‘गांव पर कम होता लेखन चिंता की बात
Varanasi News - वाराणसी में आयोजित रचयिता साहित्य उत्सव में कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि प्रेमचंद आजकल अल्पमत में हैं क्योंकि गांव पर लेखन कम हो गया है। उन्होंने इस स्थिति को साहित्य के लिए चिंताजनक बताया। कार्यक्रम...

वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि इन दिनों प्रेमचंद अल्पमत में चल रहे हैं क्योंकि गांव पर लेखन कम हुआ है। यह साहित्य के लिए चिंता की बात है। गांव पर जो कुछ लिखा जा रहा है वह भी फैशन में लिखा जा रहा है। वह बीएचयू के महामना सभागार में आयोजित रचयिता साहित्य उत्सव में दूसरे दिन मंगलवार बोल रहे थे। कार्यक्रम में पांच सत्रों के आयोजन के बाद शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। ‘बनारस और हिंदी नवजागरण विषयक पहले सत्र में प्रो. राजकुमार, प्रो. कृष्ण मोहन, डॉ. प्रभात मिश्र और जगन्नाथ दुबे ने विचार रखे। ‘नई सदी का कथा साहित्य विषयक दूसरे सत्र में कथाकार अखिलेश ने कहा कि स्मृति की सिद्धि यही है कि वह रचना बन जाए। प्रो. प्रीति चौधरी ने ममता कालिया, कृष्णा सोबती, मृदुला गर्ग, इस्मत चुगताई जैसी लेखिकाओं की चर्चा की। ‘भक्ति साहित्य और भारतीय संस्कृति पर केंद्रित तीसरे सत्र में कवि प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि भक्तिकाल हमारे बीच तनी हुई रीढ़ के साथ जीने की ललक पैदा करता है। यह धर्मशील बनाम श्रमशील में श्रम शक्ति को समझने का आधार है। इस सत्र में प्रो. रामेश्वर राय, प्रो. प्रभाकर सिंह, प्रो. अनिल राय ने विचार रखे। चौथे सत्र में ‘सिने भाषा और पत्रकारिता पर डॉ विनीत कुमार, आर्यमा सान्याल और डॉ. विजय कुमार मिश्र ने अपनी बात रखी। पांचवां सत्र ‘हिंदी और नई हिंदी पर केंद्रित रहा जिसमें प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव, मनोज पांडेय, भगवंत अनमोल और नवीन चौधरी ने वक्तव्य दिया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में नेहा विश्वकर्मा, शिखा, रमेश, राहुल रजक, अमृत मिश्र, रागिनी कल्याण ने कथक नृत्य और लोकगीतों की प्रस्तुति दी। आयोजक मंडल की ओर से पीयूष पुष्पम ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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