ग्रहण में गुरुजन : ‘दर्शन पढ़ाते बीता जीवन, अब कष्ट बना जीवन दर्शन
वाराणसी के प्रो. अभिमन्यु सिंह ने 38 साल तक दर्शन और धर्म के शिक्षण में समय बिताया। रिटायरमेंट के बाद उन्हें पेंशन की जगह सीपीएफ की राशि मिली, जिससे परिवार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना मुश्किल...
वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। दर्शन और धर्म के शिक्षण में उन्होंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण साल लगा दिए। ज्ञान मीमांसा, तत्व मीमांसा, तर्कशास्त्र, मूल्य मीमांसा आदि विषयों का ‘दर्शन जानने और छात्रों को सिखाने में 38 साल बिताए। अब अंतहीन कष्ट ही जीवन दर्शन बन गए हैं। यह आपबीती बीएचयू में कला संकाय के दर्शन एवं धर्म विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. अभिमन्यु सिंह की है।
छात्रों के बीच समर्पित शिक्षक और विभाग में एक समर्पित सहकर्मी की छवि वाले प्रो. सिंह को रिटायरमेंट के समय पता चला कि इसके बाद का जीवन सीपीएफ के चंद रुपयों और आत्मबल के सहारे काटना पड़ेगा। आजमगढ़ में देवगांव क्षेत्र के वलीपुर गांव के रहने वाले प्रो. अभिमन्यु सिंह ने 1977 में बीएचयू में शिक्षण शुरू किया था। 2015 में वह इसी विभाग से रिटायर हुए। बीएचयू के पेंशन अन्याय से पीड़ित 130 वरिष्ठों की तरह उन्हें भी पता चला कि पेंशन की जगह सीपीएफ की एकमुश्त राशि ही मिलनी है। इस गड़बड़ी की तरफ ध्यान दिलाने और प्रत्यावेदन देने का सिलसिला इसी दौरान शुरू हो चुका था। तब प्रो. सिंह ने भी काफी दौड़भाग की मगर अधिकारियों की हठधर्मिता के आगे नतमस्तक होना ही विकल्प था।
74 वर्ष के प्रो. अभिमन्यु सिंह वृद्ध तो हुए हैं मगर निवृत्त नहीं हो सके हैं। पत्नी लल्ली सिंह की दिमाग की नसें सूख चुकी हैं, वह दवाओं के आसरे ही जीवित हैं। मानसिक रूप से अस्वस्थ 45 वर्षीय बेटी पिता की ही जिम्मेदारी है। बहू के ब्रेस्ट कैंसर का इलाज चल रहा है। खुद के घुटने-कमर में तकलीफ रहती है, कंधे झुक चुके हैं मगर जिम्मेदारियों को ढोने के अलावा कोई चारा नहीं है। पत्नी-बेटी और बहू को लेकर हर हफ्ते डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है।
अंतिम तिथि के बाद क्यों बनाया नियम का फंदा
महामना और बीएचयू के प्रति श्रद्धावनत प्रो. अभिमन्यु सिंह इस पूरे प्रकरण को कुछ लोगों की लापरवाही का नतीजा मानते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिरी तिथि के बाद एडमिशन नहीं होते, परीक्षा आवेदन नहीं होते तो शासनादेश की अंतिम तिथि बीतने के बाद नियम का फंदा क्यों बनाया गया जिसमें एक-दो नहीं, 130 वरिष्ठ शिक्षक जा फंसे। प्रो. सिंह ने कहा कि बीएचयू को हठ छोड़ मानवीय दृष्टिकोण से भी इन शिक्षकों के बारे में सोचना चाहिए।
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