बोले काशीः नौनिहालों को संवार रहीं, खुद को मदद की दरकार
वाराणसी में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की स्थिति पर चिंता जताई गई है। उन्हें 6000 रुपये मासिक मानदेय मिलता है, जो उनके जीवन यापन के लिए अपर्याप्त है। कार्यकत्रियों ने सरकारी योजनाओं में भागीदारी और उनके...
वाराणसी। जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘यशोदा मां का नाम दिया है, जो प्री-स्कूल (लर्निंग लेवल) एजुकेशन की मजबूत रीढ़ हैं, जिन पर गर्भवती महिलाओं की गोदभराई और नवजात शिशुओं के अन्नप्राशन का जिम्मा रहता है, चुनावों में बूथ लेवल अफसर (बीएलओ) की भूमिका निभाती हैं, स्वास्थ्य-समाज कल्याण, प्रोबेशन जैसे विभागों की योजनाओं के लिए पात्रों का सत्यापन करती हैं, वे आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री मामूली मानदेय, सुविधा-सामाजिक आर्थिक सुरक्षा के अभाव और अधिकारियों के कथित उत्पीड़न की विसंगतियों से दो-चार हैं। जिले में लगभग चार हजार आंगनबाड़ी केन्द्र हैं। उनके संचालन के लिए लगभग सात हजार आंगनबाड़ी कार्यकत्री और सहायिका नियुक्त हैं। हाल के वर्षों में सरकार-शासन और आमजन के बीच मजबूत सेतु बनकर उभरीं आंगनबाड़ी कार्यकत्री अब ‘मल्टीटास्किंग वूमेन का भी पर्याय कही जाती हैं। उन्होंने जगतगंज केन्द्र पर ‘हिन्दुस्तान से अपना दर्द साझा किया। कुछ ने सरकार की ओर से मिलीं सुविधाओं को सराहा। ज्यादातर का कहना था कि मामूली मानदेय में गुजारा होना मुश्किल होता जा रहा है। सरकार को इस दिशा में उचित कदम उठाने चाहिए।
500 से शुरुआत, अब भी महज 6000
वर्ष 2001 में एकीकृत बाल विकास परियोजना (आईसीडीएस) के तहत बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग से आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की नियुक्ति हुई। तब उन्हें 500 रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता था, जो अब बढ़कर 6000 रुपये महीना हुआ है। इसमें 4500 रुपये केंद्र सरकार और 1500 रुपये राज्य सरकार देती है। मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र की संचालिका को 4750 रुपये प्रतिमाह ही दिए जाते हैं। यह परियोजना वर्ष 1983 में शुरू हुई थी। तब सिर्फ नगर क्षेत्र और हरहुआ ब्लॉक में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कार्यकत्री- की नियुक्ति की गई थी। कार्यकत्रियों को सवाल मथते हैं कि 6000 रुपये मासिक मानदेय में जीविकोपार्जन हो सकता है? बच्चों की परवरिश संभव है? उन्हें उचित ढंग से पढ़ाया जा सकता है? अन्य खर्चे पूरे किए जा सकते हैं?
आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा का सवाल
उत्तर प्रदेश आंगनबाड़ी कर्मचारी कल्याण एसोसिएशन के प्रदेश संरक्षक और जिलाध्यक्ष बाबूलाल मौर्य कहते हैं कि कार्यकत्रियों की आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा नहीं है। उन्हें स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। अधिकारी जब और जहां चाहते हैं, वहां उनकी ड्यूटी लगा देते हैं। इसके एवज में अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं मिलता। बाबूलाल ने बताया कि कार्यकत्रियों का मानदेय बढ़ाने और रिटायरमेंट के बाद पेंशन-फंड के लिए संगठन हर स्तर पर प्रयास कर रहा है।
(फोटो: शैल सिंह)
नवाचार और उत्कृष्ट कार्यों पर सम्मान भी
कई आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों ने अपने नवाचार, मेहनत, समर्पण और हुनर की बदौलत कीर्तिमान भी बनाए हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम शैल सिंह का है। चितईपुर आंगनबाड़ी केंद्र पर शैल ने पहली बार अर्ली चाइल्ड केयर एजुकेशन (ईसीसीई) की शुरुआत की। उनके नवाचार को देखते हुए तत्कालीन केंद्रीय महिला कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने नई दिल्ली में शैल को सम्मानित किया था। इसी कड़ी में खालिसपुर की अंजनी मौर्या, मुर्दहा की पूजा सिंह और सुलतानपुर की पार्वती प्रजापति को जिलाधिकारियों ने पुरस्कृत किया। पूजा ने बताया कि सम्मान तो दिया गया लेकिन पुरस्कार स्वरूप 10 हजार रुपये का चेक अब तक नहीं मिल सका है।
अकुशल मजदूरों के भी बराबर नहीं
शाहपुर की प्रेमलता सिंह ने बताया कि श्रम मंत्रालय से पारिश्रमिक दर के अनुसार अकुशल श्रमिकों को 783 रुपये, अर्द्धकुशल श्रमिकों को 868 रुपये और कुशल श्रमिकों को 954 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मानदेय दिए जाते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या कार्यकर्त्रियों को अकुशल मजदूरों के बराबर भी पारिश्रमिक नहीं मिल सकता? हर तरह के काम करवाए जाते हैं लेकिन हमारा मानदेय महज 200 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से बनता है।
पेड़ के नीचे तो कहीं टीन शेड में पढ़ाई
अखरी की रेखा सिंह और रखौना की आशा देवी के मुताबिक कई आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। कई किराए के भवनों में चल रहे हैं। कहीं पेड़ के नीचे और टीनशेड में नन्हे-मुन्ने पढ़ रहे हैं। जो केंद्र प्राइमरी स्कूलों के भीतर बने हैं, वहां कुछ स्थिति ठीक है लेकिन किराये के भवनों में चलने वाले भवनों में बिजली, पानी जैसी मूलभूत जरूरतें भी नहीं हैं।
(फोटो: सीमा जायसवाल)
जगह कम पड़ जाती है
जगतगंज की सीमा जायसवाल और अंजना सोनी ने बताया कि सेंटरों पर जगह की कमी है। बच्चे बढ़ गए तो पढ़ाने में दिक्कत होती है। जलालीपुरा की मीनाक्षी वर्मा ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को शासकीय कर्मचारी का दर्जा देने की मांग वर्षों से की जा रही है। बनकट की अंजू मिश्रा ने जोड़ा कि अगर शासकीय कर्मी का दर्जा न मिले तो कम से कम 20 हजार रुपये मानदेय ही दिया जाय। मुर्दहां की पूजा सिंह भी उनका समर्थन करती हैं। बोलीं-‘रिटायरमेंट के बाद हमारे लिए फंड और पेंशन की व्यवस्था की जाए। डोमरी की गीता सिंह ने कहा कि आंगनबाड़ी सेवा नियमावली भी बननी चाहिए।
(फोटो: अम्बिका सोनी)
ट्रेनिंग हमारी, नियुक्ति उनकी
सिंधोरा की अम्बिका सोनी ने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को शिक्षा विभाग की ओर से अर्ली चाइल्ड केयर एजुकेशन (ईसीसीई) की ट्रेनिंग मिली है। फिर भी 10313 रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर एजुकेटरों की नियुक्ति कर दी गई। उनका पीएफ भी कटता है। यह हमारे साथ नाइंसाफी है।
आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के जिम्मे हैं ये काम
