बोले काशीः अकथा के वैष्णव नगर में सड़क खोदवाने के बाद बनाना भूल गया जल निगम
Varanasi News - वाराणसी के वैष्णव नगर कॉलोनी के निवासी बुनियादी सुविधाओं की कमी से परेशान हैं। जर्जर सड़कों, दूषित जलापूर्ति, खुले नाले और बिजली के पोल न होने से उनकी जिंदगी मुश्किल हो गई है। कॉलोनी के लोग सफाई...
वाराणसी। वाराणसी नगर निगम के पुराने वार्डों में कुछ मोहल्ले-कॉलोनियां मिल जाती हैं जहां ‘विकास कभी ताक-झांक भी नहीं करता। वहां जाने पर महसूस करना कठिन होता है कि यह नवशहरी नहीं बल्कि शहर का पुराना हिस्सा है। वरुणापार अकथा वार्ड की वैष्णवनगर कॉलोनी भी उसी विसंगति से जूझ रही है। तीन दशक पुरानी कॉलोनी के लोगों की सबसे बड़ी कसक यह है कि सबने मिलकर जर्जर सड़क बनवाई। उसे सीवर बिछाने के लिए खुदवाया गया लेकिन उसकी फिर से मरम्मत नहीं कराई गई। प्रदूषित जलापूर्ति दूसरी गंभीर समस्या है। अकथा वार्ड का सन-1995 के बाद से दो बार परिसीमन हुआ। तब कुछ मोहल्ले हटे तो कुछ जुड़ गए लेकिन वैष्णव नगर सन-95 से वार्ड का हिस्सा है। कॉलोनी में लगभग 500 मकान हैं। आबादी करीब साढ़े सात हजार के आसपास है। कुछ ग्रामीण परिवेश लिए कॉलोनी के लोग मन मिजाज से शहरी नजर आते हैं। इसलिए ‘हिन्दुस्तान से चर्चा में उनकी बातों में तल्खी भी झलकी। खासकर जब सड़क, पेयजल, खुले नाले और बिजली के कनेक्शनों की चर्चा हुई। मीरा रस्तोगी, सुनीता गुप्ता ने बताया कि सड़क नहीं होने से बहुत समस्या होती थी। तब कॉलोनी के लोगों ने खुद डमरू बिछवाया। बाद में सीवर लाइन बिछाने के लिए जल निगम ने डमरू को उखाड़ दिया। इसके बाद आज तक सड़क नहीं बन सकी। ऊबड़-खाबड़ हाल में पड़ी हुई है। उससे आवागमन में इतनी परेशानी होती है कि अगर काम की मजबूरी न हो तो लोगबाग घर से निकलें ही नहीं। कॉलोनी के एक मार्ग पर अवैध कब्जा है। किसी ने जमीन पर गेट बनाकर ताला लगा दिया है। जबकि सरकारी रिकार्ड में वह रास्ता है।
इलाज में बिक गई जमीन
कॉलोनी के नंदू राजभर पिछले साल खराब सड़क पर गिर गए थे। उनके हाथ-पैर ने काम करना बंद दिया था। अब भी वह बिस्तर पर ही हैं। राजेश गुप्ता, अंजना देवी, अमन ने बताया कि उनके इलाज में पूरी जमीन बिक गई। इससे बाद भी वह चल फिर नहीं पाते हैं।
खुला नाला खतरे का बना सबब
कॉलोनी में एक बड़ा नाला कई सालों से खुला हुआ है। अशोक गुप्ता, राजेश गुप्ता ने बताया कि नाले की बदबू से कॉलोनी में रहना मुश्किल हो जाता है। उससे हादसे का डर भी रहता है। अंजना देवी, अमन, रीना देवी ने बताया कि कई सालों से दवा का छिड़काव नहीं हुआ है। बारिश के दिनों में स्थिति बदतर हो जाती है। वहीं लोग नाले में ही कूड़ा फेक देते हैं।
बिजली के पोल की दरकार
कॉलोनी में बिजली के पोल नहीं लगे हैं। घरों पर बिजली के तार लटक रहे हैं। मीरा रस्तोगी, सुनीता गुप्ता के मुताबिक अधिकारी कहते हैं कि दूर से कनेक्शन लेने में ज्यादा भुगतान करना पड़ता है। उतना खर्च न देने पर खंभे नहीं लगाए जा सकते। रामाश्रय, अशोक कुमार गुप्ता ने बताया कि किसी ने पेड़ के सहारे तो किसी ने डंडे के सहारे बिजली का तार खिंचवाया है।
स्ट्रीट लाइट कभी नहीं लगी
वैष्णव नगर के वैष्णव नागरिकों ने कॉलोनी में कभी स्ट्रीट लाइट लगते नहीं देखी है। नहीं होने से काफी परेशानी होती है। नीतू देवी, जय कुमार मौर्य ने कहा कि एक तो रास्ता खराब है, उस पर रात के अंधेरे में आवागमन आसान नहीं होता है। आए दिन कोई न कोई गिरकर घायल होता है। सुरसत्ती, रीतू ने बताया कि कॉलोनी मुख्य मार्ग से काफी अंदर है। नाला भी खुला है। ऐसे में रात में लाइट नहीं जलने से डर बना रहता है।
बीमारियों लायक माहौल मुफीद
