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बोले काशी- यशोदा चाहें मानदेय बढ़े और मिले पेंशन-आवास की सुविधा

Varanasi News - वाराणसी में 4136 महिला रसोइयां मिड-डे-मील योजना के तहत काम करती हैं, लेकिन उन्हें समय पर मानदेय नहीं मिल रहा है। उनके मानदेय में कमी और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलना उनके जीवन को कठिन बना रहा है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीMon, 17 Feb 2025 08:15 PM
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बोले काशी- यशोदा चाहें मानदेय बढ़े और मिले पेंशन-आवास की सुविधा

वाराणसी। माता देवकी ने कान्हा को जन्म दिया मगर कान्हा का बचपन मइया यशोदा की गोद में बीता। यशोदा किसी स्वार्थ बिना कान्हा का पोषण करती रहीं। जिले के परिषदीय विद्यालयों में भी ऐसी ‘यशोदा मां हैं। मामूली मानदेय पर सुविधाविहीन व्यक्तिगत जीवन बिताते हुए वे हर दिन बिना छुट्टी-बिना नागा स्कूल में छह घंटे का समय देती हैं। हर बच्चे को अपना मानकर उसका ध्यान रखती हैं। स्कूलों में मिड-डे-मील बनाने, परोसने और खिलाने के लिए तैनात महिला रसोइया मानदेय में वृद्धि और पेंशन-आवास योजनाओं में लाभ चाहती हैं। बनारस के 1134 विद्यालयों में तैनात इन 4136 रसोइया में ज्यादातर महिलाएं हैं। मंडुवाडीह स्थित एक विद्यालय में जुटीं कई स्कूलों की महिला रसोइया ने ‘हिन्दुस्तान से अपनी दुश्वारियां साझा कीं। स्कूलों में शिक्षिकाओं और परिवार के सदस्यों की तरह रहने वाली इन महिलाओं का सबसे बड़ा दर्द उनका मानदेय है। वह मानदेय समय-समय पर विभिन्न योजनाओं में स्थानांतरित होता रहा है। मिडडे मील योजना की शुरुआत के साथ इन रसोइया को मानदेय के रूप में कन्वर्जन कॉस्ट दिया जाता था। यह राशि 58 रुपये प्रतिदिन की होती थी। योजना आगे बढ़ी तो रसोइया को महीने का पांच किलो अनाज और प्रतिदिन 23 रुपये मानदेय के रूप में मिलने लगा। कुछ वर्षों बाद इसे बदलकर एक हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया। मध्याह्न भोजन योजना को प्रधानमंत्री पोषण अभियान के अंतर्गत लाने के बाद 2022 में मानदेय बढ़ाकर दो हजार रुपये किया गया। यह मानदेय प्रतिदिन के हिसाब से 66.67 रुपये पड़ता है।

नौ माह का भी मानदेय नहीं

स्कूलों में हर दिन बच्चों का भोजन तैयार करने, उन्हें परोसने-खिलाने, सफाई और बर्तनों का रखरखाव करने वाली ये महिला रसोइया दो हजार रुपये के इंतजार में महीनों काट देती हैं। उनके मुताबिक नियुक्ति के दौरान उन्हें बताया जाता है कि साल में दस महीने का मानदेय मिलेगा क्योंकि दो महीने गर्मी और जाड़े की छुट्टी होती है। मगरसाल में ठीक से नौ महीने का भी मानदेय नहीं मिल पाता। माला देवी ने बताया कि गर्मी में स्कूलों की छुट्टी 20 मई से होती है।

सात माह में खाते में आए सात हजार

नियमानुसार रसोइयों को इन 20 दिनों का मानदेय मिलना चाहिए मगर अप्रैल-मई का मानदेय कभी मिला ही नहीं। जबकि एक शिक्षक की तरह ही वे सुबह स्कूल खुलने से लेकर छुट्टी की घंटी तक स्कूल में मौजूद रहती हैं। विद्यालय या विभाग की तरफ से उन्हें मानदेय के साथ पावती या स्लिप नहीं दी जाती। ये रसोइया बताती हैं कि जुलाई से दोबारा स्कूल खुलने के बाद से जनवरी तक सात महीने बीत चुके हैं। मगर अब तक मानदेय के नाम पर इनके बैंक खातों में सरकार मात्र सात हजार रुपये भेज सकी है, वह भी टुकड़ों में।

