मिलेगा। लोग सोचते हैं कि कटौती क्यों हो इसलिए भगवान शिव की आराधना की जाए।
उन्होंने कहा कि श्रीराम ने भगवान शिव की आराधना की। बालू का का शिवलिंग वहां बनाकर स्थापित करना पड़ा। हालांकि उन्होंने शिवलिंग मंगाया था। हनुमानजी को भेजा कि काशी से शिवलिंग लेकर आओ। हम यहां उसकी प्रतिष्ठा करेंगे। हनुमानजी गए भी लेकिन मुहूर्त निकलता जा रहा था। शिवलिंग लेकर समय पर नहीं आए जिसके कारण श्रीराम को बालू का ही शिवलिंग बनाकर के उसी में प्रतिष्ठा करनी पड़ी।
...और नाम पड़ गया रामेश्वर
बालुकामय शिवलिंग है जब उसकी प्रतिष्ठा भगवान श्रीराम करने लगे तो ये प्रश्न आ गया कि ये इस शिवलिंग का नाम क्या होगा। जैसे ही प्रतिष्ठा होती है वैसे, जैसे आप के यहां बालक उत्पन्न होता है तो आप लोग नाम रखते हैं, उसी तरह से जब कोई भगवान प्रकट हुए तो उनका नाम होना चाहिए। तो लोगों ने पूछा प्रभु नाम क्या होगा? राम जी ने कहा इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। मेरा नाम राम है, ये मेरे ईश्वर हैं इसलिए इनका नाम रामेश्वर होगा। तो रामेश्वर नाम पड़ गया।
शिव ने बदल दिया रामेश्वर का अर्थ
कहते हैं कि जब यह अर्थ श्रीराम ने बताया तो शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हो गए। कहने लगे नाम स्वीकार है। जो नाम इन्होंने कहा वह बिल्कुल सही है लेकिन जो अर्थ बताया वह गलत है। हमें यह स्वीकार नहीं है। अब सवाल यह कि जब नाम यही रहेगा तो अर्थ कैसे बदलेगा! कथावाचक ने बताया कि समास से अर्थ बदल जाता है। भगवान शिव बोले श्रीराम ने षष्ठी तत्पुरुष समास किया जिसका मतलब है राम का ईश्वर। षष्ठी में का, के की लगता है। लेकिन हम इस अर्थ को अस्वीकार करते हैं। नाम हमारा रामेश्वर ही होगा लेकिन हम बहुब्रीहि समास का प्रयोग करेंगे। ‘यस्यएशाम बहुब्रीहि यश्य और एशाम जहां लगा रहता है सामान्य रूप से वह बहुब्रीहि समास कहलाता है। ‘राम: ईश्वरो यस्य सह: रामेश्वर: इसका अर्थ है ‘राम हैं ईश्वर जिसके वो रामेश्वर। नाम वही अर्थ बदल गया। राम हैं ईश्वर और उनके आराधक शिवजी हो गए।
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