कॉलोनी की दशा देख के कोई कह नहीं सकता है कि यह तीन दशक से नगर निगम का हिस्सा है। जय कुमार मौर्य, रामाश्रय के मुताबिक यह सफाई के मामले में एकदम उपेक्षित है। कभी न सफाई होती है न कूड़े का उठान। बीमारियों के लिए मुफीद माहौल बना रहता है। पूनम त्रिपाठी, मोहित, आरती ने बताया कि कॉलोनी में न कायदे की सड़क है न पानी की सुविधा। सफाई व्यवस्था ध्वस्त है।
सरकारी पानी से नहाने पर इंफेक्शन
वैष्णव नगर में लगभग 500 घर हैं। उनमें आधे घरों तक पेयजल के कनेक्शन हैं। पूनम त्रिपाठी, मोहित, आरती ने बताया कि पानी को पीना तो दूर, नहाने लायक नहीं रहता है। कई लोगों को इन्फेक्शन हो भी चुका है। अंजना देवी, अमन, रीना देवी ने बताया कि जिनके घरों में समर्सिबल नहीं है, वे खरीदकर पानी पीने को मजबूर हैं। सुरसत्ती देवी आदि ने कहा कि गर्मी के दिनों में पानी की समस्या बढ़ जाती है। कभी कम प्रेशर से लोग परेशान होतो हैं तो कभी समय से पानी न आने की समस्या होती है।
बोले कॉलोनीवासी
घरों पर बिजली के तार लटक रहे हैं। दूर से कनेक्शन लेने पर अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है। - मीरा रस्तोगी
स्ट्रीट लाइट न होने से खराब रास्ते से रात में आवागमन किसी चुनौती से कम नहीं होता है।
- सुनीता गुप्ता
कॉलोनी से एक बड़ा नाला गुजरा है। उसकी सफाई कराने के साथ उसे ढंकवाना बहुत जरूरी है।
- मंजू श्रीवास्तव
कई घरों में पेयजल की पाइपलाइन नहीं आई है। पानी पीने लायक नहीं रहता कभी। बहुत दिक्कत है।
-नीतू देवी
चारो तरफ गंदगी से बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। स्वच्छता अभियान की भी पोल खुल रही है।
- जय कुमार मौर्य
खुले नाले से हादसे का डर बना रहता है। कई बार घटनाएं हो चुकी हैं। नाले की दुर्गंध परेशान कर देती है।
- रामाश्रय
महीनों से दूषित पानी आता है। उससे नहा भी नहीं सकते। कई लोगों को नहाने के बाद इन्फेक्शन हो गया।
- अशोक कुमार गुप्ता
पाइपलाइन आई है लेकिन पानी नहीं आ रहा है। कई बार शिकायत के बाद भी समाधान नहीं हुआ।
- सुरसत्ती
घरों से बिजली के तार जा रहे हैं। हमेशा डर बना रहता है कि कोई हादसा न हो जाए। पोल लगना जरूरी है।
- अमन
कॉलोनी के लोगों ने डमरू बिछवाया था। सीवर लाइन के लिए उखाड़ दिया गया। अब तक बिछाया नहीं गया।
- रीना देवी
कॉलोनी में कंटेनर नहीं है। सफाई न होने से कूड़ा कचरा जमा रहता है। कूड़ा उठान भी नहीं हो रहा। - मुन्नी
सुझाव
1- जल्द से जल्द सड़क का निर्माण हो या डमरू बिछवाया जाए ताकि लोगों को आने-जाने में सहूलियत हो।
2-सभी घरों तक पेयजल की पाइप लाइन पहुंचाई जाए। हर घर को शुद्ध जलापूर्ति सुनिश्चित की जाए।
3-खुले नाले को ढंका जाए। समय-समय पर उसकी सफाई कराने के साथ दवाओं का छिड़काव कराया जाए।
4-कॉलोनी में बिजली के पोल लगाए जाएं। उन पर स्ट्रीट लाइटें लगें। लोगों को कनेक्शन लेने में परेशानी न हो- यह सुनिश्चित किया जाए।
5-कॉलोनी में प्रतिदिन झाड़ू लगे और कूड़े का उठान हो। जगह-जगह कंटेनर रखा जाए ताकि लोग खुले में कूड़ा न फेकें।
शिकायतें
1- कॉलोनी के लोगों ने खुद जर्जर सड़क बनवाई जिसे सीवरलाइन डालने के लिए उखाड़ दिया गया। फिर वही स्थिति है।
2- कई घरों में पेयजल की पाइपलाइन आई ही नहीं है। जहां आई है, वहां भी दूषित पानी आ रहा है। उससे नहाने पर भी इन्फेक्शन हो रहा है।
3-खुला नाला दुर्घटना को दावत दे रहा है। दुर्गंध से रहना मुश्किल होता है। बारिश के दिनों में समस्या बढ़ जाती है। दवाओं का छिड़काव नहीं होता।
4-कॉलोनी में एक पोल नहीं है। कई घरों तक पेड़ के सहारे बिजली के तार गए हैं। शिकायत करें तो कनेक्शन न मिलने की बात कही जाती है।
5-सफाई नहीं होती। न कूड़े का उठान होता है न ही कंटेनर रखा गया है। लोग खुले में कूड़ा फेकने को मजबूर हैं।
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