अखरती है जिम्मेदारों की अनदेखी

मिड-डे-मील योजना के अंतर्गत रसोइया के लिए ऐसी महिलाओं का चुनाव हुआ था जो परिवार से अलग, विधवा, निराश्रित और आर्थिक रूप से अक्षम हों। उनमें कई ऐसी हैं जो मिड-डे-मील योजना में शुरुआत से ही काम कर रही हैं। सरकार और विभाग की अनदेखी इन्हें सालती है। बनारस में अक्षय पात्र योजना के तहत सेवापुरी और हरहुआ ब्लॉक के स्कूलों में मिड-डे-मील भेजा जाता है। इसके अलावा जिले के स्कूलों में एनजीओ के माध्यम से भी भोजन भिजवाया जाता है। उन स्कूलों में कार्यरत रसोइयों की जिम्मेदारी भोजन के समय से वितरण की है। अक्सर कई बार महीनों के लिए इनका मानदेय रुक जाता है।

पग-पग पर करना है संघर्ष

रसोइया शीला देवी बताती हैं कि इन महिलाओं में ज्यादातर विधवा और निराश्रित हैं। कई तो ऐसी भी हैं जिन्हें पति की मौत के बाद पट्टीदारों से जायदाद से बेदखल कर दिया या रहने को घर का एक कोना दे दिया। किसी की बेटियां शादी लायक हो चुकी हैं तो किसी के बच्चे अभी छोटे हैं। ऐसे में दो हजार रुपये का मानदेय और छोटे-मोटे कामों से मिलने वाली राशि ही जीवन का सहारा है। महीनों मानदेय अटक जाने से कई बार राशन के दुकानदार उधार देने से इनकार कर देते हैं। स्थितियां तब विकट हो जाती हैं। इसी बीच अगर बेटी की शादी या किसी की बीमारी जैसी कोई स्थिति बन जाए तो कहीं न कहीं हाथ फैलाना विवशता हो जाती है।

योजनाओं का लाभ नहीं मिलता

कई महिला रसोइया ने विधवा पेंशन या अन्य सरकारी योजनाओं के लिए आवेदन कर रखा है मगर यहां भी दुश्वारियां कम नहीं। कुंती देवी ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास के लिए वह हर बार आवेदन करती हैं मगर अब तक उनका आवेदन स्वीकृत नहीं हो सका। विधवा पेंशन की लाभार्थी शीला ने कहा कि महीने में एक हजार रुपये की यह मदद आने में भी कई-कई महीने लग जाते हैं। पात्र होने के बावजूद इनमें कई बिना आयुष्मान कार्ड के हैं। जीवन के कटु स्वाद और निष्ठुर स्वभाव को झेल चुकीं ये महिलाएं कहती हैं कि बच्चों के बीच मन लगा रहता है, इन्हें खिला कर-दुलार कर ममत्व को तृप्ति मिलती है। उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में उनकी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

सुझावः

1. हर महीने मानदेय खाते में पहुंचने की तिथि तय हो, छुट्टियों के समय में भी मानदेय की व्यवस्था की जाए

2. सफाई और हाइजिन का ध्यान रखने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था हो। संसाधनों के लिए विभाग दे बजट।

3. मानदेय में महंगाई के अनुसार बढ़ोतरी की जाए ताकि जीवन का सही ढंग से गुजार हो सके। साल में आकस्मिक छुट्टियों की व्यवस्था की जाए

4. विधवा, विकलांग पेंशन सहित सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए अलग कैंप लगे। पीएम-सीएम आवास और आयुष्मान भारत जैसी लाभार्थी योजनाओं में दी जाए वरीयता।

