मंदिर में महताब ने दिखाई लयकारी की कलाकारी
Varanasi News - वाराणसी में 102वें संकट मोचन संगीत समारोह के दौरान महताब अली नियाजी ने अपने सितार वादन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने राग बागेश्वरी और धमार अंग में अपनी कला का प्रदर्शन किया। ओडिसी नृत्य...

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। संकट मोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण में महताब अली नियाजी दूसरे ऐसे युवा कलाकार रहे जिन्होंने अपनी स्पष्ट छाप श्रोताओं पर छोड़ी। ख्याल अंग के वादन में चाहे राग बागेश्वरी की अवतारणा रही हो अथवा धमार अंग में झाला वादन रहा हो। दोनों में ही लयकारी की कलाकारी अलग ही स्तर पर महसूस की गई।
यूएस से आए विवेक पाण्ड्या के अति विशिष्ट तबला के बाद महताब अली नियाजी ने अपने सितार वादन से इस उम्मीद को और भी पुख्ता कर दिया कि शास्त्रीय संगीत के आने वाले दिन भी बीते दिनों की तरह सुनहरे ही हैं। काफी थाट के इस राग में आलाप के दौरान आरोही अवरोही स्वरों के बीच का खेल बता रहा था कि मुरादाबाद के भिंडी बाजार घराना के युवा हस्ताक्षर ने हर सुर के छोटे से छोटे हिस्से को भी साधने के लिए घंटों पसीना बहाया है। कोमल गंधार और निषाद अपनी जगह से रत्ती भर भी नहीं चूके।
युवा तंत्र साधक ने यादगार प्रस्तुति से समारोह की छठी निशा में दरबार में खचाखच भरे श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया। ख्याल के बाद धमार अंग के सितार वादन में भी उन्होंने गमक का काम दिखाने की बजाय मीड़ और तानों पर विशेष जोर दिया। स्कूल बस का इंतजार करते समय घर के पास वाले मंदिर में रोज जिस आरती को सुनते थे संकटमोचन के दरबार में उसकी धुन से अपने वादन को विराम दिया। वह बेशक ओम जय जगदीश हरे की धुन बजा रहे थे लेकिन श्रोताओं को एक एक शब्द सुनाई दे रहे थे।
ओडिसी से कराई श्रीराम और श्रीकृष्ण के युग की यात्रा
इससे पूर्व संगीत समारेाह की छठी निशा का आगाज ओडिशा के पारंपरिक शास्त्रीय नृत्य ओडिसी से हुआ। प्रथम कार्यक्रम की शुरुआत पं. रतिकांत महापात्रा ने अपनी बहुप्रशंसित प्रस्तुति शबरी के प्रसंग से की। भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा में बेर चुनने से प्रभु के आगमन पर उनके श्रीचरणों में नतमस्तक होने तक के विविध भावों का प्रदर्शन कर उन्होंने एक बार फिर श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया। दूसरी प्रस्तुति लेकर उनकी पत्नी सुजाता महापात्रा मंचासीन हुईं। उन्होंने भक्ति के विविध रंगों को अपनी प्रस्तुति के माध्यम से प्रदर्शित किया। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में एक मुस्लिम भक्त द्वारा की गई अर्चना के प्रसंग को भी उन्होंने अपनी नृत्य का हिस्सा बनाया।
रतिकांत की शिष्याओं एश्वर्या शिंदे, प्रीतिशा महापात्रा ने धनुषयज्ञ के प्रसंग को प्रभावी तरीके से दर्शकों तक पहुंचाया। इसमें अभिनय अंग विशेष रूप से प्रभावी रहा। इस प्रस्तुति को तैयार करने में की गई मेहनत का अनुभव दर्शकों ने भी किया। हालांकि धनुषयज्ञ के लिए आए राजाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए दोनों में से एक कलाकार ने लंगड़े राजा का किरदार निभाया तो दर्शक दीर्घा को रामायण के प्रसंग में महाभारत के शकुनी की अनुभूति होने लगी। संपूर्ण प्रस्तुति के परिप्रेक्ष्य में दोनों नृत्यांगनाओं का तालमेल सधा हुआ रहा। उन्होंने सटीक समय पर सम पर आने के बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया। इसके बाद जटायु मोक्ष के प्रसंग में रतिकांत और सुजाता एक साथ मंच पर आए। रावण द्वारा सीता हरण की कथा से शुरू हुआ प्रसंग जटायु के माक्ष से विराम तक पहुंचा।
पं. उल्हास कसालकर ने की केदार की अवतारणा
दूसरी प्रस्तुति लेकर मंचासीन हुए वरिष्ठ गायक पं. उल्हास कसालकर ने राग केदार की अवतारणा की। मध्यम श्रेणी के शुद्ध और तीव्र स्वरों वाले इस राग को दीपक राग की रागिनी का रूप क्यों कहा जाता है यह भी उनके गायन में स्वरों की अभिव्यक्ति से स्पष्ट हो गया। आरोह में रे और ग के वर्जित होने की शर्त का पूरी शिद्दत से निर्वाह करते हुए अवरोह में ग का अल्प वक्रिय प्रयोग उनकी गायिकी का वैशिष्ट्य रहा। विलंबित लय की बंदिश के गायन के दौरान पं. उल्लहास कसालकर ने राग की जटिल और अति सूक्ष्म संरचना को सुरों के सधे हुए सिलसिले से व्यक्त किया। सा से म के बीच विस्तृत आरोही छलांगें बता रही थीं कि गायन में किसी वयोवृद्ध का ज्ञानवृद्ध होना भी कितना अनिवार्य है। अवरोह में कोमल निषाद का अल्प प्रयोग बंदिश के भाव विस्तार में अत्यंत सहायक बना।
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