बोले काशी : मानसनगर- यहां बंदर घूमते और नागरिक जालियों में रहते हैं कैद
Varanasi News - वाराणसी के मानस नगर कॉलोनी के निवासियों को बंदरों की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। आश्रय खोने के बाद, बंदर कॉलोनी में आक्रामक हो गए हैं। यहां के नागरिकों ने बंदरों के उपद्रव से परेशान होकर नगर निगम...
वाराणसी। संकटमोचन मंदिर परिसर से आश्रय छिनने के बाद बंदरों को न ठिकाना मिला है, न ही पेट भरने का इंतजाम। लिहाजा, वे कॉलोनियों-मोहल्लों में मुंह मारते हैं। भूख के चलते आक्रामक, उपद्रवी हो गए हैं। कई कॉलोनियों में उनसे त्राहि-त्राहि की स्थिति है। उनमें एक है दुर्गाकुंड की मानस नगर कॉलोनी। बंदर पीड़ित दूसरी कॉलोनियों से मानस नगर इस मायने में अलग है कि यहां हर छोटे-बड़े घर में लोहे की मजबूत जालियां लगी हैं। बंदर सड़कों पर घूमते हैं, वाशिंदे जालियों में कैद रहते हैं। शहर की पुरानी कॉलोनियों में एक मानस नगर की नींव सन-1975 में पड़ी। अब छह लेन की कॉलोनी में 300 मकान हैं। कॉलेजों-विश्वविद्यालयों के वर्तमान और पूर्व प्राध्यापक, सरकारी विभागों में कार्यरत और सेना निवृत्त, उद्यमियों और व्यापारियों की इस कॉलोनी के दु:ख-दर्द की चिंता के लिए विकास समिति बनी है। उसके वर्तमान एवं पूर्व पदाधिकारियों के बीच दायित्व बदलता है, दिल नहीं। इस जीवंतता का अनुभव कभी भी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में किया जा सकता है। नागरिक जीवन के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाओं के लिहाज से मानस नगर के नागरिक टंच हैं, ऐसा नहीं है। कॉलोनी के मानस उद्यान में उन्होंने ‘हिन्दुस्तान से समवेत स्वर में कहा ‘कहीं बंदर पिंजरे में कैद रहते हैं, यहां हम सभी पिंजरे में रहते हैं। पार्क के चारो ओर ही नजर दौड़ा लें, हर घर पिंजरा दिखेगा। पं. पारसनाथ उपाध्याय ने कहा कि पास में दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में भी बंदरों को पहले दर्शनार्थियों से कंद-मूल मिल जाता था। तब वे आसपास नहीं भटकते थे। अब वैसी स्थिति रही नहीं। जलकल से सेवानिवृत्त सुरेन्द्र श्रीवास्तव के मुताबिक पौ फटने से लेकर सुबह नौ बजे और फिर शाम चार से सूरज डूबने तक बंदरों के उपद्रव से जल्द कोई सड़कों पर नहीं निकलता। महिलाओं-बच्चों को किसी काम या आयोजन के निमित्त निकलना होता है तो बहुत सतर्कता एवं तैयारियों के साथ। वे ही बंदरों के सबसे अधिक शिकार हुए हैं इस कॉलोनी में। दिलीप पांडेय ने बताया-‘छह माह के अंदर 15 से महिलाएं और उतने ही बच्चे रैबीज का इंजेक्शन लगवा चुके हैं। नगर निगम के अधिकारियों के अलावा इलाकाई पार्षद को भी इस गंभीर समस्या की बखूबी जानकारी है लेकिन सभी शायद मान बैठे हैं कि बंदरों से राहत का अंतिम उपाय घरों पर जाली लगवाना ही है।
पौधे असुरक्षित, लताएं चढ़तीं नहीं
