राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी कविता सब के लिए महत्वपूर्ण
बीएचयू के हिंदी विभाग और भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन राष्ट्रवादी कविता और सांस्कृतिक चेतना पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने राष्ट्रवाद के महत्व को रेखांकित...
वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। बीएचयू के हिंदी विभाग और भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली की ओर से आयोजित ‘हिन्दी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यिक-सामाजिक विरासत: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन राष्ट्रवादी कविता और सांस्कृतिक चेतना पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने कहा कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी कविता सभी के लिए महत्वपूर्ण हैं।
बीएचयू के कृषि शताब्दी सभागार में बुधवार को आयोजित दूसरे सत्र के प्रतिभागी सत्र की अध्यक्षता प्रो. विजय कुमार शाण्डिल्य ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में मानस के मंगलाचरण के माध्यम से तुलसी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना को रेखांकित किया। विशाखापट्टनम से आईं प्रो. जे. विजया भारती ने उत्तर-दक्षिण के भाषाई सौहार्द पर टिप्पणी की। इस सत्र में प्रो. संतोष कुमार सिंह, डॉ. किंगसन सिंह पटेल, डॉ. अनुराधा शुक्ला, रायबरेली से आए अवधेश शर्मा आदि ने विचार रखे। अकादमिक सत्र― ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा: विविध स्वर की अध्यक्षता प्रो. विनय कुमार सिंह ने की। डॉ. सुशील यादव ने भारत-भारती, पुष्प की अभिलाषा, कलम आज उनकी जय बोल जय बोल जैसी कविताओं पर चर्चा की। सत्र का संचालन डॉ. अशोक कुमार ज्योति और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रविशंकर सोनकर ने किया। अगले सत्रों में डॉ. शुभांगी श्रीवास्तव ने देशभक्ति और राष्ट्रवाद के अंतर को स्पष्ट करते हुए रवीन्द्रनाथ ठाकुर के राष्ट्रवादी विचारों का परिचय दिया।
समापन सत्र में स्वागत वक्तव्य देते हुए बीएचयू के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा कि राष्ट्रवादी काव्यधारा के अचर्चित कवियों की भी चर्चा होना इसकी उपलब्धि रही। अध्यक्षता करते हुए कला संकाय प्रमुख प्रो. मायाशंकर पाण्डेय ने जापानी राष्ट्रवाद में शिंटोवाद के पुनर्नवा की चर्चा की। मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत्यकाम ने कहा कि राष्ट्रवादी कविता को वीर रस, ओज और जोश के भाव तक सीमित कर देना एक रूढ़ि है। अंत में कुलाधिपति जस्टिस गिरिधर मालवीय के निधन पर सभी ने मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी।
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