बनारस के प्रेम में वशीभूत थे सिनेमा के संन्यासी मनोज कुमार
Varanasi News - वाराणसी, मुख्य संवाददाता। रूपहले पर्दे के ‘संन्यासी जिनकी देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। रूपहले पर्दे के ‘संन्यासी जिनकी देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर उन्हें भारत कुमार नाम मिला वह थे मनोज कुमार। बनारस शहर मनोज कुमार के दिल के बहुत करीब था। वह बनारस के घाटों और यहां की सांस्कृतिक विरासत के मुरीद थे।
करीब नौ वर्ष पूर्व अपने 79वें जन्मदिन पर भी उन्होंने बनारस को शिद्दत से याद किया था। वह फिर से बनारस आना चाहते थे लेकिन उनकी यह तमन्ना अधूरी ही रह गई। वरिष्ठ सांस्कृतिक समीक्षक पं. अमिताभ भट्टाचार्य बताते हैं वर्ष 1962 में हिंदी फीचर फिल्म ‘बनारसी ठग की शूटिंग के सिलसिले में वह पहली बार बनारस आए थे। उस दौरान वह करीब तीन सप्ताह तक बनारस में रहे थे। शूटिंग के बाद खाली समय में वह बनारस के घाटों पर घूमते थे। उन्होंने काशी के सभी प्रमुख मंदिरों में दर्शन पूजन किया था। जिस समय फिल्म की शूटिंग चल रही थी वह कार्तिक का महीना था। वह आस्थावान काशीवासियों द्वारा घाटों पर निभाए जाने वाले रीति-रिवाज देखकर हैरत में पड़ जाते थे। सबसे खास बात यह थी कि ‘बनारसी ठग की शूटिंग के लिए वाराणसी में प्रवास के दौरान मनोज कुमार वह लगभग रोज ही काशी विश्वनाथ मंदिर जाया करते थे। मंगला आरती को छोड़ कर उन्होंने सभी आरती देखी थी। उस दौर में विश्वनाथ मंदिर की मंगला आरती में सिर्फ साधु-संन्यासियों को ही प्रवेश मिलता था। तत्कालीन अंग्रेजी अखबार को दिए गए साक्षात्कार में मनोज कुमार ने कहा था मैं जितनी बार विश्वनाथ मंदिर जाता हूं, वहां जाने की लालसा उतनी ही बढ़ती जाती है। बनारस के सिनेमा प्रेमियों द्वारा मिले प्यार को उन्होंने अपनी थाती बताया था। कहा था कि यहां के लोगों से मिला प्यार मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। यहां की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत ही इस शहर को भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनाया है।
जीवट वाले अभिनेता थे मनोज कुमार
फिल्म समीक्षक कुमार विजय ने कहा कि मनोज कुमार जीवट वाले अभिनेता थे। फिल्म की सभी विधाओं पर उनका कमांड था। लंबे समय तक उन्होंने नायक के रूप में अपनी छाप सिने प्रेमियों पर छोड़ी है। उन दिनों किसी भी फिल्म का पहले दिन पहला शो देखने का क्रेज हुआ करता था। मैंने भी शहर के तेलियाबाग स्थित आनंद मंदिर में उनकी फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान पहले दिन पहले शो में देखी थी। वह एक ब्लाक बस्टर फिल्म थी। उस फिल्म में उन्होंने जीनत अमान के ग्लैमर का जबरदस्त इ्रस्तेमाल किया था।
कायल हूं उनके खास अंदाज का
नगर के वरिष्ठ रंगधर्मी डॉ. राजेंद्र उपाध्याय कहते हैं व्यक्तिगत रूप से मेरी मनोज कुमार से कभी मुलाकात नहीं हुई। वर्ष 1957 में ‘फैशन फिल्म से अपने करियर की शुरुआत करने वाले मनोज कुमार ने अपने जीवन में दर्जनों सुपर हिट फिल्में दीं। मैं उनके अभिनय और संवाद अदायगी के खास अंदाज का आज भी कायल हूं। यूं तो उन्होंने अलग-अलग विषय वस्तुओं वाली फिल्मों में काम किए हैं लेकिन क्रांति उनकी एक ऐसी फिल्म है जिसने वर्ष 1981 में तहलका मचा दिया था। उस दौर में क्रांति फिल्म के प्रथम श्रेणी के टिकट 30 रुपये और बालकनी के टिकट 50 रुपये में ब्लैक हुए थे। तब प्रथम श्रेणी के टिकट का मूल्य पांच रुपये और बालकनी का टिकट आठ रुपये का हुआ करता था।
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