रमाकांत त्रिपाठी, सुनील पटेल, डॉ. नीलाद्रि ने ध्यान दिलाया कि कॉलोनी के किसी घर के पोर्टिको या छत पर आपको हरियाली नहीं दिखेगी। सभी हरियाली प्रेमी हैं। घर बनवाने के साथ फूलों के पौधे-लताएं लगवाईं लेकिन बंदरों ने किसी को पनपने नहीं दिया। कुछ घरों में लोगों ने पौधों को ग्रिल आदि से घेरवा दिया है। मानस उद्यान में पौधरोपण कराने पहुंचे पर्यावरण दूत अनिल सिंह ने बताया कि एक-एक ट्री गार्ड को ईंटों से घेरवा जा रहा है ताकि बंदर हाथ डालकर भी पौधों तक न पहुंचें। सुरेन्द्र श्रीवास्तव, अमर श्रीवास्तव ने बताया कि पार्क में पौधरोपण कई बार हुआ मगर बंदरों ने कोई पौधा सुरक्षित नहीं रहने दिया।
अस्सी नाले की गंदगी और दुर्गंध
देवेशचंद्र पंत, प्रशांत उपाध्याय, प्रो. लल्लन सिंह ने मानस नगर में अस्सी नाले से उठती दुर्गंध, रह-रह कर उसके ओवरफ्लो होने को गंभीर समस्या बताया। उन्होंने अपनी लेन में फैले सीवर को दिखाया भी। इन नागरिकों को समझ में नहीं आ रहा है कि असि को नदी-नाले के विवाद में फंसा कर आखिर नियमित सफाई क्यों बंद करा दी गई। प्रो. लल्लन सिंह ने कहा कि एनजीटी का फैसला आने तक सफाई में क्या दिक्कत है-इसे नगर निगम या जलकल के अधिकारी नहीं बता रहे हैं। बारिश के दिनों में यह नाला लगभग पूरी कॉलोनी में भारी जलजमाव का सबसे बड़ी वजह बन जाता है। अनूप दुबे ने कहा कि जिसके उद्गम का पता न हो, वह नदी कैसे हो सकती है? उन्होंने यह भी कहा कि मुहाने पर ही सफाई और चिंता की जा रही है, असि नाले के किनारे बसी कॉलोनियों की चिंता नहीं है नगर निगम को। पौधरोपण के लिए आए समाजसेवी सुधीर सिंह ने कहा कि सफाई न होने से अस्सी नाला कई कॉलोनियों के लिए विकट समस्या बन गया है।
असामाजिक तत्वों का जमावड़ा
संतोष मिश्रा, लव तिवारी, पप्पू यादव, डॉ. दीपक और अमर श्रीवास्तव ने कॉलोनी के अलग-अलग मोड़ पर शाम से रात तक असामाजिक तत्वों के जमावड़े की ओर ध्यान दिलाया। बोले, यह कॉलोनी खोजवां और दुर्गाकुंड के बीच एक जंक्शन है। लिहाजा, हर समय बाइक सवारों का आना जाना लगा रहता है। शाम गहराते ही वे जहां-तहां जम जाते हैं। पुलिस की गश्त न होने से वे बेखौफ रहते हैं। विवाद-बवाल के डर से कॉलोनी के लोग उन्हें टोकते भी नहीं।
रोज नहीं उठता कूड़ा
अमर श्रीवास्तव, गोपाल गुप्ता, दिलीप पांडेय ने दिखाया कि इस कॉलोनी में झाड़ू तो लगती है मगर रोज कूड़ा नहीं उठता। डॉ. पुनीत शुक्ला के मकान के सामने जमा कूड़े के ढेर में बंदर कुछ खाने की वस्तु तलाश रहे थे। अमर श्रीवास्तव ने कहा कि बंदर ही कूड़ा फैला देते हैं। रोज उठान हो तो यह समस्या न रहे। इतनी बड़ी कॉलोनी में कहीं डस्टबिन भी नहीं दिखा।
एक पार्क, वह भी उपेक्षित
मानस नगर में सिर्फ एक पार्क है। वह भी नगर निगम से उपेक्षित है। सुरेन्द्र श्रीवास्तव, रमाकांत त्रिपाठी ने बताया कि कॉलोनी के लोगों ने अपने खर्च से यहां बोरिंग करवाई है। नियमित सफाई कराई जाती है। इसके अलावा बैठने के लिए न बेंच है और टहलने के लिए पॉथवे। नगर निगम के अधिकारी इस पार्क को देखने के बाद ‘कुछ करने का आश्वासन दे चुके हैं। रमाकांत त्रिपाठी ने कहा कि हम उनके आश्वासन पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं। कॉलोनी विकास समिति ने पार्क के एक कोने में दातव्य औषधालय खुलवा दिया है। पं. पारसनाथ उपाध्याय ने बताया कि सामान्य बीमारियों का इलाज आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक चिकित्सक करते हैं। उनकी सेवा भी नि:शुल्क है।
सुझाव