5. नई रसोइया की नियुक्ति के साथ ही शुरू हो मानदेय, विभाग की तरफ से सभी रसोइयों से नियमित संवाद हो।

शिकायतें

1. कई बार पांच-छह महीने तक मानदेय नहीं मिलता। दो हजार रुपये प्रतिमाह का मनादेय जिम्मेदारियों के लिहाज से बेहद कम है।

2. रसोइया को कोई छुट्टी नहीं मिलती। जरूरतों के लिए छुट्टी लेने पर कटता है वेतन। नई नियुक्त वाली रसोइया को मानदेय महीनों बाद मिलता है।

3.. विधवा, वृद्धा पेंशन सहित सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। कई महिलाओं और उनके परिवारों के आयुष्मान कार्ड नहीं बने हैं।

4. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास का रसोइयों को आवंटन नहीं हो पाता। उसके लिए अलग से कैंप भी नहीं लगता।

5. विभाग में रसोइया की समस्याओं के लिए कोई फोरम नहीं है। विभागीय अधिकारी उनकी समस्याएं जानने के लिए कभी बात नहीं करते।

‘यशोदा का दर्द

हर दिन स्कूल में समय देने वाली रसोइया को सरकार से बेहतर मानदेय और सुविधाएं मिलनी चाहिए।

अमरावती देवी

विद्यालय के शिक्षक और प्रधानाध्यापक हमेशा ख्याल रखते हैं। सरकार की अनदेखी अखरती है।

बबुनी देवी

मानदेय न मिलना एक समस्या है। विधवा पेंशन के एक हजार रुपये भी कई बार महीनों तक अटक जाते हैं।

कुंती देवी

हम महिलाओं की परेशानियों की नियमित सुनवाई हो तो समस्या काफी हद तक दूर हो जाए।

लालमणि देवी

जिले की चार हजार से ज्यादा रसोइया को सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए अलग कैंप लगाया जा सकता है।

माला देवी

विद्यालय परिवार का सदस्य होने के नाते सरकारी विभागों में भी हमें सहूलियत मिलनी चाहिए।

मालती देवी

ज्यादातर स्कूलों तक पहुंचने वाली रोड की हालत खस्ता है। सरकार को इसका भी ध्यान देना चाहिए।

राजकुमारी देवी

हम महिलाएं कई बार पारिवारिक अन्याय का शिकार होती हैं। सुरक्षा के इंतजाम भी होने चाहिए।

शकुंतला देवी

परिवार में मांगलिक कार्यक्रम हो या आपदा आए तो आकस्मिक छुट्टी नहीं मिलती। छुट्टी का अर्थ है मानदेय में कटौती।

शीला देवी

पति का देहांत 2010 में हो गया था। दो बेटियां शादी लायक हो चुकी हैं। खर्च चलाने के लिए दो हजार का मानदेय ही है।

यशोदा देवी

बोले जिम्मेदार

बकाया मानदेय जल्द दिलाएंगे : बीएसए

जिले के स्कूलों में तैनात सभी रसोइयों के मानदेय में देर की दिक्कतें जल्द ही दूर की जाएंगी। उन्हें अक्तूबर-24 तक का मानदेय भेजा जा चुका है। बचा हुआ मानदेय भी जल्द भेजने की व्यवस्था की जा रही है। रसोइया भी हमारे बेसिक शिक्षा विभाग परिवार की अहम सदस्य हैं। इनकी सभी समस्याओं को सुनकर उनका निराकरण किया जाएगा। किसी भी तरह की परेशानी पर महिलाएं विद्यालय के हेडमास्टर, खंड शिक्षाधिकारी और मुझसे सीधे संपर्क कर सकती हैं।

डॉ. अरविंद कुमार पाठक, बेसिक शिक्षा अधिकारी वाराणसी।

प्रस्तुति : अभिषेक त्रिपाठी

फोटो :अमन मंसूर आलम

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