3 से 6 वर्ष के बच्चों को प्री-एजुकेशन, पोषण और उनका व्यक्तित्व विकास, पुष्टाहार (दाल, तेल, दलिया आदि) वितरण, गर्भवती महिलाओं की गोदभराई और नौनिहालों का अन्नप्राशन मूल काम है। इनके अलावा चुनावों के समय उन्हें बीएलओ की जिम्मेदारी मिलती है। विधवा और वृद्धावस्था पेंशन, राशन कार्ड सत्यापन समेत कई सरकारी काम कराए जाते हैं। वे टीकाकरण और अन्य अभियानों में भी सहयोगी बनती हैं। हालांकि बीएलओ के काम में ही उन्हें पारिश्रमिक मिलता है।
‘जनश्री का पैसा भी नहीं मिला
बढ़ैनी कला की प्रवेश सिंह और जयपार की सुनीता गुप्ता ने बताया कि कार्यकत्रियों का जनश्री योजना में सामूहिक बीमा कराया गया। उनके मानदेय से 80 रुपया प्रतिमाह काटा गया लेकिन जिन कार्यकत्रियों की मृत्यु हो गई, उनके परिवारों को बीमा का पैसा आज तक नहीं मिला।
सहायिकाओं को भी बेहतरी का इंतजार
यूपी आंगनबाड़ी कर्मचारी कल्याण एसोसिएशन की प्रदेश अध्यक्ष अंजनी मौर्या कहती हैं कि केंद्रों के संचालन में सहायिकाओं की भूमिका को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है। सुबह सेंटर खोलने, साफ-सफाई से लेकर बच्चों की दिनचर्या से जुड़े कार्यों को पूरी निष्ठा से निभाती हैं। वर्ष 2001 में नियुक्ति के समय इन्हें 250 रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जाता था, जो अब बढ़कर 3000 रुपये हो गया है। सहायिकाओं को भी अपने ‘कल्याण की दरकार है।
‘यशोदा अपने बच्चों का भार उठाने में ‘असहाय
शैल सिंह बताती हैं कि जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘यशोदा कहा, वे आज अपने बच्चों का भार उठाने में असहाय महसूस कर रही हैं। अगर परिवार का आर्थिक सपोर्ट न मिले तो मौजूदा मानदेय में बच्चों की ढंग से परवरिश मुश्किल है।
50 वर्ष के बाद प्रमोशन पर रोक हटे
सिंधोरा की सिंधु गिरि कहती हैं कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के राशन कार्ड भी काटे जा रहे हैं। शिवाला की सरिता पांडेय ने बताया कि विभागीय नियमों के मुताबिक 50 वर्ष के बाद कार्यकत्रियों के प्रमोशन पर रोक लगा दी गई है। यह व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। राजाबाजार की नगीना देवी ने भी रिटायरमेंट के बाद कार्यकत्रियों के गुजर-बसर की व्यवस्था पर जोर दिया।
गलत शिकायत करने वालों पर कार्रवाई हो
सुल्तानीपुर की पार्वती और घौसाबाद की सुभावती देवी ने कहा कि अक्सर पुष्टाहार वितरण में लापरवाही या न मिलने की लोग शिकायत करते हैं। जांच में यह बात गलत मिले तो शिकायतकर्ता पर कार्रवाई का प्राविधान होना चाहिए। जयपार की मूर्ति तिवारी का सुझाव है कि पुष्टाहार उठान में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की दखल खत्म होनी चाहिए।
उच्च शिक्षित कार्यकत्रियों को मिले प्रमोशन
नकछेदपुर की क्षमा तिवारी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुनियादी सुविधाओं की कमी का मुद्दा उठाती हैं। मेहंदीगंज की सुदामा पटेल ने उच्च शिक्षित आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को प्रमोशन देने की मांग की। खररिया खास तालुके विरांव की शकुंतला यादव, काजी सादुल्लापुरा की कृष्णा जायसवाल और राजाबाजार की अंजना सोनी भी सुरक्षित भविष्य के लिए फुलप्रूफ प्लान की जरूरत महसूस करती हैं।
सुझाव...
- आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति सुधारने की जरूरत है। बेहतर माहौल में बच्चे अच्छी पढ़ाई कर सकेंगे। किराये के भवनों में चलने वाले सेंटर अपने भवनों में शिफ्ट हों
- मोबाइल मिलने से काम आसान है लेकिन अब भी पांच रजिस्टर भरने की व्यवस्था लागू है जबकि अन्य प्रदेशों में ये रजिस्टर हटाए जा चुके हैं।
- आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों के काम की अवधि तय होनी चाहिए ताकि वे अपने घर-परिवार को भी पर्याप्त समय दे सकें। इसके लिए शासनादेश जारी हो।
- कार्यकर्त्रियों का अनावश्यक उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। अच्छे कार्यों पर अधिकारी मौखित रूप से भी प्रोत्साहित करें तो उनका मनोबल बढ़ जाएगा।
- मानदेय बढ़ाने, सेवा नियमावली बनाने, रिटायरमेंट के बाद फंड-पेंशन की व्यवस्था के संबंध में ठोस पहल होनी चाहिए।
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शिकायतें...