1. नगर निगम मंकी कैचर टीम को कॉलोनी में कम से कम तीन दिनों तक लगाए ताकि लोगों का सुबह-शाम निकलना हो सके।
2. कॉलोनी से गुजरे अस्सी नाले की विधिवत सफाई हो, उसे ढंका जाए और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कराया जाए।
3. कूड़ा-कचरा की नियमित उठान का इंतजाम कराया जाए। कूड़ा गाड़ी आने के बाद अपने घरों से कूड़ा फेकने वालों के खिलाफ कठोर शुल्क दंड लगे।
4. कॉलोनी के पार्क का नगर निगम सुंदरीकरण कराए। यहां ओपेन जिम की व्यवस्था हो, पॉथवे का निर्माण कराया जाए। स्ट्रीट लाइटें भी लगें।
5. मानस नगर के हर मोड़ से असामाजिक तत्वों का जमावड़ा खत्म करने के लिए पुलिस रोज एक बार गश्त करे। रात में भी छापेमारी होनी चाहिए।
शिकायतें
1-बंदरों के उपद्रव से कॉलोनी के लगभग सभी घर पिंजरा बन गए हैं। लोगों का सुबह-शाम घरों से निकलना कठिन है। महिलाओं-बच्चों को अधिक परेशानी होती है।
2. अस्सी नाले की सफाई न होने से हमेशा दुर्गंध उठती है। वह अक्सर ओवरफ्लो भी करता है। तब उसकी गंदगी कॉलोनी की कई लेन में फैल जाती है।
3. कूड़ा-कचरा का नियमित उठान नहीं होता। लोगबाग सुबह गाड़ी आने के समय अपने घरों से कूड़ा नहीं निकालते।
4. कॉलोनी के एकमात्र पार्क में न पाथवे है और न बैठने के लिए एक बेंच। बच्चे-बुजुर्ग चाहकर भी यहां नहीं आते।
5. कॉलोनी के अलग-अलग मोड़ पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा चिंता का विषय है। पुलिस कभी शाम या रात में गश्त नहीं करती।
बोले नागरिक
मानस नगर के पार्क का सुंदरीकरण हो। यहां बुजुर्गों-बच्चों के अनुकूल इंतजाम हों तो नगर निगम की सक्रियता समझ में आए।
-पं. पारसनाथ उपाध्याय
कॉलोनी की कई लेन में सड़कों की मरम्मत हो, खराब स्ट्रीट लाइटों की मरम्मत कराई जाए। यह जरूरी है।
-दिलीप पांडेय
नगर निगम कॉलोनी को बंदरों से निजात दिलाने की ठोस पहल करे। हम पूरा सहयोग करने को तैयार हैं।
-सुरेन्द्र श्रीवास्तव
अस्सी नाले की विधिवत सफाई के साथ उसे ढंका जाना बहुत जरूरी है। अक्सर गंभीर समस्या पैदा होती है।
-देवेशचंद्र जोशी
एनजीटी में विवाद निस्तारित होने तक नगर निगम अस्सी नाले की सफाई करा सकता है। यह जनहित में होगा।
-प्रो. लल्लन सिंह
अस्सी नाले के मोहाने पर ही सफाई की चिंता करने के बजाए नगर निगम किनारे बसी सभी कॉलोनियों का ध्यान रखे।
-अनूप दुबे
बंदरों के चलते कॉलोनी हरियाली से दूर हो गई है। यह हमें अखरता है लेकिन विवश हैं। कुछ कर नहीं सकते।
-डॉ. नीलाद्रि
कॉलोनी को असामाजिक तत्वों का अड्डा बनने से रोकने के लिए पुलिस को रोज शाम में गश्त करनी चाहिए।
-संतोष मिश्रा
नगर निगम के अधिकारी एक बार कॉलोनी में घूम लें। उन्हें लगेगा कि उपेक्षा से छोटी समस्या भी बड़ी हो गई है।
-लव तिवारी
कॉलोनी में एक से कम तीन बड़ी डस्टबिन की जरूरत है। ध्यान दिलाने के बाद बावजूद एक भी नहीं रखी गई है।
-सुनील पटेल
पार्क के औषधालय में नगर निगम रैबीज के इंजेक्शनों की व्यवस्था कराए ताकि इमरजेंसी में परेशानी न हो।
-मनीष तिवारी
अस्सी नाले के किनारे बसी कॉलोनियों के नागरिकों की समन्वय समिति बनाकर उनसे भी नाले की सफाई में राय-सहयोग लिया जा सकता है।
-प्रशांत उपाध्याय
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