‘नजीर के बनारस में मीर ने पेश की नजीर
Varanasi News - वाराणसी में उस्मान मीर ने संगीत के माध्यम से जात-पात और भेदभाव को पीछे छोड़ते हुए महादेव की जयघोष से अपनी गायिकी शुरू की। उन्होंने देशभक्ति और भक्ति गीतों का समावेश करते हुए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर...

वाराणसी। संगीत न सरहदों में बंधता है, न संबंधों में। न ही समाजजनित जात-पात के भेद ही संगीत का रास्ता रोक पाते हैं। इसकी एक नायाब नजीर उस्मान मीर की गायिकी ने शनिवार की रात पेश की। गंगा जमुनी तहजीब वाले नजीर बनारसी के शहर बनारस में मीर ने महादेव के जयघोष से शुरू की स्वर यात्रा को महान भारत के जयगान तक ले जाकर विराम दिया। जब वह मां तुझे सलाम गीत गा रहे थे, उस समय समूचे ताज परिसर में जो जहां था, वहीं से उनके साथ वंदेमातरम् गाने की कोशिश कर रहा था। सुर और साज के साथ श्रोताओं की आवाज तारतम्य भले ही नहीं बैठा पाई, लेकिन सबका जोश जबरदस्त बना रहा। वंदेमातरम को अलग-अलग स्केल पर अलग-अलग अंदाज में पेश करके उन्होंने श्रोताओं को अपना दीवाना बना लिया। देशभक्ति गीत गाते-गाते अचानक फिर से शिव भक्ति के सुर लगा दिए। ‘शिव जैसा दाता कोई नहीं के गायन के दौरान उन्होंने यह साबित कर दिया कि उन्हें शास्त्रीय भजन गायक क्यों कहा जाता है।
दर्शकों की अग्रिम दीर्घा में पद्मभूषण पं. साजन मिश्र, इला अरुण जैसे सुरों के पारखियों के सामने लयकारी का जबरदस्त काम दिखाया। बात तान की हो या फिर गमक की। बीच बीच में सधी हुई आलापचारी का पुट उनके गायन को विशेष बना रहा था। ‘भूत भयंकर भजन गाते समय गले की हरकत दिखाने के बाद मुख डमरू से निनाद करने की कलाकारी दिखाई। कुछ क्षणों तक गले से डमरू के बाद उन्होंने बड़े ही महीन तरीके से अपनी आवाज खींच ली और फिजां में सिर्फ नाल पर डमरू की आवाज ही मुखर होती रही। भजन गाते गाते अचानक फिर रुख देशभक्ति गीत की ओर हो गया। 2013 से हिंदी फिल्मों में भजन गा रहे उस्मान गुजराती अंदाज दिखाने में भी पीछे नहीं रहे। शायद ही उनकी कोई ऐसी प्रस्तुति रही हो, जिसके समापन पर हर-हर महादेव का घोष मंच और श्रोता दीर्घा से एक साथ न हुआ हो। भक्ति गीत के बीच अचानक मुखर हुई पाकीजा फिल्म के गीत ‘चलते-चलते मुझे कोई मिल गया था... की धुन ने तो पुरानी पीढ़ी की यादों को क्षणभर में जवां कर दिया। दीर्घा में उपस्थित नई पीढ़ी के श्रोता यह समझ ही नहीं सके कि इस धुन में ऐसा क्या है सारे बड़े-बूढ़े एक साथ चहक उठे हैं। ‘साजन आयो ए सखी मैं तो मोतियन लूं हार की शुरुआत में एक बार फिर मीर ने गले की हरकत का कमाल दिखाया। ‘हे री सखी मंगल गावो री...धरती अंबर सजाओ री... आज उतरेगी पिया की सवारी इन पंक्तियों के एक-एक अक्षर को अनुभूत कर कैसा गाया जा सकता है इसका उदाहरण भी उस्मान मीर ने पेश किया।
आमिर मीर की भी लगी हाजिरी
उस्मान मीर के गायन के बाद उनके पुत्र आमिर मीर ने भी इस महफिल में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। उनकी प्रस्तुति के बाद मंच पर आऐ आमिर मीर को पद्मभूषण पं. साजन मिश्र, इला अरुण, निलेश मिश्र, दीपक मधोक, भारती मधोक ने मंच पर जाकर आशीर्वाद दिया। उन्होंने ‘तुझसे मेरा जीवन, जान तेरे वास्ते, ‘हाय लंबी जुदाई गीत के बाद पिता-पुत्र ने मिलकर ‘संग प्यार रहे मैं रहूं ना रहूं, सजदा तेरा सजदा,‘तेरे नैना और अपना 26 साल पुराना शिव भजन ‘नगर में जोगी आयासे अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। इस भजन की पंक्तियां ‘ऊंचे ऊंचे मंदिर तेरे भोलेनाथ, ओ काशी वाले विश्वनाथ बाबा हम करते हैं तुझे प्रणाम, हर काशीवासी के दिल में उतर गया।
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