महज दिखावा बन गए हैं अंग्रेजी माध्यम से स्कूल
सरकारी प्राइमरी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की कक्षाएं चलाने के शासन की मंशा परवान नहीं चढ़ पा रही है। स्कूलों का चयन हो चुका है। मगर पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। अंग्रेजी माध्यम की...
सरकारी प्राइमरी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की कक्षाएं चलाने के शासन की मंशा परवान नहीं चढ़ पा रही है। स्कूलों का चयन हो चुका है। मगर पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। अंग्रेजी माध्यम की किताबें अब तक उपलब्ध नहीं हो पाई है।
जनवरी में ही यह तय हो गया था कि जिले और नगर क्षेत्र के 45 स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होगी। इसका उद्देश्य है कि गरीब अभिभावक भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में बिना किसी फीस के पढ़ा सकें। चयनित स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम का बोर्ड तो लग गया है, लेकिन पढ़ाई सिर्फ दिखावा साबित हो रही है।
सबसे पहली समस्या शिक्षकों की है। कुल 45 स्कूलों में पढ़ाने के लिए 225 शिक्षक चाहिए। प्रत्येक स्कूल में हेडमास्टर समेत पांच शिक्षक अंग्रेजी माध्यम के होने चाहिए। तीन बार की चयन प्रक्रिया के बावजूद 125 शिक्षकों का ही चयन हो पाया। इसमें भी कई शिक्षिकाओं ने आवंटित स्कूल में कार्यभार नहीं ग्रहण किया है। वे शहर के नजदीक स्कूल में तैनाती चाहती हैं।
दूसरी बड़ी समस्या अंग्रेजी माध्यम के किताबों की है। अभी तक शासन हिन्दी माध्यम की सभी किताबें उपलब्ध नहीं करा सकी है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में फिलहाल किताब मिलने की संभावना नहीं है। कई विद्यालयों में शिक्षक परेशान हैं कि कैसे पढ़ाएं? कुछ शिक्षक हिन्दी माध्यम की पुरानी किताबों से किसी तरह बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
पिछले दिनों विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन और प्राथमिक शिक्षक संघ के अलग-अलग प्रतिनिधिमंडलों ने बेसिक शिक्षा अधिकारी के समक्ष यह समस्या उठाई थी। उन्होंने किताबों का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। अब इन स्कूलों की सार्थकता पर सवाल उठने लगा है। जूनियर हाई स्कूल शिक्षक संघ के अध्यक्ष विनोद उपाध्याय का कहना है कि बगैर किसी तैयारी के यह योजना शुरू की गई, जिसका खमियाजा बच्चे भुगत रहे हैं। जिला समन्वयक जेपी गुप्ता का कहना है कि कुछ आरम्भिक दिक्कतें है, जिसे दूर किया जा रहा है। जल्द ही किताबें और शिक्षकों की व्यवस्था की जाएगी।
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