- न्यायालय के आदेश के बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को कई सरकारी कार्यों में लगा दिया जाता है। यह व्यवस्था बंद होनी चाहिए।
- कार्यकत्रियों के सेंटर आने का समय तो तय है लेकिन जाने के बाद सहयोगी के कई काम में लगा दिया जाता है।
- बतौर प्रोत्साहन राशि 1500 रुपये मिलने में बाबुओं की लालफीताशाही और अधिकारियों की मनमानी बाधक है। इसका असर काम पर पड़ता है।
- चेकिंग के नाम कार्यकत्रियों का मानसिक उत्पीड़न किया जाता है। उन पर अनर्गल आरोप लगाए जाते हैं, जबकि जांच में पुष्टि नहीं हो पाती है।
- स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में सहयोग करने के बावजूद कार्यकत्रियों की सेहत का ख्याल नहीं रखा जाता है।
- पोषाहार उठान और वितरण में कई संस्थाओं को लगाने से व्यवस्था जटिल होती जा रही है। भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा है।
इसे भी जानें
- 3914 आंगनबाड़ी केंद्र हैं जिले में
- 3606 कार्यकर्त्रियां देती हैं बच्चों को प्री-एजुकेशन
- 3300 लगभग सहायिकाएं भी करती हैं सहयोग
- 03 से 06 वर्ष के बच्चों को मिलती है प्री-शिक्षा
- 1.59 लाख बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं इन केंद्रों में
- 01 अप्रैल 2025 से शुरू होगी पाठ्यक्रम आधारित पढ़ाई
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कौन सुनेगा, किसको सुनाएं...
आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को शासकीय कर्मचारी का दर्जा मिले। 6000 रुपये में जीवन चलाना मुश्किल है। उसमें वृद्धि की जाए।
- मीनाक्षी वर्मा
आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के लिए नियमावली बने। काम पर आने का तो समय होता है, जाने का नहीं होता है। इससे परेशानी होती है।
-अंजू मिश्रा
हमें भी रिटायरमेंट के बाद योजनाओं का लाभ दिया जाए। सरकार कम से कम 4-5 लाख रुपए दे ताकि जीवन यापन कठिन ना हो।
- गीता सिंह
आंगनबाड़ी केंद्रों पर काम करने वाली महिलाओं की आमदनी कम है। फिर भी राशन कार्ड से नाम काट दिया जा रहा है।
- सुनीता गुप्ता
आंगनबाड़ी महिलाओं के प्रमोशन के लिए 50 साल की समय सीमा तय कर दी गई। इसमें बदलाव हो।
-सरिता पांडेय
जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से मानदेय पर काम कराया जा रहा है। तो रिटायरमेंट का प्रावधान क्यों बनाया गया है।
- सिंधु गिरि
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर लगे आरोपों की पुष्टि होने पर ही मानदेय रोकना या एक्शन होना चाहिए।
- नगीना देवी
हमसे काम तो राज्य और केंद्र सरकार दोनों के कराए जा रहे हैं लेकिन कर्मचारी का दर्जा नहीं मिल रहा है।
- सुदामा पटेल
कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एमए और पीएचडी पास हैं। उनसे प्रशिक्षण दिलवाने के बजाए एजुकेटर की भर्ती की जा रही है।
-अम्बिका सोनी
केंद्र संचालन के लिए जगह की व्यवस्था हो। कई केंद्र पेड़ के नीचे चलाए जा रहे हैं। कई बार परेशानी होती है।
- पार्वती देवी
कई महिलाओं का सामूहिक बीमा के लिए पैसा कटा लेकिन लाभ नहीं मिला। इसकी जांच होनी चाहिए।
- प्रवेश सिंह
हमारे काम की समय सीमा तय हो। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय भी बढ़ाया जाए।
-रंजना देवी
आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुनियादी सुविधाएं बढ़ें। कार्यकर्ताओं को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले।
- प्रेमलता सिंह
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 20 हजार हो। शासकीय कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। सरकारी योजनाओं का लाभ मिले।
-रीता मौर्या
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